बठिंडा लोकसभा क्षेत्र : 1952 से अब तक

बठिंडा, 1 अप्रैल (कंवलजीत सिंह सिद्धू): लोकसभा बठिंडा क्षेत्र पंजाब की 13 सांसदीय सीटों में से सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक क्षेत्र माना जाता है क्योंकि गत लम्बे समय से इस हलके से शिअद के उम्मीदवार का हाथ 9बार शीर्ष पर रहा है। जबकि देश की बांट के बाद स्वतंत्र भारत में 1952 में हुए मतदान में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अजीत सिंह ने बठिंडा संसदीय हलके से जीत प्राप्त करके कांग्रेस पार्टी के बठिंडा लोकसभा हलके प्रथम विजेता उम्मीदवार के तौर पर अपना नाम राजनीतिक इतिहास में दर्ज करवाया था। इसके उपरांत उन्होंने 1957 की लोकसभा चुनाव में फि र जीत हासिल करते हुए दूसरी पारी खेली थी। जबकि 1962 में धन्ना सिंह गुलशन शिअद के उम्मीदवार ने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार जो तीसरी बार चुनाव मैदान में अजीत सिंह को इस चुनाव में मात देकर पहली बार यह सीट शिअद के पाले में डाली थी। वर्ष 1967 में चौथी लोक सभा चुनाव दौरान यह सीट किक्कर सिंह जिनको संत ग्रुप का समर्थन हासिल था, ने जीती। जबकि 1971 में साम्यवादी पार्टी आफ  इंडिया और कांग्रेस के गठजोड़़ के साथ भान सिंह भौंरा चुनाव मैदान में उतरे और शिअद के भगत सिंह को मात देकर विजय हासिल की। इस उपरांत 1977 में शिरोमणी अकाली दल के उम्मीदवार धन्ना सिंह गुलशन ने फि र इस सीट पर जीत हासिल की। 1980 में कांग्रेस पार्टी के हाकम सिंह ने इस सीट पर कांग्रेस का हाथ फिर ऊंचा क र दिया। 1985 में शिअद के तेजा सिंह सहानुभूति रखने वालों ने इस सीट पर जीत हासिल करते फि र शिअद सीट पर काबिज़ कर दिया। 1989 में हुई शिअद (मान) के  पहली बार हिस्से में बठिंडा सीट आई और सुच्चा सिंह यहां से विजेता रहे। 1992 में कांग्रेस के उम्मीदवार केवल सिंह ने यह चुनाव लड़ा और विजेता रहे। 1996 में लोकसभा चुनाव के दौरान शिअद के उम्मीदवार के तौर पर हरिन्दर सिंह खालसा चुनाव मैदान में उतरे और विजेता रहे। इसके साथ ही 1998 में फिर शिअद के उम्मीदवार चतंय सिंह समाओं यहां से विजेता रहे। 1999 में पहले सांसद रह चुके भान सिंह भौंरा ने फि र बठिंडा लोकसभा सीट से सी. पी. आई. कांग्रेस गठजोड की टिकट पर चुनाव लड़ा और विजेता रहे। 2004 में शिअद के उम्मीदवार के तौर पर बीबी परमजीत कौर गुलशन जो पहले बठिंडा लोकसभा हलके से एम. पी. रह चुके धन्ना सिंह गुलशन की सुपुत्री थीं, ने फि र यह सीट जीत कर शिअद के खाते डाल दी। इसके उपरांत 2009 की चुनाव में यह सीट  प्रकाश सिंह बादल की बहु और शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की धर्मपत्नी हरसिमरत कौर बादल चुनाव मैदान में उतरीं और उन्होंने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के सुपुत्र युवराज रणइंद्र सिंह के खिलाफ  चुनाव लड़ कर यह चुनाव सवा लाख रिकार्ड वोटों के अंतर से जीत कर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। इस के बाद 2014 में शिअद-भाजपा की उम्मीदवार के तौर पर हरसिमरत कौर बादल ने फि र दूसरी पारी खेलते हुए बादल परिवार के ही अपने राजनीतिक शरीक पीपल्ज पार्टी ऑफ  पंजाब को भंग करके कांग्रेस में शामिल हुए मनप्रीत सिंह बादल को 19395 हज़ार वोटों के अंतर से हराया। कुल मिला कर अब तक बठिंडा सीट पर 9 बार शिअद की तराजू विजेता रही, जबकि कांग्रेस में सी. पी. आई. के साथ गठजोड़़ के साथ कुल 6बार (2 बार पैपसू के समय पर पर 4 बार पंजाबी प्रदेश बनने के उपरांत), 1952 की चुनाव से ले कर 2014 की लोक सभा चुनाव के दौरान विजेता पर दृष्टी डाली जाए तो राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार बठिंडा सीट को कोई भी सांसद लगातार 3 बार नहीं जीत सका।