कश्मीर का दुखांत


गत 30 वर्षों से जम्मू-कश्मीर अक्सर सुर्खियों में रहता है। अब तक हज़ारों ही लोग यहां लगी आग में जल चुके हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ इस मामले पर कई बार युद्ध भी हो चुके हैं। वहां की सीमाओं से नित्य दिन गोलियां चलती हैं। नित्य दिन आतंकवादी हथियारों से लैस होकर भारतीय सीमाओं में घुसपैठ करते हैं। पाकिस्तान ने कश्मीर के मामले को भारत के साथ संबंधों में मुख्य मुद्दा बनाया हुआ है। चाहे देश के विभाजन के समय इसका लगभग तीसरा हिस्सा उसने हथिया लिया था परन्तु शेष रहते राज्य को अपना हिस्सा बनाने के लिए वह हमेशा ही उतावला होता रहा है। इसलिए उसने अपने देश में जेहादियों के लश्कर खड़े किए हुए हैं। वहां की सेना का कार्य भारत के साथ टक्कर लेना या अपने देश की आन्तरिक बगावतों को दबाना ही रह गया है। पाकिस्तानी नेताओं द्वारा सौ बार सहयोग की बातें करने के बावजूद वह कश्मीर मामले संबंधी अपनी जिद्द पर ही कायम रहे हैं। वादी में तो विदेशी और देसी आतंकवादियों ने एक तरह से अपना पूरा जाल बिछाया हुआ है। अनेक बार यहां मतदान द्वारा सरकारें चुनीं गईं। उन्होंने हालात को सामान्य बनाने के लिए प्रयास भी किए परन्तु आज तक यह मामला उलझा ही रहा है। यह कब हल होगा, इसके बारे में कुछ भी विश्वास से नहीं कहा जा सकता।
आतंकवादियों ने एक तरह से भारतीय सेना को चुनौती दी हुई है। इसीलिए वादी में किसी न किसी स्थान पर अक्सर सेना के साथ मुकाबलों में आतंकवादी मारे जाते हैं और सैन्य जवान भी शहीद हो जाते हैं। गत दिनों पुलवामा में एक आत्मघाती आतंकवादी द्वारा हमला करके 40 जवानों को शहीद कर देने से हालात बहुत बिगड़ गए थे। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप भारत ने भी पाकिस्तान के भीतर एक आतंकवादी संगठन के अड्डे पर हवाई हमला किया, जिस कारण एक बार तो युद्ध के बादल छा गये थे। 
पूर्व विधानसभा के चुनावों में जम्मू-कश्मीर में किसी भी एक पार्टी को बहुमत न मिलने के कारण महबूबा मुफ्ती की पीपल्ज़ डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई थी। इसने एक बार तो सभी को हैरान कर दिया था। परन्तु यह एक नया अनुभव था जिससे यह उम्मीद की जाती थी कि इससे हालात के ठीक होने की सम्भावना बन सकती है, परन्तु अंतत: यह अनुभव सफल नहीं हो सका, जिस कारण राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। अब देश में हो रहे लोकसभा चुनावों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव करवाए जा रहे हैं। चाहे यह कार्य बहुत मुश्किल है, परन्तु इनको पूर्ण करने को चुनाव आयोग की बड़ी उपलब्धि माना जायेगा। परन्तु इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने चुनाव घोषणा-पत्र में इस राज्य को दिए अधिकारों संबंधी व्यक्त किए गए विचारों ने एक बार फिर राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। इसके साथ ही दूसरा फैसला 31 मई तक सप्ताह में दो दिन के लिए जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रीय मार्ग को सेना के आवागमन के लिए बंद करने के फैसले ने एक नई और अजीबो-गरीब स्थिति को जन्म दिया है, जिसका हर तरफ से विरोध हुआ है। यह राष्ट्रीय मार्ग लगभग 270 किलोमीटर लम्बा है। इसको रविवार और बुधवार आम वाहनों के लिए बंद कर दिया गया है, जिससे आम लोगों में बड़ा असंतोष पैदा हो गया है। 
जम्मू के ऊधमपुर से कश्मीर के बारामूला तक राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करने का फैसला जिस भी स्तर पर लिया गया है, उसको किसी भी तरह से समझबूझ वाला फैसला नहीं कहा जा सकता। जहां इससे स्थिति के और भी बिगड़ने की सम्भावना पैदा हो गई है, वहीं इस कदम को प्रशासन की बड़ी असफलता भी माना जा सकता है, क्योंकि सुरक्षा बलों ने आम लोगों की रक्षा करनी है न कि सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के साथ हर ढंग से मुकाबला करने की बजाय स्वयं को बचाना है। हम समझते हैं कि इस फैसले को तत्काल वापिस लेना चाहिए। आतंकवादियों के साथ मुकाबला करने के अन्य ढंग-तरीके अपनाने चाहिए। सुरक्षा बलों ने पहले ही आतंकवादियों को पछाड़ने के लिए अनेक ही प्रभावशाली कदम उठाये हैं, जिनसे स्थिति में बड़ा सुधार हुआ है। इस दिशा में प्रयास जारी रखने की ज़रूरत है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द