क्या चल पायेगा प्रियंका का जादू ?


प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की महासचिव बनने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जनता के बीच महारैली में पहुंची। कांग्रेस की इस प्रकार की महारैली लखनऊ में बहुत वर्षों के बाद हुई। जनता की इतनी बड़ी भीड़ बहुत कुछ कह रही है। अब देखना यह होगा कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद ऐसी ही महारैली दिखेगी, क्योंकि उत्तर प्रदेश से ही दिल्ली का रास्ता जाता है। जब बसपा और सपा ने उत्तर प्रदेश में आपस में गठबंधन कर लिया है तो उसमें कांग्रेस को नहीं रखा। हां, कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ दी। दूसरी तरफ भाजपा के पास यू.पी. से 72 सांसद हैं और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि 72 से 73 सीटें भाजपा को मिलेंगी, तो प्रियंका के समक्ष दो चुनौतियां हैं-एक अखिलेश और मायावती और दूसरी तरफ मोदी-शाह। वैसे प्रियंका और राहुल के कारण कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सीटें मिलेंगी, ये तो तय है। 
अब देखना यह होगा कि प्रियंका के कारण नुक्सान भाजपा को ज्यादा होगा या बसपा-सपा को? अखिलेश और मायावती एक गलती कर गये, ऐसा लगता है क्योंकि गठबंधन से उन्हें कांग्रेस को अलग नहीं रखना चाहिए था। शायद मायावती खुद को भविष्य की प्रधानमंत्री के रूप में देख रही हैं, इसलिए राहुल गांधी को अलग रखने के लिए सपा-बसपा ने कांग्रेस के साथ अभी तक हाथ नहीं मिलाया। परन्तु राहुल गांधी ने ट्रम्प कार्ड के रूप में प्रियंका को उतार दिया। लखनऊ की प्रथम रैली को देखकर कहा जा सकता है कि यही जनता का हुजूम वोट में तबदील हो गया तो कांग्रेस को फायदा होगा। 
अब देखना यह है कि मोदी की आंधी थम जायेगी? उत्तर प्रदेश में खासकर चुनाव में जातीय समीकरण बहुत महत्वपूर्ण रहता है। अंतत: अखिलेश और मायावती के अपने-अपने जो वोट बैंक हैं (जाति के आधार पर) वह इस बार शायद इधर-उधर नहीं जायेंगे। प्रियंका के लिए एक बात यह भी लगती है कि एक तो वह राजनीति में नई है, दूसरा उनके पति पर ई.डी. पूछताछ कर रही है और यू.पी. में अब त्रिकोणीय मुकाबला होगा, इसलिए अभी कहना कुछ मुश्किल सा लग रहा है। राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनें या नहीं, यह तो बहुत दूर की बात है लेकिन प्रियंका के साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपनी ज़मीन खोजने निकली है और शायद उसमें कांग्रेस कामयाब होगी।
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