चुनाव में पुराने पहलवानों की नई पार्टियों से पंजाब का माहौल गर्माया

बटाला, 10 अप्रैल (काहलों) : देश में नई केन्द्र सरकार बनाने के लिए होने जा रहे लोकसभा चुनावों की सरगर्मियों के रंग में जहां बाकी राज्य रंगे हुए हैं, वहीं पंजाब में लोकसभा चुनावों के रंग पूरी तरह बिखरे हुए हैं और रवायती पार्टियों के साथ साथ पुराने पहलवानों वाली बनी कुछ नई राजनीतिक पार्टियों भी पंजाब के मैदान में हैं। चाहे कि कांग्रेस और अकाली भाजपा सहित बाकी राजनीतिक पार्टियों ने अपने सभी उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतारे, परंतु राजनीतिक दंगल पूरी तरह से गर्मा गया है अैर हर पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की जीत के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाना शुरु कर दिया है। इस समय जहां कांग्रेस और भाजपा-अकाली दल एक-दूसरे को कड़ी टक्कर देने के मूड में हैं, वहीं आम आदमी पार्टी और पुराने पहलवानों की शमूलियत से बनी नई राजनीतिक पार्टियां शिरोमणि अकाली दल टकसाली, पंजाब एकता पार्टी, नवां पंजाब पार्टी व लोक इंसाफ पार्टी इन रिवायती पार्टियों को टक्कर देने के लिए उत्साहित हैं। चाहे कि नई राजनीतिक पार्टियों के लिए लोकसभा चुनावों का रास्ता इतना आसान नहीं लगता, परंतु इन नई पार्टियों के पुराने नेता अपने अपने क्षेत्रों में निजी प्रभाव से वोट बैंक से अपनों के लिए रुकावटें जरूर डालेंगे। जहां नई राजनीतिक पार्टियां लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाएंगी, वहीं राजनीतिक समीकरणों को भी बड़े स्तर पर प्रभावित करेंगे। जहां कांग्रेस अकेले ही अपने बलबूते पर पंजाब का किला फतेह करना चाहती है और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सभी 13 लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, वहीं अकाली दल व भाजपा भी अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने के लिए पूरी संजीदगी बरत रही है और सभी सीटें जीतने का प्रयास कर रही है। इसी तरह आम आदमी पार्टी जिसको 2014 के लोकसभा चुनावों में कोई ज्यादा समर्थन नहीं मिला था, परंतु पंजाब के लोगों ने इस पार्टी को चार सीटें जिताकर चार सांसद भेजें और पंजाब विधानसभा चुनावों में विपक्षी बनने का सम्मान हासिल हुआ, अब यह पार्टी आपसी फूट का शिकार होकर बिखर गई है। जहां इस पार्टी द्वारा अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे जा रहे हैं, वहीं कांग्रेस छोड़कर इस पार्टी में आए सुखपाल सिंह खैहरा द्वारा अपनी नई पंजाब एकता पार्टी का गठन किया गया है, जिसके आगाज से पहले उन्होंने वालंटियरों की बैठक करके उनकी और बरगाड़ी में मार्च करके लोगों की नब्ज पहचानी थी और फिर पार्टी बनाकर वो खुद बठिंडा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे हैं। राज्य में दस वर्ष राज करने वाली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार दौरान हुए कुछ कार्याें से दु:खी है ओर शिरोमणि अकाली दल में मतभेदों के कारण अलग हुए नेताओं द्वारा बनाया शिरोमणि अकाली दल टकसाली भी  अकाली दल के लिए सिरदर्दी बन सकता है। इस नए टकसाली दल के नेता स. रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, जत्थेदार सेवा सिंह सेखवां और डा. रतन सिंह अजनाला व अन्य अपने अपने क्षेत्रों में अच्छा निजी प्रभाव रखते हैं, जो अकाली दल के वोट बैंक का प्रभावित करने की समर्था रखता है।