नक्सलवाद की चुनौती

सदियों पुरानी सभ्यता वाले इस देश में अनेक धरातलों पर जीवन प्रवाह चलता रहा है। यहां अनेक राजा-महाराजा, अमीर- वज़ीर तथा जमींदार पैदा होते रहे। पिछले पांच हज़ार वर्ष से यहां अनेक ग्रंथ, महा-काव्य एवं किस्से-कहानियां लिखे जाते रहे, जिनमें से अधिकतर में प्रभु की उस्तुति के अतिरिक्त तत्कालीन शासकों एवं उनके छोटे-बड़े साथियों का उल्लेख होता रहा। इनकी आपस में एक-दूसरे की सत्ता हथियाने के लिए रक्तिम लड़ाइयां भी होती रहीं, जिनमें हज़ारों-लाखों सैनिक एवं जन-साधारण मरते रहे। इस सम्पूर्ण काल में यहां बड़ी संख्या में लोग गरीबी एवं अभावों का जीवन जीते रहे। आज जबकि देश सदियों की गुलामी से निजात पा चुका है, हम पिछले 70 वर्षों से यहां स्थापित लोकतंत्र पर गर्व करते हैं। देश विशाल उपलब्धियों के पथ पर बढ़ता दिखाई दे रहा है। हमारे वैज्ञानिक चांद-तारों पर पहुंचने के यत्नों में हैं, परन्तु ऐसी स्थिति में भी देश ़गुरबत के आंचल में लिपटे करोड़ों लोगों को इसमें से बाहर नहीं निकाल सका। वे आज भी दयनीय ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए विवश हैं तथा एक प्रकार से रेंगते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी के प्रतिक्रिया-स्वरूप देश के बहुत-से भागों में अनेक बार हिंसक आन्दोलन भी चले। उन पर दबाव भी डाला जाता रहा, परन्तु फिर भी वे किसी न किसी रूप में इसलिए फूट पड़ते, क्योंकि ऐसे आन्दोलनों के लिए यहां की मिट्टी बड़ी ज़ऱखेज़ है। आज भी देश के बहुत-से भाग माओवाद एवं नक्सलवाद के प्रभाव तले हैं। तत्कालीन सरकारों की ओर से लाख यत्नों के बावजूद ऐसे आंदोलनों को खत्म नहीं किया जा सका। आज भी देश के कुछ राज्यों के बड़े भागों में इनका प्रसार जारी है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड एवं उड़ीसा आदि अग्रिम पंक्ति में हैं, जिनके दर्जनों ज़िले नक्सलवाद की लपेट में बुरी तरह से ग्रस्त हैं। इसीलिए लोकसभा चुनावों की घोषणा होते ही इन क्षेत्रों में नक्सलवादियों ने जहां, अपनी गतिविधियां तेज कर दीं, वहीं लोगों को इन चुनावों में भाग न लेने की धमकियां भी लगातार दी जाती रहीं। लगभग एक सप्ताह पूर्व छत्तीसगढ़ में घने जंगलों के बीच तलाशी अभियान के दौरान सीमा सुरक्षा बल के चार जवानों को नक्सलवादियों ने एक भीषण मुकाबले में शहीद कर दिया था। इस मुकाबले में कई अन्य व्यक्ति भी घायल हो गए थे तथा नक्सलवादी गोलियां चलाते हुए फरार हो गए थे। अब छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा ज़िला में विधायक भीमा मंडावी की ओर से प्रचार के दौरान उनके क़ािफले को निशाना बनाया गया। एक बारूदी सुरंग बिछा कर इस क़ािफले की गाड़ियों को उड़ा दिया गया, जिसमें एक विधायक एवं चार जवान शहीद हो गए। निरन्तर किए गए हमलों के बावजूद चाहे चुनाव आयोग ने निर्धारित तिथियों के अनुसार ही मतदान करवाने की घोषणा की है, परन्तु ऐसे हमलों ने इन प्रदेशों के लोगों में जहां एक प्रकार की दहशत पैदा की है, वहीं सरकार के लिए इसे एक बड़ी चुनौती भी माना जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व दांतेवाड़ा में ही नक्सलवादियों ने सुरक्षा बलों के क़ािफले पर हमला करके 36 जवानों को शहीद कर दिया था। वर्ष-2013 में छत्तीसगढ़ के ही सुकमा ज़िले में नक्सलवादियों ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए कुछ प्रमुख राजनीतिक नेताओं सहित 27 व्यक्तियों को मृत्यु के घाट उतार दिया था। केन्द्रीय भारत के अधिकतर इलाकों में आज भी प्राय: ऐसे हमले होते रहते हैं। नक्सलवादियों के पास आधुनिक शस्त्र एवं भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री होती है। इन्होंने हथियारों एवं विस्फोटक सामग्री प्राप्त करने के लिए लम्बी अवधि से बड़े गोपनीय एवं पुख्ता प्रबंध किए हुए हैं। नि:संदेह व्यापक एवं प्रभावशाली योजनाएं बनाने और उन्हें पुख्ता ढंग से लागू किए जाने से ही इस पेचीदा एवं गम्भीर समस्या पर काबू पाया जा सकता है।  देश में अनेक स्थानों पर इस प्रकार के हालात बने हुए दिखाई देते हैं, जिन्हें देखते हुए इस समस्या के हल हेतु अभी बहुत लम्बा एवं कठिन पथ तय करना होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द