राजनीतिक दलों के वायदे, दावे और घोषणाएं :बस, बातें हैं, बातों का क्या...!

सत्रहवें लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल भाजपा ने गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर अपने कई सारे दावे जनता के समक्ष पेश किये हैं। दूसरी तरफ   राष्ट्रीय विपक्षी दल कांग्रेस ने सत्तारूढ़ दल को गरीबी, बेरोजगारी जैसे सवालों पर घेरते हुए, उसके बरक्स निर्धन न्याय योजना को रखा है।  इन दोनों दलों के दावों और घोषणाओं की असलियत क्या है, यह जानना बड़ा जरूरी है ।जनधन, जनसुरक्षा, स्टार्टअप, स्टैंडअप, मुद्रा लोन जैसी योजनाएं सत्ताधारी दल एनडीए की बेहद सफल योजनाओं के रूप में प्रचारित की गई हैं। दरअसल ये सभी बैंकों की बदौलत चलायी जाने वाली योजनाएं हैं, जिनके लिए मौजूदा सरकार ने एक तरह से इन बैंकों के कंधे का प्रचुर रूप से इस्तेमाल किया। इससे बैंकों की न केवल कमर टूटी बल्कि शुरू के तीन सालों के दौरान इस वजह से अधिकतर बैंक घाटे में आ गए। इसी दौरान बैंकों में पहले से चल रही अनगिनत कर्ज अनियमितताओं से एनपीए में भारी बढ़ोत्तरी का भंडाफोड़ हुआ। इसी दौरान नोटबंदी जैसा घोर विवादास्पद कदम उठाया गया। इसको भी एक तरह से बैंकों की पीठ पर बैठकर ही अंजाम दिया गया। इसी दौरान नीरव मोदी सहित बैंकों के करीब एक दर्जन बड़े कर्ज व मनी लांडिंरग घोटाले दर्ज हुए। मोदी सरकार ने बैंकों को लेकर मचे इन सभी बवालों को एक तरह से पूर्व सरकार द्वारा की जाने वाली करतूतों से जोड़कर अपना पल्ला भले झाड़ लिया, परंतु हकीकत यह है कि इस सरकार द्वारा चिल्ला-चिल्लाकर किये गये दावे वाली मुद्रा योजना, स्टैंडअप व स्टार्टअप योजनाएं कर्ज रिश्वतखोरी का खूब शिकार हुईं। बैंकों में मौजूद संरचनात्मक भ्रष्टाचार, मुद्रा योजना में वैसे ही दिखा जैसे किसान क्त्रेडिट कार्ड बनाने में दिखता है। नोटबंदी व जीएसटी के दोषपूर्ण क्रियान्वयन की वजह से देश में तेजी से पनपी बेरोजगारी के जवाब में मौजूदा एनडीए सरकार बारम्बार मुद्रा योजना के लोन का हवाला देती है कि जिसमें करीब दस लाख करोड़ रुपये का कर्ज करीब पंद्रह करोड़ लोगों को कारोबार चलाने के लिए दिया गया। इस योजना के तहत कम पढ़े लिखे लोगों द्वारा छोटे मोटे धंधे के जरिये स्वरोजगार करने को देश में सभी तरह की बेरोजगारी के समाधान का एकमात्र विकल्प बनाकर पेश किया गया और दूसरी बात यह कि यह विकल्प भी दरअसल बैंकों में चले रहे भ्रष्टाचार का ही वायस बना है। यह तय मानिये कि यदि आपको पांच लाख का मुद्रा लोन लेना है  तो इसमें दस प्रतिशत राशि रिश्वत की भेंट चढ़ती है। यही हाल स्टार्ट व स्टैंडअप योजनाओं का भी है।  ऐसे में सवाल यह उभरता है कि इस देश की बारहोमासी चलने वाली समस्या भ्रष्टाचार पर समवेत नकेल डाल लेने का दावा एनडीए सरकार भी नहीं कर सकती। पहले यह दावा किया गया कि नोटबंदी कालेधन व भ्रष्टाचार पर चोट करने के लिये लायी गई है पर यह कदम देश में विकास, रोजगार, आमदनी को बुरी तरह प्रभावित करके  भी भ्रष्टाचार को नियंत्रित नहीं कर पाया। क्या हुआ इन सभी पर बड़ी संख्या में दर्ज एफ आईआर का? बात भ्रष्टाचार की चली है तो देश में करीब तीन दशक से नान बैंकिंग कंपनियों द्वारा लोगों को भारी ब्याज दरों के लालच के जरिये जमा कलेक्शन हासिल कर अनेक मौद्रिक घोटाले अंजाम दिये गए। बाद में वही करतब देश की रियल एस्टेट कंपनियों द्वारा हाउसिंग निवेश के इच्छुक लोगों से हाउसिंग प्रीलांचिंग स्कीमों के जरिये पैसे हड़पकर दोहराये गए। एक अनुमान के मुताबिक देश की करीब पांच हजार रियल स्टेट कंपनियों ने देश की जनता व बैंकों से करीब पंद्रह लाख करोड़ रुपये वसूल किये। मौजूदा एनडीए सरकार ने रियल एस्टेट व्यवसाय के सभी पक्षों के नियमन व संचालन के लिए जिसकी बरसों से आवश्यकता महसूस की जा रही थी,  एक नियमन संस्था रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी यानी रेरा बनाकर एक अच्छी पहल जरूर की परंतु राज्यों द्वारा मुख्य रूप से उपयोग की जाने वाली इस नियंत्रण निकाय की वस्तुस्थिति यह है कि इसे अब तक केवल दस राज्यों व पांच यूटी में गठित किया गया है और देश के केवल दो तिहाई राज्यों में यह रेरा पोर्टल चल पा रहा है।   एनडीए की नोटबंदी से उपजी बेरोजगारी के बरक्स कांग्रेस के रणनीतिकारों ने जो न्याय योजना पेश की है, वह इस पार्टी की मनरेगा व खाद्य सुरक्षा जैसी अनुत्पादक, भ्रष्ट व मुद्रास्फीतिकारी योजना की एक तरह से दूसरी कड़ी लग रही है। अच्छा होता यदि वह देश में एक नयी रोजगार नीति लाकर  एक व्यापक रोजगारपरक अर्थव्यवस्था का श्रीगणेश लाने की बात करती तब यह कहा जा सकता था कि बेरोजगारी को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर अपनी बढ़त दिखायी है।

(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार तथा ‘इकोनॉमी इंडिया’ पत्रिका के सम्पादक हैं)
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