देवभूमि के साक्षात्कार की पौड़ी

कोटद्वार  वर्तमान उत्तराखंड का प्रवेशद्वार माना जा सकता है। दिल्ली से लगभग 210 किलोमीटर दूर मेरठ, बिजनौर, नजीबाबाद होते हुए रेल अथवा सड़क मार्ग से कोटद्वार पहुंचा जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध सिद्धिबली धाम और दुर्गा देवी मंदिर के अतिरिक्त कण्वाश्रम, भारत नगर, चीला, कलागढ़, मेदानपुरी देवी और श्री कोटेश्वर महादेव देखने योग्य स्थल हैं। कोटद्वार शहर में खोह नदी के तट पर स्थित तथा शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ प्राचीन सिद्धबली मंदिर पूरी दुनिया में विख्यात है। बेशक समय, काल, परिस्थिति, नदी के प्रवाह के कारण यह मंदिर लगातार खतरे में माना जा रहा था। कुछ वर्ष पूर्व भूस्खलन के कारण श्री सिद्धबली मंदिर का कुछ भाग ध्वस्त हो गया था। शेष आश्चर्यजनक रूप से अपने स्थान पर ही टिका रहा। जनमान्यता है कि स्वयं बजरंग बली ने मंदिर को अपने कन्धों पर सहारा देकर बचाया। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर पर जाने के लिए काफी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। यहां अनेक बंदर भी कूद-फांद करते रहते हैं। श्रद्धा हर कठिनाई में भी मुस्कुराना जानती है इसीलिए प्रतिदिन हजारों लोग दूर-दूर से भगवान के दर्शन करने आते हैं। ऊंचाई पर स्थित मंदिर से नीचे की ओर निहारना प्रकृति के चमत्कार से साक्षात्कार करवाता है।  कोटद्वार के आसपास के क्षेत्रों में लैंसडाउन सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र है। हवा में घुली चीड़ की महक वाले कोटद्वार से 40 किमी की घुमावदार दूरी वाला लैंसडाउन देश के सबसे शांत हिल स्टेशनों में से एक है। इसका प्राचीन नाम कालूडांडा है लेकिन 1887 में लार्ड लैंसडाउन के यहां आने तथा इसे फिर से बसाने के कारण इसका नाम लैंसडाउन पड़ा। उन दिनों ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों की भर्ती और ट्रेनिंग के लिए यहां गढ़वाल राइफल्स का सेंटर खोला था। स्वतंत्रता आंदोलन की कई गतिविधियों का गवाह रह चुका यह स्थान सेना की छावनी तथा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण ब्रिटिश काल के अधिकारियों को भी आकर्षित करता रहा है। यहां की हरियाली जिसमें चीड़ तथा देवदार के वृक्ष हैं, इसे अतिरिक्त सौंदर्य प्रदान करती है। कोटद्वार शहर से लगभग 70  किलोमीटर की दूरी पर स्थित ताड़केश्वर महादेव प्रकृति की गोद में अद्वितीय शांति प्रदान करने वाला स्थान है। यहाँ बैठने के बाद प्राकृतिक सौन्दर्य  अपने मोहपाश में बांध लेता है जबकि कोटद्वार से लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित पौड़ी कंडोलिया पहाड़ी के उत्तर-पश्चिम में बसा हुआ है। यहां से हिमालय का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता है। गढ़वाल का श्रीनगर यहां 25 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान भी बेहद सुंदर है। यहां हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय तथा अनेक महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं। कुछ दूरी पर स्थित लैंसडाउन की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बना संतोषी माता मंदिर, भुल्ला ताल, चर्च और वार मेमोरियल है तो ‘टिफिन टॉप’ का रोमांच वर्षों बाद आज भी मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न करता है। (क्रमश:)

—विनोद बब्बर