चाय की चुस्की

‘लेकिन छोटे शहरों के बहुत कम बच्चे ही उन तक पहुंच पाते हैं क्योंकि बहुत सारी बातें इसमें अपनी-अपनी भूमिका अदा करती है, जिस कारण  छोटे शहरों की पहुंच उन शहरों तक कम हो जाती है क्योंकि छोटे शहरों के लोग बड़े शहरों की चकाचौंध से, उनकी बिंदास जीवन-शैली से घबराते हैं, उनको उस माहौल में अपने बच्चों के बिगड़ने का भय होता है, उनका नशे में लिप्त होने का भय सताता है। इन्हीं कुछ बातों के कारण छोटे शहरों के लोग अपने बच्चों को बाहर भेजने से डरते हैं ‘फिर पहला दोस्त बोला ।‘सही है, उन शहरों का महंगा होना भी एक कारण है, हर कोई इस खर्च को सहन नहीं कर सकता परन्तु यह सोचने वाली बात है कि शिक्षा और किताबें तो वही हैं लेकिन कंपीटीशनों  का तानाबाना ही इस तरह से बुना जाता है कि बड़े शहरों के बच्चे उसे पास कर लेते हैं लेकिन छोटे शहरों के बच्चे पिछड़ जाते हैं कुछेक को छोड़ कर फिर दूसरे दोस्त ने कहा। ‘सरकार शिक्षा के इस अन्तर को समझती क्यों नहीं है ,क्यों नहीं वह छोटे और बड़े शहरों के अन्तर को खत्म करती है, क्यों नहीं वह सम्पूर्ण देश की शिक्षा-प्रणाली को एक जैसा करती,क्या वजह है कि सरकारी स्कूलों में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर और ढेरों वेतन लेने के बावजूद भी अच्छे नतीजे नहीं आते, कुछेक को छोड़ कर ‘यह एक तीसरा ही दोस्त कह रहा था। बात अभी भी जारी थी।’‘उधर दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल कम शिक्षित लोगों को लेकर कम वेतन देकर भी अच्छे नतीजे दे रहे हैं। ’‘इस पर सचमुच ही सोचने की जरूरत है’ चौथे दोस्त ने कहा। सब दोस्त  इन बातों से सहमत लग रहे थे। पहले कभी-कभार वे लोग राजनीति पर बात करते-करते बहस करने लगते थे, लेकिन इस बात पर सब लोग सहमत लग रहे थे । ‘इसी अंतर के कारण कई बार छोटे शहरों के मेधावी बच्चे योग्य स्थान से वंचित रह जाते हैं, यह तो देश के विकास लिये भी अच्छा नहीं है, देश की जो सेवा वो बड़े स्तर पर कर सकते हैं वे नहीं कर पाते हैं। कमरे में से एक और दोस्त की आवाज़ आई। शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिये  और उसको सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिये, उच्च स्तर के प्रशासनिक कार्यकर्ताओं की खोज करनी होगी जोकि स्कूल और कालेजों को चला सकें और जिन का स्तर आईएएस के स्तर जैसा हो और जिन का उद्देश्य  देश के भीतर सिर्फ  और सिर्फ  शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने का हो और देश में योग्य व्यक्तियों को आगे लाने का हो। सरकार को देश में ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिससे कि जब भी कोई विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करके निकले उसे तुरन्त नौकरी मिलनी चाहिए,  यह सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को लोगों को मुफ्त सामान देना, सब्सिडी देना या फिर आरक्षण देने की बजाय उनको रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाना चाहिए न कि भिखारी या फिर किसी की दया के पातर कमरे के दूसरे कोने से एक और दोस्त की आवाज़ आई ।कमरे का वातावरण एकदम उच्च स्तर का हो गया था। कमरे के भीतर यूँ प्रतीत हो रहा था जैसे देश को चलाने वाले लोग बैठें हो। लेकिन अफसोस उनके पास सिवाय सलाहों के कोई और अधिकार न था और शायद जिनके पास अधिकार है उनके पास इस तरह की सलाहों के लिए समय ही नहीं है । वो तो अपने ही .........? दोस्तों की मीटिंग रोज की तरह आज फिर चाय के साथ खत्म हो गई है। सब अपने-अपने काम पर जाने के लिए तैयार है। कमरे के अंदर उन सब दोस्तों की उच्च स्तर की सलाहे वैसे ही चाय के खाली कपों से आ रही दुर्गन्ध को सूँघ रही है और बाहर सड़क पर चुनाव-प्रचार की काँव-काँव ने शोर मचा रखा है। देश के लोग रोज सोच-विचार करते हैं और अपने सलाह-मशवरे एक-दूसरे के साथ सांझा करके उनको अपने साथ ही लेकर सो जाते हैं और हर पाँच वर्ष बाद अपना वोट डालने का नैतिक-फज़र् भी अदा कर आते हैं। उनको यही अहसास करवाया जाता है कि उनकी इतनी ही जिम्मेदारी है।  

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