तलाश एक मुद्दे की !!

शादी के लिये घोड़ी की, कील के लिये हथौड़ी की, टिकट के लिये सिफारिश की, फसल के लिये बारिश की, रजाई के साथ गद्दे की जितनी जरूरत होती है, उतनी जरूरत चुनाव जीतने के लिये  मुद्दे की होती है। तो आजकल सभी नेताओं को एक अदद मुद्दे की तलाश है। क्योंकि सभी को सत्ता की प्यास है। किसी को मंदिर की, तो किसी को धर्म-निरपेक्षता की  आस है। सत्ता की चाभी जनता के पास है। जनता भले ही बिजली, पानी से निराश है। परन्तु उसे मुद्दे और वादों से ही आस है। इसलिए सभी को एक अदद मुद्दे की तलाश है। विद्वान लोग कह रहे हैं कि आजकल मुद्दों का टोटा है। इसलिए नेताओं का दिल छोटा है। मगर नेताओं को पता है कि बिना मुद्दे के दिल टोटे-टोटे हो जाएगा। इसलिए सभी अपने लेवल के अनुसार मुद्दे उछाल रहे हैं। कुछ पुराने पर चल  रहे हैं, तो कुछ नए मुद्दे संभाल रहे हैं। एक पार्टी का मुद्दा है कि उसने अपने शासन काल में देश को इतना पालिश लगाया कि देश शाइनिंग कर रहा। (चूना लगाना वैसे भी ओल्ड फैशन है।)  हर आदमी हाथ में मोबाइल लेकर ठुमक रहा है। विदेशी सामान और कम्पनियाँ मेक इन इण्डिया कर रही हैं। और जनता तो इंपोर्टेंड सामानों से फीलगुड़ कर रही हैं। राजग ने इतनी सड़कें बनवाई, कि पांच साल में ही सारी जनता सड़क पर आ गयी।  जो बची है वह भी अगले कार्यकाल में रोड पर आ जाएगी। त्याग उनमें कांग्रेस से ज्यादा है। किसी और पार्टी ने इतने त्याग किए हैं? उसके लिए विकास बहुत अहम है। सत्ता में बने रहना अहम है।  दूसरी पार्टी के पास तो मुद्दों की भरमार है। विपक्ष में रहकर लाचार है। वैसे भी चुनाव में मुद्दे गढ़ना सबका जन्म सिद्ध अधिकार है। उसे सत्ता के लिए इंतजार अब स्वीकार्य नहीं है। दूसरे पार्टी के नेताओं की शुद्धता पर एतबार नहीं है। सभी विदेशी चीजों से प्यार है। इंपोर्टेंड सामानों की दरकार है। दूसरी पार्टी के पास भी मुद्दों का अभाव नहीं है। कोई बात नहीं गर आजकल उसका प्रभाव नहीं है। फिर भी टू जी और कामनवेल्थ जैसा कर दिया घोटाला। अन्ना जी की लड़ाई बड़ी हो गयी। लोकपाल की खटिया खड़ी हो गयी। पार्टी का मुद्दा है कि वह जनता को झटका लगने भर की पर्याप्त पानी बिजली देगी। डूब मरने को पर्याप्त पानी दिलाएगी। हर हाथ को काम मिलेगा।  बंद कारखानों के ताले खुलेंगे। आखिर पार्टी को ताले खुलवाने का अनुभव जो है। जब बाबरी मस्जिद का ताला खोल दिया तो कारखानों के ताले में क्या है? अब जनता ही जाने, कि किस पर लॉक किया जाये! अपने भाई और सुपुत्र के साथ वंशवाद मिटा रहे हैं। बेगारी भत्ते देने की आस दिला रहे हैं। जीतने पर सबको टैबलेट दिलाएँगे। साइकिल में डायनमो लगाकर, सबको बिजली दिलाएँगे। यूपी से भ्रष्टाचार मिटाएँगे। धर्म-निरपेक्षता लाएँगे। अपने जन्मदिन पर केक काटकर दलितों को सामाजिक समानता दिला रही हैं। सत्ता के लिए मनुवादियों के गले लगकर बाबा साहब का सपना साकार बना रही हैं। हाथी की सूंड का ऊपर नीचे होना उनका मुद्दा है। जीते जी अपनी मूर्ति को माला पहनाना उनका माद्दा है। सभी विद्वानों में इस बात पर मतभेद हैं कि, चुनाव मुद्दे पैदा करते हैं? या मुद्दे, चुनाव पैदा करते हैं। शोध् जारी है। जनता के लिए समस्याएं, मुद्दा हैं। नेताओं के लिए मुद्दे ढूँढना समस्या है। मुद्दे के बिना, बेकार अनशन और उपवास है। इसलिए हर पार्टी को एक चुनाव जिताऊ मुद्दे की तलाश है। 

(सुमन सागर)