कारोबारियों का समर्थन पाना भाजपा की बड़ी चुनौती

आजाद भारत का संभवत: यह पहला चुनाव है जिसमें देश के कुछ शीर्ष उद्योगपतियों तथा कारोबारियों ने खुलकर किसी उम्मीदवार का समर्थन किया है। मुंबई दक्षिण से कांग्रेस के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी और कोटक महिंद्रा बैंक के प्रबंधक निदेशक उदय कोटक के साथ कई कारोबारी उनका नाम लेकर समर्थन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसके पहले उद्योगपति या कारोबारी किसी उम्मीदवार या पार्टी का समर्थन नहीं करते थे, परन्तु तब यह पर्दे के पीछे से होता था। उद्योगपति.करोबारी पार्टियों को चंदा भी देते रहे हैं किंतु कोशिश यही रहती है कि उन्होंने किसको कितना चंदा दिया, यह सार्वजनिक नहीं हो। वस्तुत: किसी भी व्यापारी की आम सोच यही होती है कि एक पार्टी को खुलेआम समर्थन करना दूसरी पार्टियों का कोपभाजन बनना होगा जो उनके कारोबार को प्रभावित कर सकता है।  मुकेश अंबानी और उदय कोटक जैसे दिग्गजों ने खुलेआम वीडियो में समर्थन जताकर इस परम्परा को तोड़ा है। वीडियो रिकॉर्डिंग किए जाते समय उन्हें पूरी तरह पता था कि इसके सार्वजनिक होने के बाद सभी देखेंगे। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के दूसरे नेता भी शामिल होंगे। यह जानते हुए ऐसा करना एक कारोबारी की मानसिकता तथा भारत में अभी तक की परम्परा के अनुसार देखें तो असाधारण है। माना जाता था कि मुकेश अंबानी सहित उद्योग एवं कारोबार जगत नरेन्द्र मोदी के साथ है। उदय कोटक ने विमुद्रीकरण का समर्थन किया था। तो क्या इनकी सोच में बदलाव आया है? आखिर क्या मायने हैं इस असाधारण रवैये के?अंबानी और कोटक ने पार्टी का नाम नहीं लिया है किंतु आप जिस उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं, वह कांग्रेस पार्टी का है, यह सबको पता है। मुकेश अंबानी ने दक्षिण मुंबई से देवड़ा के जुड़ाव को उद्यमिता बढ़ाने, नया रोजगार सृजन करने में सहायक होने की बात कही है। यह सभी जानते हैं कि दक्षिण मंबई में एक इंच जमीन मिलना कठिन है। इसलिए यह कारण गले नहीं उतर सकता। वैसे भी इतने के लिए वे भाजपा जैसी पार्टी को नाराज नहीं कर सकते। भाजपा भविष्य में केन्द्रीय सत्ता में रहे या नहीं, पर वह इतनी शक्तिशाली रहेगी कि देश की नीतियों को प्रभावित कर सके। कुछ राज्यों में उसकी सरकार अवश्य होगी। यह कहना भी पूरे मामले का सरलीकरण हो जाएगा कि इन्हें मोदी सरकार के जाने का आभास हो गया है इसलिए सामने आ गए हैं। पूंजीपतियों के पास जमीनी स्थिति समझने के लिए हमारे-आपसे ज्यादा स्रोत होते हैं। अपने स्रोत से प्राप्त जानकारी के अनुसार ही वे पार्टियों को चंदा देते हैं। वर्तमान राजनीतिक स्थिति में विपक्ष की कोई भी सरकार इतने दलों के वर्चस्व वाली होगी जिसके लिए आर्थिक मोर्चा पर कठोर निर्णय करना कठिन होगा। इसका अहसास भी उनको है। इन सबके बावजूद यदि उन्होंने ऐसा किया है तो इसके मायने कुछ दूसरे होंगे। एक कारण तो कांग्रेस से रिश्ता सुधारना समझ में आता है। राहुल गांधी और कांग्रेस अनिल अंबानी को निशाना बना रहे हैं। अनिल को जेल जाने से बचाने के लिए मुकेश ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार एरिक्शन कंपनी को 550 करोड़ रुपया चुका दिया। इससे साबित होता है कि अलग होते हुए भी छोटे भाई से उनका लगाव है। इसे कांग्रेस से रिश्ता सुधारने की कोशिश भी समझा जा सकते हैं। संभव है, अंबानी परिवार मोदी समर्थक होने के ठप्पे से भी बाहर आना चाहता हो। वह यह बताने की कोशिश कर रहे हों कि हम किसी एक के अंध समर्थक नहीं हैं किंतु यही बात उदय कोटक या अन्यों के साथ लागू नहीं होती। वैसे इनको मालूम है कि एक उम्मीदवार का समर्थन करने का संदेश काफी दूर जाएगा। इतने बड़े दिग्गज कारोबारी के बयानों का दूसरों पर भी मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है। इनका उद्देश्य जो भी हो, पिछले दो वर्षों में उद्योगपतियों और कारोबारियों के अंदर मोदी सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा है, यह सच है। आप किसी व्यापारी संगठन के नेताओं से बात करिए या किसी बिल्डर या बैंकर से आपको स्थिति का आभास हो जाएगा। विमुद्रीकरण और जीएसटी दूरगामी दृष्टि से लाभकारी कदम हो सकते हैं लेकिन तात्कालिक तौर पर हर प्रकार के कारोबार करने वालों को सीधा आघात लगा। हमारे देश में नकद करोबार और उसके माध्यम से कर चोरी एक सहज स्वीकृत स्थिति रही है। पहले विमुद्रीकरण ने इस पर चोट की। बिल्डरों के लिए तो आफत आ गई, क्योंकि उनका करीब 80 प्रतिशत कारोबार नकद में था जिसका न हिसाब देने की आवश्यकता थी और न कर देने की। उससे उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि जीएसटी आ गया। हालांकि जीएसटी में अब काफी सुधार आ गया है और यह व्यापारियों के लिए काफी अनुकूल बन चुका है, फिर भी परम्परागत मानसिकता वाले भारत में नई व्यवस्था को स्वीकारना जरा कठिन होता है। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी ने ऐसे कानून बनाए जिनकी अपेक्षा कम्युनिस्ट सरकारों से की जाती थी। भवन निर्माण में बिल्डरों के मनमानापन और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए रेरा कानून। हालांकि नीचे स्तर पर पुलिस और प्रशासन के भ्रष्टाचार के कारण यह जमीन पर पूरी तरह लागू नहीं हो रहा है किंतु कानून का भय तो पैदा हुआ ही है। इस कानून के अनुसार बिल्डर खरीदारों को निर्धारित समय में मकान देने के लिए पाबंद हैं तथा एक परियोजना का धन वे दूसरे में तब तक नहीं लगा सकते जब तक कि वह पूरी न हो जाए। इनमें जेल व जुर्माने का प्रावधान है। इसके साथ कालाधन कानून, दिवालिया कानून, बेनामी संपत्ति कानून, आयकर कानूनों में व्यापक परिवर्तन, आर्थिक अपराधी भगौड़ा कानून आदि ने हर प्रकार के कारोबारियों को भयभीत कर दिया है। बैंकों को डूबी राशि वसूलने के व्यापक अधिकार दिए गए हैं। विमुद्रीकरण के बाद से दो लाख कंपनियों के निबंधन रद्द हुए हैं, कई लाख निदेशकों को भविष्य में किसी कंपनी का निदेशक बनने के अयोग्य करार दे दिया गया है। तीन लाख से ज्यादा कंपनियों की आय और कारोबार की जांच चल रही है। केवल प्रवर्तन निदेशालय के पास कम से कम एक लाख के आसपास धनशोधन के छोटे-बड़े मामले हैं। इन सारे कदमों से ईमानदार एवं नियम-कानूनों का पालन करने वाले खुश भी हैं, पर एक बड़े वर्ग को भय है कि अगर मोदी लौटे तो हमारे लिए और समस्यायें पैदा होंगी। वैसे वे यह भी कहते हैं कि दूसरे से यह भय है कि कहीं वह ज्यादा परेशानियां पैदा न कर दे। वैसे यह भी सच है कि मोदी सरकार ने इसके समानांतर व्यापार के मार्ग में आने वाले अनेक बाधक कानूनों को समाप्त किया है। नियमों को लचीला बनाया है, कंपनियों का निबंधन पहले से आसान हुआ है। उद्योग या कारोबार के लिए बैंक से कर्ज लेना भी आसान बनाया गया है। लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए गए हैं। बिना गारंटी के एक करोड़ तक का कर्ज मिलने का प्रावधान बन गया है। नौकरशाही का स्थान काफी कम कर दिया गया है। जिन कार्यों के लिए विभागीय कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते थे, उनमेेें से ज्यादातर नेट और वेबसाइट पर पूरा किया जा सकता है। भारत में व्यापार ज्यादा सुगम हुआ है और इसकी रैकिंग भी सुधरी है। इसके बावजूद कारोबारियों का बड़ा वर्ग आशंकित है। गुजरात चुनाव में पटेलों के अलावा व्यापारियों की नाराजगी का अहसास भाजपा को हो गया था। प्रधानमंत्री ने एक राज्य के विधानसभा चुनाव में 34 आम सभायें कीं। चुनाव अभियान में शायद कुछ संकेत मिला। इसलिए राजधानी के तालकटोरा स्टेडियम में देश भर के कारोबारियों से प्रधानमंत्री ने संवाद किया। उसमें उन्होंने व्यापारियों के हित में उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ भविष्य की योजनाएं भी बताईं। मोदी ने अपनी ओर से आश्वस्त करने की कोशिश की कि उनका लक्ष्य भारत में उद्योग और हर प्रकार के वैध कारोबार को प्रोत्साहित कर भारत को दुनिया की प्रमुख आर्थिक शक्ति बनाना है इसलिए वे आश्वस्त रहें। किसी प्रकार का भय और आशंका मन में न पालें। उनके आश्वासन से कारोबारी वर्ग कितना प्रभावित हुआ, कहना कठिन है। कुल मिलाकर आज का सच यही है कि कारोबारी वर्ग भाजपा को लेकर आगा-पीछा की स्थिति में है। 

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