एशियन चैंपियनशिप भारतीय मुक्केबाज़ों का अच्छा प्रदर्शन

कविंदर सिंह भिष्ट की भौं से खून बहता हुआ उनके गाल तक आ गया था। कविंदर को यह कट क्वार्टर फाइनल में विश्व चैंपियन कैरात येरालियेव (कजाखस्थान) को पराजित करने के दौरान लगा था, फाइनल में यह जख्म फिर खुल गया था, एशियन गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता मीरअजीजबेक मिर्जाहलिलोव (उज्बेकिस्तान) से मुकाबला करते हुए, क्योंकि वह  कविंदर के कट पर हमला करने के लिए फोकस किये हुए थे। लेकिन इस बात से बिना डरे कविंदर अपना ही घातक हमला करने में लगे हुए थे। हालांकि अंत में 24 वर्षीय कविंदर यह मुकाबला अवश्य हार गये, लेकिन बैंकाक में एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स में अपने शानदार प्रदर्शन से उन्होंने विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति की घोषणा कर दी। एक अकेले कविंदर ही नहीं इस प्रतियोगिता में पूरे भारतीय दल का प्रदर्शन यादगार रहा। यह पहला अवसर था, जब यह चैंपियनशिप संयुक्त रूप से दोनों पुरुषों व महिलाओं के लिए आयोजित की गई। इसमें भारत ने न सिर्फ  अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 13 पदक जीते (2 स्वर्ण, 4 रजत और 7 कांस्य) बल्कि पिछले साल के एशियन गेम्स से यह कहीं बेहतर रहा, जब भारत मुक्केबाजी में केवल एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक ही जीत सका था। पूजा रानी (81 किलो) व अमित पंघाल (52 किलो) ने स्वर्ण पदक जीते, सिमरनजीत कौर (64 किलो), कविंदर सिंह भिष्ट (56 किलो), दीपक सिंह (49 किलो) व आशीष चौधरी (75 किलो) ने रजत पदक जीते, जबकि निकहत जरीन (51 किलो),मनीष मौन (54 किलो), सोनिया चहल (57 किलो),सरिता देवी (60 किलो), शिव थापा (60 किलो), आशीष (69 किलो) व सतीश कुमार (़91 किलो) ने कांस्य पदक जीते। हालांकि 23 वर्षीय अमित पंघाल ने आशानुरूप कोरिया के किम इन्क्यु को पराजित करके स्वर्ण पदक जीता और अपने भार वर्ग में विश्व में सर्वश्रेष्ठ में से एक होने की अपनी ख्याति स्थापित की, लेकिन यह चैंपियनशिप वास्तव में पूजा रानी की रही, जिन्होंने विश्व चैंपियन वांग लीना (चीन) को शिकस्त देकर स्वर्ण पदक जीता। इस मुकाबले में पूजा निडर रहीं और उन्होंने एक उद्देश्य के तहत अटैक किया। छह बार राष्ट्रीय चैंपियन रह चूंकि हरियाणा की पूजा को उस समय बहुत निराशा हुई थी जब पिछले साल उन्हें नई दिल्ली में आयोजित विश्व चैंपियनशिप के लिए चुना ही नहीं गया था, उनके भार वर्ग में ट्रायल कराये बिना। लेकिन अपने को साबित करने के लिए पूजा ने इस साल के शुरू में राष्ट्रीय खिताब जीता। वैसे एशियन चैंपियनशिप्स में पूजा का यह तीसरा पदक था, उन्होंने 2012 में रजत और 2015 में कांस्य पदक जीते थे। ध्यान रहे कि 28 वर्षीय पूजा के पिता नहीं चाहते थे कि वह मुक्केबाज बने, उन्हें मनाने में पूजा व भिवानी में उनके कोच को छह माह से अधिक समय लगा था। भारतीय बॉक्सिंग सीन बहुत अच्छा व बहुत सकारात्मक प्रतीत हो रहा है। पिछले साल के एशियन गेम्स में हम बहुत पीछे थे, लेकिन इस साल की एशियन चैंपियनशिप्स के प्रदर्शन से मालूम होता है कि हमनें सकारात्मक दिशा में बड़ा कदम उठाया है, जिससे टोक्यो ओलंपिक क्वालिफिकेशन के लिए संभावना बढ़ जाती है बशर्ते कि विश्व चैंपियनशिप्स के लिए ठीक से तैयारी हो सके। एशियन चैंपियनशिप में भारत का प्रदर्शन पसीने व खून की कहानी रहा,जो इस खेल को देश में नई बुलंदियों को स्पर्श कराने में प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। ध्यान रहे कि अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने दिसम्बर 2012 में भारतीय मुक्केबाजी संघ को निलम्बित कर दिया था, जिससे अगले तीन वर्ष तक भारतीय मुक्केबाजों का भविष्य अधर में लटक गया था कि वह अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में हिस्सा नहीं ले पा रहे थे और उन्हें एक्सपोजर भी नहीं मिल पा रहा था। उन दिनों की याद करते हुए कविंदर बताते हैं, ‘हम इस आशा में अपनी प्रैक्टिस जारी रखे हुए थे कि कभी तो स्थिति में सुधार आयेगा। उस समय हम छोटी-छोटी प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे थे, एक प्रमुख प्रतियोगिता में मेरा यह पहला पदक है। क्वार्टर फाइनल में विश्व चैंपियन को पराजित करना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी। जब आप बड़े खिलाड़ी से मुकाबला करते हैं और उससे जीत जाते हैं तो आपका आत्मविश्वास खुद ही बढ़ जाता है। पंघाल ने पिछले साल एशियन गेम्स में 49 किलो में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन ओलंपिक में यह श्रेणी नहीं है, इसलिए इस प्रतियोगिता में उन्होंने 52 किलो में हिस्सा लिया और ऐसा वह पहली बार कर रहे थे। वह बताते हैं,‘मैंने अपनी पॉवर व पहुंच पर वर्क किया है। यह पदक मेरे लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि मैं टॉप खिलाड़ियों के समक्ष अपने को टैस्ट कर सका, जिनसे मेरा मुकाबला विश्व चैंपियनशिप्स में भी होगा।’ अब भारत के मुक्केबाज़ रिंग में अधिक आक्रामकता दिखा रहे हैं, जिसका उन्हें लाभ भी मिल रहा है। ताजीकिस्तान व कजाकस्थान के बॉक्सर निरंतर पंच फेंकते रहते हैं। भारत के राष्ट्रीय कोच सीए कुट्टप्पा भी चाहते थे कि हमारे बॉक्सर अधिक अटैक करें व आक्रामकता प्रदर्शित करें। इस प्रतियोगिता में उन्होंने इसका अच्छा प्रदर्शन किया। सामने वाली की रक्षात्मक योजना को विफल करना एक अन्य पहलू था जिस पर काम की आवश्यकता थी। कोच बताते हैं, ‘हमारे बॉक्सर उस समय कुछ नहीं कर पाते थे जब प्रतिद्वंद्वी होल्डिंग या क्लिंचिंग जैसी रणनीति अपनाता था। इस क्षेत्र पर हमने वर्क किया और नतीजा सबके सामने है।’

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर