सत्य के अवतार महर्षि सुदर्शन

ऋषियों-मुनियों की जन्मस्थली भारतवर्ष का दुनिया में अपना अलग ही स्थान रहा है। सारे विश्व को धर्म का उपदेश भारत ने ही दिया है। जितने ऋषि-मुनि, पुण्यात्मा भारत में अवतरित हुए हैं उतने विश्व के किसी भी देश में नहीं हुए। यही कारण है कि भारत की धर्मपताका सारे विश्व में आज भी फहरा रही है। जिस प्रकार आदिकाल में पुण्य को पाप का ग्रहण लगा हुआ है उसी प्रकार पुण्यात्माएं भी दुष्टात्माओं से पीड़ित रही हैं। धर्म और सत्कर्म मोक्ष का मार्ग है। मोक्ष का तात्पर्य है जीवन-मरण के चक्र से आत्मा की मुक्ति मिलना। ऋषियों-मुनियों, आचार्यों, महर्षियों में महाभारत कालीन श्रीकृष्ण भक्त महर्षि सुपंच सुदर्शन जी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा है। देवाधिदेव महादेव की बसाई नगरी काशी तीर्थों में सबसे न्यारी कही जाती है। ऐसी मान्यता है कि काशी में प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बारह ज्योतिर्लिंगों में बाबा विश्वनाथ का मंदिर काशी में है। पतित पावनी गंगा बाबा विश्वनाथ मंदिर से होती हुई गोलाई में बहती जाती है। अनेकों ऋषियों-मुनियों की तपोस्थली काशी में द्वापर युग के सत्य स्वरूप कृष्ण भवन, साहित्य प्रेमी, सत्य के अवतार महाभारत काल के एक वैष्णव भक्त अपने समय के परम तेजस्वी संत, योग शिरोमणि एवं ब्रह्म ज्ञान विभूषित संत महर्षि सुपंच सुदर्शन जी का जन्म हुआ था। आप एक दलित सुसम्पन्न परिवार में फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को अवतरित हुए। आपके पिता नरहरि तथा माता लक्ष्मी देवी थी। आपकी शिक्षा संत श्री करुणामय आचार्य के सान्निध्य में हुई। वह मानव सेवा, भक्तिभाव और सत्य की खोज में निरत रहते थे।  आपके माता-पिता का प्रोत्साहन भी आपके इस कार्य में मिला। छल-कपट से दूर भगवत भजन में आपका मन रहता था। बहुत कम समय में ही काशीवासियों व आसपास के क्षेत्रों में आपकी कीर्ति फैल गयी। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बंगाल आदि देश के बड़े-बड़े राज्यों के अलावा अन्य छोटे-छोटे राज्यों में भी आप विख्यात हुए तथा असंख्य लोगों की श्रद्धा का केंद्रबिंदु आप बने। आपकी ख्याति का वर्णन सूपा भक्त, सूपन, सूपत, सुपंच आदि के अलग-अलग नामों से अलग-अलग ग्रंथों में मिलता है, पर आपका वास्तविक नाम श्री सुदर्शन जी ही था। महाभारत ग्रंथ में सुदर्शन जी के संबंध में एक कथा देखने को मिलती है, जिसमें आपकी पावन और महिमा के दर्शन होते हैं। सुपंच सुदर्शन जी ने अपने उपदेशों में लोगों से कहा कि हमें भगवान से डरना चाहिए। जो भगवान का भय मानकर आचरण करते हैं, वे सदा निर्भर रहते हैं। मनुष्य को बौद्धिक बल, शारीरिक बल, सौंदर्य बल और धन बल का कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि ये क्षणिक बल होते हैं। मनुष्य को किसी को भी हीन भावना से नहीं देखना चाहिए। सुपंच जी लोगों को बताते थे कि मनुष्य को सांसारिक सुखों के पदार्थों और भोगविलास से परे रहकर पारलौकिक आनंद की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। सुपंज जी ने सत्यवचन और परोपकारी मनोवृत्ति अपनाने के लिए हमेशा प्रेरित किया।

प्रस्तुति-फ्यूचर मीडिया नेटवर्क