कुपोषण से बच्चे हो रहे बौने

इसमें कोई शक नहीं कि भारत ने कुछ ही सालों में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है और वह विश्व शक्ति बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ जमीनी सच्चाइयां ऐसी हैं जो इस प्रगति का मुंह चिढ़ाती हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है कुपोषण का। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हाल ही में आई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बिहार के शून्य से पांच साल तक के 48.3 फीसदी बच्चे कुपोषण की वजह से बौनेपन का शिकार हैं। इस पूरे राज्य के 38 जिलों में से 23 जिलों के बच्चों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है । इस प्रांत में तकरीबन 43 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, जिसमें बड़वानी, श्योपुर तथा बैतूल जिले सबसे आगे हैं। इनमें 42 फीसदी बच्चे बौनेपन, 25.8 फीसदी बच्चे  पतलेपन तथा 10 लाख बच्चे गंभीर पतलेपन के शिकार हैं । आयु के अनुपात में कम लंबाई वाले दुनिया के हर दस बच्चों में से तीन भारत के होते हैं । गौरतलब है कि भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 21 फीसदी बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में हैं । देश में बाल कुपोषण 1998-2000 के बीच 17.1 फीसदी था जो 2012-16 के बीच बढ़कर 21 फीसदी हो गया । कहा तो यहां तक जाता है कि पड़ोसी देश श्रीलंका और चीन का रिकॉर्ड इस मामले में भारत से बेहतर है जहां क्रमश: 15 फीसदी तथा 9 फीसदी बच्चे कुपोषण तथा अवरुद्ध विकास से पीड़ित हैं। हमारे देश की 33.6 फीसदी महिलाएं गंभीर रूप से कुपोषण तथा 55 फीसदी एनीमिया की शिकार हैं । कुपोषण के कारण पांच साल से कम आयु के लगभग 20 प्रतिशत बच्चों की मौत देश में हर साल हो रही है। इतना ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली के स्लम इलाकों के 36 फीसदी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। क्राई तथा अलायंस फ ॉर पीपुल्स राइट्स द्वारा दिल्ली के स्लम इलाकों के 3,650 बच्चों पर हाल में किए गए एक अध्ययन में 636 लड़के और 674 लड़कियां कुपोषित पाई गईं । एक अनुमान के अनुसार देश में छह करोड़ से भी अधिक बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं । कुपोषण की जद  में  आने  के  बाद  बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता या उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है, जिससे बच्चा खसरा, निमोनिया, पीलिया या फि र मलेरिया जैसी बीमारियों की गिरफ्त में आकर कई बार दम तोड़ देता है। बच्चे मरते तो कुपोषण से हैं लेकिन लोगों को लगता है कि उनकी मौत बीमारियों के कारण हो रही है। साथ ही गर्भवती महिलाओं को उचित पोषक तत्व युक्त भोजन न मिल पाना बच्चों की मृत्यु का मुख्य कारण है। इस भयावह स्थिति से बचने के लिए अभिभावकों को जागरूक करने के अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों को मॉडल बनाते हुए उनमें शौचालय तथा शुद्ध पानी के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को भी सुदृढ़ बनाए जाने के अलावा स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षित होना भी जरूरी है ।