पंजाब में गर्माया राजनीतिक मैदान

लोकसभा चुनावों के अंतिम सातवें चरण में 7 राज्यों एवं एक केन्द्रीय शासित प्रदेश चंडीगढ़ में 59 सीटों के लिए 19 मई को वोट पड़ेंगे। इन राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश शामिल हैं, क्योंकि पंजाब में भी इस अंतिम चरण के दौरान ही वोट पड़ेंगे, इसलिए राज्य में राजनीतिक गतिविधियां बेहद तेज़ हो गई हैं। इस समय राज्य में कांग्रेस, अकाली-भाजपा गठबंधन, आम आदमी पार्टी, पंजाब जनतांत्रिक गठबंधन तथा कई अन्य आज़ाद उम्मीदवार चुनाव मुहिम में डटे हुए हैं। राष्ट्रीय पार्टियों के नेताओं का ध्यान भी अब पंजाब की ओर हो गया है। इस कारण राज्य में राजनीतिक गतिविधियां बेहद तेज़ हो गई हैं। यदि आज (13 मई) की ही बात करें, तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बठिण्डा में चुनाव रैली को सम्बोधित किया गया है। इसी दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने होशियारपुर और खन्ना में चुनाव रैलियों को सम्बोधित किया है। 14 मई, को प्रियंका गांधी बठिण्डा में चुनाव रैली को सम्बोधित करेंगी। 15 मई को राहुल गांधी बरगाड़ी और मुल्लांपुर दाखा में चुनाव रैली को सम्बोधित करेंगे। आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल द्वारा 15 मई को ही बठिण्डा और 16 मई तथा 17 मई को लुधियाना लोकसभा क्षेत्र में दो रैलियों को सम्बोधित किया जायेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भी 17 मई को लुधियाना में एक और रैली को सम्बोधित किया जायेगा। नि:संदेह राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के पंजाब आगमन से राज्य में चुनाव प्रचार शिखर पर पहुंच जायेगा। उपरोक्त राजनीतिक नेता अपने-अपने मुद्दे उछालकर लोगों को अपने पक्ष में वोट डालने के लिए प्रभावित करेंगे। परन्तु यदि 11 अप्रैल से 12 मई तक लोकसभा चुनावों के मुकम्मल हुए 6 चरणों को देखें तो इसमें स्पष्ट तौर पर यह नज़र आ रहा है कि राजनीतिक पार्टियों के नेता लोगों के ज्वलंत बुनियादी मुद्दों, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, उद्योग, व्यापार और कृषि संकट आदि की ओर बहुत कम ध्यान देते रहे हैं, अपितु अलग-अलग तरह के भावनात्मक मुद्दे उठाकर यहां तक कि धर्म और जाति के आधार पर लोगों में फूट डालकर वोट लेने के लिए अधिक प्रयास करते दिखाई दिए हैं। दूसरी तरफ यदि आम लोगों की बात करें तो वह चाहते हैं कि अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के नेता उनके ज्वलंत मुद्दों की बात करें और उनके समक्ष ऐसे कार्यक्रम और नीतियां रखें, जिनसे सस्ती और स्तरीय शिक्षा गरीब छात्रों की पहुंच में हो सके। बेरोज़गारी तथा अंधकारमयी भविष्य को देखकर यहां से पलायन कर रहे करोड़ों नौजवानों को अपने ही देश में रोजी-रोटी कमाने के अवसर मिलें। किसान और खेत मज़दूर यह चाहते हैं कि कृषि के व्यापक संकट को हल किया जाए और किसानों को उनकी फसलों के लाभदायक मूल्य मिलें, जिससे उनकी आर्थिकता को प्रोत्साहन मिल सके। इसी तरह लोग यह भी चाहते हैं कि धरती का तापमान बढ़ने के साथ-साथ हवा, पानी और खाद्य पदार्थों का जो प्रदूषण बढ़ रहा है और जिस कारण लोग भयानक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं, इस संबंध में भी राजनीतिक नेता अपनी संवेदनशीलता का प्रगटावा करें और लोगों के समक्ष इस समस्या का भी कोई ठोस हल पेश करें। लोगों में अपने मुद्दों के प्रति आई जागरूकता के कारण ही पंजाब के अलग-अलग स्थानों पर बेरोज़गार नौजवानों और किसानों द्वारा अलग-अलग उम्मीदवारों को तीखे सवाल किए गए हैं। इस समूची चर्चा के संदर्भ में हम अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं को अपील करना चाहते हैं कि पंजाब जोकि देश के अनाज भण्डार में गत लम्बे समय से निरन्तर 60 प्रतिशत का योगदान डालता आ रहा है और देश की सुरक्षा में भी इसके नौजवानों ने हमेशा आगे होकर कुर्बानियां की हैं, को इस समय आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए उपयुक्त नीतियों की ज़रूरत है। इसलिए अपनी चुनाव मुहिम के दौरान उनको लोगों के समक्ष अपनी ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों का विवरण देना चाहिए कि यदि वह वोट डालते हैं, तो वह उनके ज्वलंत मामलों को कैसे हल करेंगे? यदि राजनीतिक पार्टियां लोगों के ज्वलंत मामलों को हल करने में नाकाम रहती हैं तो लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति लोगों की उदासीनता बढ़ेगी। अब भी अलग-अलग राज्यों से यह रिपोर्टें आ रही हैं कि 2014 के मुकाबले लोगों में वोट डालने के लिए कम उत्साह देखा जा रहा है और जिस कारण समूचे तौर पर पूर्व लोकसभा चुनावों की अपेक्षा इस बार मत प्रतिशत कम रहने की सम्भावना है। लोगों का लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास बनाये रखने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि राजनीतिक पार्टियों के नेता लोगों की समस्याओं को मुख्य रख कर लेकिन सोच-समझ कर वायदे करे और यदि उनको सत्ता में आने का अवसर मिलता है तो ईमानदारी से उनकी पूर्ति भी करें। इस तरह ही लोगों का लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास बना रह सकता है। अब हम आगामी दिनों में ही यह देखेंगे कि राजनीतिक पार्टियों के नेता इस कसौटी पर कितने पूरे उतरते हैं?