क्या आरबीआई बैंक डिफाल्टरों को बचा रहा है ?


भारतीय रिजर्व बैंक को ‘विलफुल’ बैंक डिफाल्टर्स और वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा करने का निर्देश देने वाला सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकता था, जब पूरा देश बैंकिंग प्रणाली के बिगड़ते स्वास्थ्य से चिंतित है। माना जाता है कि इन एनपीए का एक बड़ा हिस्सा छोटी संख्या वाले बड़े विलफुल डिफाल्टरों के कारण होता है।
शीर्ष अदालत का निर्देश जनता के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया, जो लंबे समय से सरकार और आरबीआई दोनों से विलफुल’ बैंक डिफाल्टरों की सूची के खुलासे की मांग कर रहे थे। यहां तक कि इस विषय पर संसद में सवाल भी पूछे गए थे लेकिन उस पर भी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी थी। सरकार और रिजर्व बैंक गोपनीयता कानूनों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पफा ने आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा आरबीआई के खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका में आरबीआई बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री और आरबीआई में अदालत द्वारा पूर्व में जारी विशिष्ट निर्देशों के प्रति अदालत की अवज्ञा का आरोप लगाते हुए फैसला सुनाया।
ऋ ण के बोझ के तहत, उद्योग और बैंक बीमार पड़ जाते हैं, हालांकि किसी ने कभी यह नहीं सुना कि एक बड़े बीमार उद्योग के मालिक कभी बीमार पड़ गए। बैंक प्रबंधन और बड़े डिफाल्टेड कर्जदारों के बीच मिलीभगत के नवीनतम मामले के रूप में पूर्व आईसीआईसीआई के टॉप ब्रास, उसके पति और वीडियोकॉन प्रमोटर्स को शामिल किया जा सकता है, जिसमें बैंक बोर्ड ने आखिरी क्षण तक मुख्य कार्यकारी को बचाने की पूरी कोशिश की। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय का नवीनतम निर्णय आम आदमी के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, जो अब उम्मीद करते हैं कि लोग उन्हें और उनके बैंकों को जानबूझकर लूटने वाले नाम से जानेंगे। पफा ने आरबीआई को अपनी डिस्क्लोजर नीति को वापस लेने का निर्देश दिया क्योंकि इसमें अनेक ऐसे छूट हैं, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में जारी किए गए निर्देशों के विपरीत हैं। जयंतीलाल एन. मिस्त्री मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि आरबीआई आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है।
सर्वोच्च न्यायालय की पफा ने कहा कि नई नीति, जिसने 30 नवंबर, 2016 को डिस्क्लोजर नीति की जगह ली है, विभिन्न विभागों को सूचना का खुलासा नहीं करने का निर्देश देती है, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन.एम. के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन कहा जा सकता है। इस प्रकार, आरबीआई ने छूट देकर अदालत की अवमानना की है। 
हालांकि, पफा ने आरबीआई को जयंतीलाल एन. मिस्त्री के फैसले का पालन करने का एक आखिरी अवसर दिया है और बैंकिंग नियामक को भी चेतावनी दी है कि उसके आदेश का कोई भी उल्लंघन होने पर अदालत की कार्यवाही की गंभीर अवमानना मानी जाएगी। याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण और प्रणव सचदेवा के माध्यम से दायर की गई थी। निर्णय को अखिल भारतीय बैंक अधिकारियों के परिसंघ ने सही ठहराया है। वह चाहता है कि समय-समय पर अपनी डिस्क्लोजर नीति की समीक्षा करे। (संवाद)