दुनिया के सबसे ताकतवर हेलीकॉप्टर दुश्मन के लिए बनेंगे काल  

भारतीयवायुसेना को अमरीकी एयरोस्पेस कम्पनी ‘बोइंग’ द्वारा 22 अपाचे गार्जियन अटैक हेलीकॉप्टरों में से पहला हेलीकॉप्टर भारत को सौंपे जाने के बाद वायुसेना की ताकत में और इजाफा हो गया है। इन्हीं हेलीकॉप्टरों का पहला बैच करीब दो माह बाद मिलने की संभावना है। इससे पहले इसी वर्ष 26 मार्च को चार हैवीलिफ्ट ‘चिनूक’ हेलीकॉप्टर भी वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गए थे और 11 चिनूक मार्च 2020 तक मिलने की संभावना है। एमआई-17 जैसे मध्यम श्रेणी के भारी वजन उठाने वाले रूसी लिफ्ट हेलीकॉप्टर भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही मौजूद हैं। कुछ माह पूर्व रूस के साथ भी 37 हजार करोड़ रुपये की लागत से मल्टी फंक्शन रडार से लैस एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल प्रणाली का सौदा किया गया था, जो दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है और वायुसेना के लिए ‘बूस्टर खुराक’ मानी जाती रही है। जहां तक ‘अपाचे गार्जियन अटैक’ की बात है तो यह एक ऐसा अग्रणी बहुउद्देश्यीय लड़ाकू हेलीकॉप्टर है, जिसे खुद अमरीकी सेना इस्तेमाल करती है। अमरीका अपाचे हेलीकॉप्टर पहली बार वर्ष 1975 में आकाश में उड़ान भरता नजर आया था तथा वर्ष 1986 में इसे पहली बार अमरीकी सेना में शामिल किया गया था। अमरीकाने अपने इसी अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर का पनामा से लेकर अफगानिस्तान और इराक तक के साथ दुश्मनों को धूल चटाने के लिए इस्तेमाल किया था। इसके अलावा इजरायल भी लेबनान तथा गाजा पट्टी में अपने सैन्य ऑपरेशनों के लिए अपाचे का इस्तेमाल करता रहा है। भारतीय वायुसेना की जरूरत के मुताबिक अपाचे हेलीकॉप्टर में अपेक्षित बदलाव किए गए हैं। ढ़ाई अरब डॉलर अर्थात् करीब साढ़े सत्रह हजार करोड़ रुपये का यह हेलीकॉप्टर सौदा करीब साढ़े तीन साल पहले हुआ था, जब सितम्बर 2015 में भारत ने अमरीका से 22 अपाचे और 15 चिनूक हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए सौदा किया था। रक्षा मंत्रालय द्वारा 2017 में भी 4168 करोड़ रुपये की लागत से बोइंग से हथियार प्रणालियों सहित छह और अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद को मंजूरी दी गई थी। अपाचे हेलीकॉप्टरों को चीन तथा पाकिस्तानी सीमा पर तैनात किया जाएगा तथा ये भारतीय सेना में विशुद्ध रूप से हमले करने का ही काम करेंगे। ये लड़ाकू हेलीकॉप्टर जमीनी बलों की सहायता के लिए भविष्य के किसी भी संयुक्त अभियान में महत्वपूर्ण धार उपलब्ध करांएगे। वायुसेना का कहना है कि भविष्य में थलसेना के साथ किसी भी तरह के साझा ऑपरेशन में अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर बड़ा फर्क पैदा करेंगे। यही वजह है कि माना जा रहा है कि वायुसेना में इसके शामिल होने से वायुसेना के साथ-साथ थल सेना की ऑपरेशनल ताकत में भी कई गुना बढ़ोतरी हो जाएगी। कम ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता के कारण यह पहाड़ी क्षेत्रों में छिपकर वार करने में सक्षम हैं और इस लिहाज से यह पर्वतीय क्षेत्र में वायुसेना को महत्वपूर्ण क्षमता और ताकत प्रदान करेगा। अपाचे का डिजाइन कुछ इस प्रकार तैयार किया गया है कि यह आसानी से दुश्मन की किलेबंदी को भेदकर उसके इलाके में घुसकर बहुत सटीक हमले करने में सक्षम है और इसकी इन्हीं विशेषताओं के चलते इससे पीओके में आतंकी ठिकानों को तबाह करने में भारतीय सेना को मदद मिलेगी। अमरीका के एरिजोना में अमरीकी कंपनी ‘बोइंग’ द्वारा निर्मित बोइंग एएच-64 ई अपाचे दुनिया का सबसे आधुनिक और घातक हेलिकॉप्टर माना जाता है, जो ‘लादेन किलर’ के नाम से भी विख्यात है।  बात करें अपाचे की विशेषताओं की तो इसकी ढ़ेरों खूबियां इसे भारतीय वायुसेना को नई ताकत प्रदान करने के लिए पर्याप्त हैं। अपाचे में सटीक मार करने और जमीन से उत्पन्न खतरों के बीच प्रतिकूल हवाईक्षेत्र में परिचालित होने की अद्भुत क्षमता है। 365 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम यह हेलीकॉप्टर तेज गति के कारण बड़ी आसानी से दुश्मनों के टैंकरों के परखच्चे उड़ा सकता है। बहुत तेज रफ्तार से दौड़ने में सक्षम इस हेलीकॉप्टर को रडार पर पकड़ना बेहद मुश्किल है। यह बगैर पहचान में आए चलते-फिरते या रूके हुए लक्ष्यों को आसानी से भांप सकता है। इतना ही नहीं, सिर्फ एक मिनट के भीतर यह 128 लक्ष्यों से होने वाले खतरों को भांपकर उन्हें प्राथमिकता के साथ बता देता है। इसे इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि यह युद्ध क्षेत्र में किसी भी परिस्थिति में टिका रह सकता है। यह किसी भी मौसम या किसी भी स्थिति में दुश्मन पर हमला कर सकता है और नाइट विजन सिस्टम की मदद से रात में भी दुश्मनों की टोह लेने, हवा से जमीन पर मार करने वाले रॉकेट दागने और मिसाइल आदि ढ़ोने में सक्षम है। टारगेट को लोकेट, ट्रैक और अटैक करने के लिए इसमें लेजर, इंफ्रारेड, सिर्फ  टारगेट को ही देखने, पायलट के लिए नाइट विजन सेंसर सहित कई आधुनिक तकनीकें समाहित की गई हैं। यह एक बार में पौने तीन घंटे तक उड़ सकता है और इसकी फ्लाइंग रेंज करीब 550 किलोमीटर है। इसमें अत्याधुनिक रडार तथा निशाना साधने वाला सिस्टम लगा है। वायुसेना की बेमिसाल ताकत बनेगा चिनूक हालांकि भारतीय वायुसेना के पास एमआई.17 जैसे मध्यम श्रेणी के भारी वजन उठाने वाले रूसी लिफ्ट हेलीकॉप्टर पहले से ही मौजूद हैं लेकिन वायुसेना के बेड़े में शामिल हुआ चिनूक ऐसा पहला अमरीकी हेलीकॉप्टर है, जो बहुत अधिक वजन उठाने में सक्षम है। यह बख्तरबंद गाड़ियां और यहां तक कि 155 एमएम की होवित्वर तोप को लेकर भी उड़ सकता है। इस हेलीकॉप्टर के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद वायुसेना के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब भारतीय वायुसेना की एक स्क्वाड्रन में अमरीकी तथा रूसी हेलीकॉप्टर एक साथ उड़ान भरते दिखेंगे। इसका ‘चिनूक’ नाम अमरीकी मूल-निवासी चिनूक से लिया गया है। यह वही हेलीकॉप्टर है, जिसके जरिये अमरीका ने पाकिस्तान में छिपे दुर्दान्त आतंकवादी ओसान-बिन-लादेन को मौत की नींद सुलाया था। युद्ध पर बनी लगभग सभी अमरीकी  फिल्मों में तो यह किसी न किसी रूप में भूमिका निभाता ही रहा है। वियतनाम और फॉकलैंड युद्ध के अलावा लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान, इराक इत्यादि में भी यह बड़ी और निर्णायक भूमिका निभा चुका है। सीएच-47 चिनूक एक ऐसा एडवांस्ड मल्टी मिशन हेलीकॉप्टर है, जो भारतीय वायुसेना को बेजोड़ सामरिक महत्व की हैवी लिफ्ट क्षमता प्रदान करेगा, साथ ही यह मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह बहुउद्देश्यीय हेलीकॉप्टर बहुत तेज गति से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने और 11 टन तक का वजन ले जाने में सक्षम है और इसका इस्तेमाल दुर्गम और अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सेना के जवानों, हथियारों, मशीनों तथा अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री ले जाने में आसानी से किया जा सकता है, जिससे ऐसे स्थानों पर तैनात सेना के जवानों को जरूरत पड़ने पर हथियार तथा अन्य भारी-भरकम रक्षा सामग्री आसानी से मुहैया करवाई जा सकती है। इन सैन्य विशेषताओं के चलते यह प्राकृतिक आपदाओं के समय प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों तक ले जाने और राहत सामग्री जुटाने में भी सैन्य अभियानों में मददगार साबित होगा, इसके अलावा भीषण आग बुझाने में भी इसका इस्तेमाल संभव होगा। यह छोटे हेलीपैड तथा घनी घाटियों में भी उतर सकता है और किसी भी प्रकार के मौसम का सामना कर सकता है। इसमें एक साथ 45 सैनिकों के बैठने की व्यवस्था है और इसमें छोटी तोपें, बख्तरबंद गाड़ियां इत्यादि विभिन्न युद्धक सामान नीचे लटकाकर कहीं भी ले जाए जा सकते हैं। चूंकि चिनूक बहुत तेज गति से उड़ान भरता है, इसलिए बेहद घनी पहाड़ियों में भी यह सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है। मल्टी रोल, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला यह हेलीकॉप्टर 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। आमतौर पर वायुसेना के हेलीकॉप्टर में सिंगल रोटर इंजन होता है जबकि चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं, जो एकदम नया कॉन्सेप्ट माना गया है। इसमें कोई टेल रोटर नहीं है बल्कि इसमें अधिक सामान ढ़ोने के लिए दो मेन रोटर लगाए गए हैं। भारी सामान ढ़ोने के लिए इसमें तीन हुक लगे हैं। रात में भी उड़ान भरने और ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम यह हेलिकॉप्टर घने कोहरे तथा धुंध में भी बखूबी कारगर है। इसे बेहद कुशलता के साथ मुश्किल से मुश्किल जमीन पर भी ऑपरेट किया जा सकता है। चिनूक में मिसाइल वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है तथा इसमें तीन मशीनगन भी सैट की गई हैं। लैंडिंग के समय जमीन पर मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। हालांकि चिनूक का आकार काफी बड़ा है लेकिन बड़े आकार के बावजूद अन्य हेलीकॉप्टरों के मुकाबले इसकी गति बेहद तेज होती है, जिससे दुर्गम स्थानों पर भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। इसका इस्तेमाल अन्य युद्धक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे तौर पर युद्ध में दुश्मन पर हमला करने में नहीं होता बल्कि यह सैनिकों तथा सैन्य साजो-सामान को दुर्गम स्थानों तक पहुंचाने के लिए उपयोग किया रहा है। हमारी वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना मानी जाती है अैर इस प्रकार चिनूक, अपाचे, राफेल तथा एस-400 मिलकर देश के रक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होंगे। ये हेलीकॉप्टर तथा विमान ऐसे समय में भारतीय वायुसेना की अभेद्य ताकत बनेंगे, जब भारत को देश की सुरक्षा जरूरतों के लिए इनकी सर्वाधिक जरूरत भी है और वायुसेना के बेड़े में इस तरह के हेलीकॉप्टरों और विमानों की मौजूदगी से सशस्त्र सेनाओं का मनोबल तो बढ़ेगा ही, वायुसेना अत्याधुनिक भी बनेगी।

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