लो खत्म हुए चुनाव : इन मुद्दों की रही छाया...!

देश का कोई भी लोकसभा चुनाव नहीं रहा, जब महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे प्रमुखता से न छाये हों। 17वें लोकसभा चुनाव अब खत्म हो चुके हैं। इसलिए अगर हम इसके प्रमुख मुद्दों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि इस बार भी ये मुद्दे कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर छाये रहे। विगत के हर लोकसभा चुनाव में इन तीनों में कोई एक ही मुद्दा अव्वल मुद्दा बना और बाकी में से कोई दूसरे तो कोई तीसरे नंबर पर रहा। पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में महंगाई व भ्रष्टाचार सत्तारूढ़ यूपीए के खिलाफ  अव्वल मुद्दे थे। हां, उस दौरान बेरोजगारी का जिक्र उस तरह से नहीं हुआ था। परंतु इस बार के चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के खिलाफ बेरोजगारी का ही मुद्दा चरम पर रहा, भले सरकार माने या न माने। हालांकि इसके साथ-साथ इस चुनाव में राफेल विमान सौदे में मोदी सरकार के क्रोनी कैपिटलिज्म की करतूत को भी भ्रष्टाचार के मुद्दे के रूप में थोड़ी बहुत हवा मिली। परंतु महंगाई के मुद्दे की बात की जाए तो मौजूदा लोकसभा चुनाव में इसकी स्थिति पिछले लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे जैसी सदृश रही। महंगाई, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार के इन तीनों सार्वकालिक मुद्दों के बुनियादी स्वरूप में आज भी कोई बड़ा नीतिगत परिवर्तन नहीं आया है। यदि पहले महंगाई की बात करें तो ठीक है कि देश में अभी हाहाकार की स्थिति नहीं है। थोक मूल्य सूचकांक काफी दिनों के बाद पिछली तिमाही में पांच फीसदी से ज्यादा बढ़ा है, जिसकी वजह एमएसपी के बढ़े मूल्य में अनाज की हो रही खरीद को माना गया है, पर यह एक अच्छा लक्षण है क्योंकि इससे किसानों की जेब में कुछ आमदनी तो जा रही है। देखा जाए तो अभी महंगाई की इस नियंत्रित स्थिति से ज्यादा खुश होने की भी जरूरत नहीं है। अर्थ-विशेषज्ञों का मानना है यह महंगाई की निम्र दर मुद्रा की बेहतर मांग व आपूर्ति के बीच के संतुलन की वजह से नहीं है बल्कि देश में प्रभावी मांग व क्रयशक्ति में आयी कमी की वजह से है। जाहिर है कि नोटबंदी व जीएसटी से देश की अर्थ-व्यवस्था को जो झटका लगा है, उससे देश में रोजगार व आमदनी में आयी गिरावट का असर लोगों की क्रयशक्ति पर पड़ा है। इससे उनकी मांग कम हुई है और इसी वजह से कीमतों में यह कमी आयी है। विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर में बढ़ोत्तरी तब तक चिंताजनक नहीं होती जब तक वहां वास्तविक विकास दर में यथोचित बढ़ोत्तरी न रुक जाए। ऐसे में आज की स्थिति में मुद्रास्फीति की दर से ज्यादा चिंताजनक बात देश में प्रभावी मांग में आ रही कमी है। बात बेरोजगारी की करें जो मौजूदा सरकार के खिलाफ अभी चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना है। सबसे पहली बात विगत की अन्य सरकारों की ही तरह मौजूदा मोदी सरकार भी सरकारी तंत्र में खाली पड़ी नौकरियों को भरने से गुरेज करती रही है। परंतु मोदी सरकार में बेरोजगारी मुद्दे को हवा दिलाने में नोटबंदी और जीएसटी की नयी उधेड़बुन अव्यवस्था ही मुख्य रूप से जिम्मेदार रही है। मोदी सरकार जो मुद्रा लोन योजना के जरिये कम पढ़े लिखे लोगों को स्वरोजगार दिलाने का जो अति प्रचार करती रही है, दरअसल वह पहल एक खास वर्ग के बेरोजगारी का ही समाधान करती है। मोदी सरकार यह नहीं समझ पा रही है कि देश में बेरोजगारों की अलग-अलग श्रेणियां हैं जो अलग-अलग समाधान खोज रही हैं। इसमें पहली श्रेणी अधिक पढे-लिखे व तकनीकी श्रेणी के बेरोजगारों की है, जो देश में सॉफ्टवेयर के निर्यात तथा बीपीओ व्यवसाय में आयी कमी तथा अमरीका में वीजा काननों को कड़े किये जाने से प्रभावित हुई है। दूसरी श्रेणी औपचारिक शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की है जिनकी अपेक्षाएं सरकारी विभागों की नौकरियों पर टिकी होती हैं, उन्हें मोदी सरकार से निराशा हुई है। तीसरी श्रेणी के बेरोजगारों जिनकी स्वरोजगारी व स्टार्टअप के लिए मुद्रा लोन योजना भले सरकार के दावों के मुताबिक कुछ राहत दे पायी हो परंतु इस रोजगारी की सीमाएं हैं । क्योंकि भारत स्वरोजगारियों का नहीं, माहवारी नौकरियों की इच्छा रखने वाले लोगों का ज्यादा देश है। चौथी श्रेणी दिहाड़ी पर करने वाले कामगारों की है जो साल में कुछ दिन अपने गांव व कस्बे में और कुछ दिन महानगरों व औद्योगिक केन्द्रों में काम करने के लिए पलायन करते हैं। नोटबंदी से महानगरों में रियल इस्टेट सहित कई कारोबार बंद होने तथा खेती में यथोचित विकास दर नहीं होने से इनकी भी रोजगारी प्रभावित हुई है और तो और कौशल विकास के जरिये जिन एक करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने की बात मोदी सरकार ने कही उन्हें भी यह सरकार प्लेसमेंट नहीं दिलवा पायी। इन्हीं वजहों से इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र अब होगा न्याय में देश में मौजूदा बेरोजगारी को बड़ी प्रमुखता से एड्रेस किया। कांग्रेस ने एक तरफ  22 लाख सरकारी नौकरियों को भरे जाने की एक अभूतपूर्व घोषणा की तो दूसरी तरफ  ग्रामीण क्षेत्र में अपनी गेम चेंजर मनरेगा योजना को और विस्तार देने की बात कही। बेरोजगारी को ही देखते हुए कांग्रेस ने गरीबों को 72 हजार रुपए न्यूनतम आय देने की भी घोषणा की है। गौरतलब है कि इस चुनाव में बेरोजगारी के अव्वल मुद्दा बनने के पीछे पिछले 45 सालों में देश में बेरोजगारी दर के सर्वाधिक होने के आए आंकड़ें भी रहे। कांग्रेस ने बेरोजगारी को लेकर अपने घोषणा-पत्र में कोई एक बड़ी दृष्टि तो नहीं दी है सिवाय कि एक अलग रोजगार मंत्रालय बनाने के। 
अभी जरूरत इस बात की है कि जो भी अगली सरकार आए, वह देश में हर श्रेणी के बेरोजगारों के लिए एक अनुकूल आर्थिक पर्यावरण निर्मित करे। इसके तहत देश के हर महकमे और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में रोजगार की संपूर्ण संभावनाएं तलाशे। इसके साथ ही देश में श्रम नीति, रोजगार नीति, वेतन नीति, नियुक्ति नीति व कार्यपरिस्थितियों व कार्यशर्तों की एक समान और व्यापक नीति गढ़े जाने की भी जरूरत है। देश को जरूरत है कि नीतियों को पैचेज में नहीं, एक सर्वस्व ढंग से लागू किया जाए। इस चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा उस तरह तो नहीं पनप पाया बावजूद कि इस दौरान देश में बड़े बैंक घोटाले सुर्खियों में आए। बात करें यदि संरचनात्मक भ्रष्टाचार की तो कुछेक मामलों को छोड़कर  देश में  यह परिपाटी आज भी बदस्तूर जारी है। इसे एड्रेस करने की जहमत किसी भी पार्टी ने इस चुनाव में नहीं दिखायी है। मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त होने की बात करती है परंतु उसे बताना चाहिए कि क्या देश में नित दिन होने वाले निर्माण कार्यों में इंजीनियर, ठेकेदार की कमीशन की संस्कृति खत्म हो गई है? इस प्रश्न का जबाब है बिल्कुल नहीं।

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