मिशन-2019 के यज्ञ की पूर्णाहुति

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की 17वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में सम्पन्न हो रहे चुनाव के अंतिम चरण का मतदान भी बिना किसी बड़ी घटना/दुर्घटना के, और साधारण हिंसा की छिट-पुट घटनाओं के बीच सम्पन्न हो गया। सातवें चरण के मतदान में 8 राज्यों की 59 सीटों पर मत डाले गये जिनका मत-प्रतिशत पूर्व की ही भांति 60 से 70 प्रतिशत तक दर्ज किया गया हालांकि प. बंगाल में यह 70 के आंकड़े को पार कर गया लगता है। जिन राज्यों में अंतिम चरण का मतदान सम्पन्न हुआ, उनमें पंजाब और उत्तर प्रदेश की 13-13 सीटें जबकि प. बंगाल की शेष बची 9 सीटें और बिहार की 8 सीटें शामिल हैं। पड़ोसी राज्य हिमाचल की कुल 4 सीटों पर भी आज ही मतदान हुआ। हिंसा की बड़ी घटना पं. बंगाल में हुई जहां कई जगहों पर विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें हुईं। कई मत केन्द्रों पर दोनों पक्षों के कार्यकर्ताओं के बीच हल्की मारपीट भी हुई। इसी प्रकार बिहार और उत्तर प्रदेश में भी कुछ स्थानों पर हिंसक झड़पें होने की सूचना मिली है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया रहे लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव की पत्रकारों के साथ झड़प हो जाने से, उनके अंग-रक्षकों ने बड़ी देर तक हुड़दंग मचाये रखा। पत्रकारों ने उनके अंगरक्षकों पर उनसे मारपीट करने का भी आरोप लगाया। प. बंगाल में कोलकाता के जय नगर, दीनाजपुर और दमदम में भी आपसी मारपीट की घटनाओं की सूचना मिली है। जय नगर में एक जगह बम-विस्फोट के बाद तनाव भी बढ़ा। एक मत केन्द्र पर चुनाव अधिकारी ने रोते हुए तृणमूल कांग्रेस के एक पार्षद पर मारपीट करने और उन्हें धमकी दिये जाने का आरोप भी लगाया। पंजाब के जालन्धर और हिमाचल में भी छिट-पुट झड़पें होने की सूचना मिली है। देश की आज़ादी के बाद 1952 में सम्पन्न हुए पहले लोकतांत्रिक चुनाव के समय से ही प. बंगाल में चुनावी हिंसा होते आई है। पहले कई दशक तक प्रदेश के लोग साम्यवादी और खासतौर पर मार्क्सवादी हिंसा को सहन करते रहे। फिर जब कांग्रेस से विद्रोही होकर ममता बैनर्जी ने मार्क्सवाद को पराजित किया, तो निश्चित रूप से इस प्रांत में अब तृणमूल कांग्रेस की हिंसा का सिक्का चलता है। एक हिंसा को पराजित करने के लिए उन्होंने दूसरी हिंसा का सहारा ले लिया। इस प्रांत में मिशन-2019 के अंतिम चरण में भी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोपों और शिकायतों का सिलसिला जारी रहा। ममता बैनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मतदान वाले दिन केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा किये जाने को आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करार देते हुए चुनाव आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई है।  उधर प. बंगाल के भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने भी चुनावी हिंसा के लिए चुनाव आयोग के पास तृणमूल कांग्रेस के विरुद्ध शिकायत दे दी है। प. बंगाल की सभी सीटों पर सभी सातों चरणों में मतदान हुआ है, और यह भी अजीब बात रही कि सभी सातों चरणों में हिंसा की घटनाएं हुई हैं। सातवें चरण के मतदान के अन्तर्गत आने वाले सभी आठ राज्यों में दोपहर 12 बजे तक बहुत धीमी गति से अर्थात् 12 से 18 प्रतिशत तक मदान हुआ। ऐसा शायद रविवार होने के कारण भी हो सकता है। तथापि दोपहर बाद दो-तीन बजे के बाद मत केन्द्रों पर कतारें लगना शुरू हो गईं। पश्चिम बंगाल में शुरू से ही तेज़ी से मतदान हुआ। इस मतदान के अन्तर्गत जिन सीटों की ओर विशेषज्ञों का अधिक ध्यान केन्द्रित है, उनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाराणसी सीट और पंजाब की बठिंडा, फिरोज़पुर और खडूर साहिब व चंडीगढ़ की सीटें शामिल हैं। इस बार के चुनावों को जिस प्रकार मुद्दा-विहीन और गाली-गलौच पर केन्द्रित कर दिया गया, उससे देश के विशाल लोकतंत्र की छवि पर द़ाग तो लगा ही है। इन सातों चरणों में प्रत्याशियों और नेताओं ने एक-दूसरे के विरुद्ध जिस प्रकार की छिछली भाषा का इस्तेमाल किया, उससे जन-साधारण को तो अवश्य लज्जा महसूस हुई होगी। खरबों रुपए इन चुनावों पर खर्च हो गये, किन्तु उपलब्धि के नाम पर आम आदमी को कुछ भी नसीब नहीं हुआ। न गरीबी की बात हुई, न बेरोज़गारी का ज़िक्र हुआ। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि उत्पादन की सार-सम्भाल, किसानों की आत्महत्या, पेयजल, सिंचाई, साफ-स्वच्छता, पर्यावरण, प्रदूषण के मुद्दों पर भी कुछ नहीं संवरा। कुल मिला कर इन  चुनावों के दौरान जो कुछ हुआ है, यदि यह आगामी समय में परम्परा बनता है, तो यह देश के लोकतंत्र के लिए काफी घातक सिद्ध हो सकता है। बेशक आज़ादी के बाद के सात-आठ दशकों तक देश के लोकतंत्र की तस्वीर के रंग बेहद स्वच्छ-धवल जैसे रहे परन्तु भाजपा ने मतदाताओं का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करके देश में एक बड़ी चिन्ता अवश्य पैदा कर दी है। हम समझते हैं कि 17वीं लोकसभा के चुनावों का कारवां गुजर गया है, और नि:संदेह अपने पीछे गर्व और गौरव की एक और प्राचीर स्थापित कर गया है। चुनाव आयोग को यह श्रेय जाता है कि उसके द्वारा किये गये व्यापक प्रबंधों के दृष्टिगत ही खुली हिंसा पर अंकुश लगा है। बेशक इस बार की चुनाव प्रक्रिया लम्बी हुई है, परन्तु चुनाव ज़ाब्ते को कायम रखने में वह बुरी तरह विफल रहा है। उसने श्री नरेन्द्र एवं अमित शाह के विरुद्ध प्राप्त हुई शिकायतों पर लम्बी अवधि तक चुप्पी धारण किए रखी तथा बाद में उन्हें अनेक मामलों में से क्लीन चिट दे दी। चुनाव परिणम बेशक 23 मई को घोषित होने हैं, परन्तु अभी से राजनीतिक दलों ने नई सरकार बनाने हेतु आंकड़ों एवं गणनाओं की कवायद शुरू कर दी है। एक ओर भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पुन: सरकार बनाने हेतु आश्वस्त हैं, तो वहीं विपक्ष के महागठबंधन ने भी मेल-मिलाप शुरू कर दिया है। चन्द्र बाबू नायडू की राहुल गांधी से चौबीस घंटे में दो बार की मुलाकात बहुत कुछ कहती है। सत्ता पक्ष और विपक्षी गठबंधन नेताओं के तेवर किस प्रकार के परिवर्तन का सूचक बनते हैं, और इस चुनावी सागर मंथन का क्या परिणाम सामने आता है, यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट तौर पर प्रकट होने लगेगा।