यह अविश्वास क्यों ?


नि:सन्देह लोकसभा चुनावों के लिए मतगणना का समय निकट आने के कारण भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों से सम्बद्ध राजनीतिक नेताओं की धड़कनें तेज होना स्वाभाविक है,  परन्तु आश्चर्य की बात है कि राष्ट्रीय दलों के प्रबुद्ध नेता इस सीमा तक हताश हुए प्रतीत होते हैं कि एक बार फिर उन्होंने अपना क्रोध बेचारी विद्युत वोटिंग मशीनों पर निकालना शुरू कर दिया है। विपक्षी दलों में ऐसी घबराहट इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि चुनावों के पश्चात अधिकतर सर्वेक्षण उनके विरुद्ध एवं मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और उसकी समर्थक पार्टियों के पक्ष में आए हैं। 
कल ये सर्वेक्षण कितने सत्य सिद्ध होते हैं, इस संबंध में निश्चय के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। ये काफी सीमा तक गलत भी सिद्ध हो सकते हैं, परन्तु आश्चर्य की बात है कि इन सर्वेक्षणों के पश्चात विपक्षी दलों की बासी कड़ी में फिर उबाल आया है। वे फिर विद्युत मशीनों के पीछे पड़ गए हैं। इस संबंध में वे एकत्रित होकर चुनाव आयोग से भी मिले हैं। चुनाव आयोग ने उन्हें पूर्ण विश्वास दिलाया है कि मतगणना  में किसी प्रकार की हेरा-फेरी की कोई गुंजाइश नहीं है। इन मशीनों को सभी दलों के सामने अत्याधिक कड़े पहरे में मजबूत कमरों में रखा गया है तथा दिन-रात इन पर सभी वर्गों के सुरक्षा बलों की ओर से नज़र रखी जा रही है। इसके अतिरिक्त सभी दलों के प्रतिनिधि इन पर कड़ी निगरानी रख रहे हैं। विपक्षी दलों की ओर से उठाये गये सवालों के जवाब भी बड़ी दृढ़ता के साथ चुनाव आयोग ने दिये हैं। मशीनों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर रखने के लिए भी आयोग ने कहा है। यह राजनीतिक दलों एवं सुरक्षा बलों की पूरी निगरानी में किया गया है। कुछ विद्युत मशीनों को ट्रकों में लाद कर भेजने के संबंध में आयोग ने स्पष्ट किया है कि ये अप्रयुक्त मशीनें बिल्कुल खाली थीं। इस संबंध में उपजी तमाम अफवाहों को आयोग ने पूर्णतया नकार दिया है। एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में एक ़गैर-सरकारी संगठन की ओर से वी.वी. पैट मशीनों की पर्चियों का शत-प्रतिशत मिलान करने की याचिका दायर की गई थी। उसे सर्वोच्च न्यायालय की ओर से पूरी तरह खारिज करते हुए कहा गया है कि ‘देश को सरकार चुनने दो’। इससे पूर्व 7 मई को भी सर्वोच्च न्यायालय में वी.वी. पैट मशीनों की 50 प्रतिशत पर्चियां मिलाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई हुई थी। विपक्ष की ओर से दायर इस याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया था। 
एक बार फिर चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों को झूठी अफवाहों से गुमराह न होने के लिए कहा है। आयोग ने कहा है कि वी.वी. पैट मशीनों को पार्टियों के उम्मीदवारों के समक्ष अच्छी तरह से सील किया गया था तथा इसकी वीडियोग्राफी भी करवाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात अवश्य स्वीकार की थी कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से पांच-पांच पोलिंग बूथों को चुन कर वहां वी.वी. पैट मशीनों से हासिल हुई पर्चियों का मशीनों से आई गणना के साथ मिलान किया जाएगा। इस प्रकार देश भर में 20 हज़ार से भी अधिक पोलिंग बूथों को चुना जाएगा। इनके मिलान के दृष्टिगत सम्बद्ध सीट का परिणाम निकलने में कम से कम 4-5 घंटे की देरी होगी। ऐसा किस प्रकार किया जाएगा, इस संबंध में भी पूरे विस्तार के साथ जानकारी पार्टियों के प्रतिनिधियों को दी गई है। विद्युत मशीनों की शुरुआत 1998 से 2000 के बीच क्रमिक तौर पर हुई थी। 2012 से 2013 के बीच वी.वी. पैट मशीनों का उपयोग शुरू हुआ। इन मशीनों के माध्यम से डाले गये मतों की पर्चियां भी मिल सकती हैं। इसके बाद सैकड़ों बार इनका प्रयोग किया जा चुका है। मशीनें खराब होने के संबंध में भी शिकायतें अक्सर मिलती रही हैं, परन्तु मतों की गणना के बारे कभी भी कोई बड़ा भ्रम नहीं उपजा। अतीत में सम्पन्न हुए सभी प्रकार के चुनावों में भिन्न-भिन्न राजनीतिक दल विजयी होते एवं पराजित होते रहे हैं। पंजाब में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार विजय हासिल की थी। तीन अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में भी सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी जीत हासिल हुई थी तथा वहां उन्होंने अपनी सत्ता भी स्थापित की, परन्तु तब कांग्रेस अथवा किसी विपक्षी दल की ओर से इन मशीनों के संबंध में कोई प्रश्न-चिन्ह खड़ा नहीं किया गया था। एक अवसर पर भाजपा एवं उसके समर्थक दलों ने भी मशीनों के माध्यम से मतदान करवाने  एवं इसकी गिनती को लेकर कई प्रकार के प्रश्न-चिन्ह खड़े किये थे।
अब विपक्षी दलों ने घबराहट में ऐसे अनर्गल प्रश्न-चिन्ह पुन: खड़े करने शुरू कर दिये हैं। भाजपा के पक्ष में आये सर्वेक्षणों के बावजूद देश भर में सिर्फ एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने की सम्भावना कम ही है। लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने मतों में अपना-अपना हिस्सा प्राप्त करना है तथा जीत भी हासिल करनी है, परन्तु विपक्षी नेताओं की ओर से पहले ही जिस प्रकार की उकसाहट पैदा करने का यत्न किया जा रहा है, उसे हम अत्याधिक नकारात्मक रवैया समझते हैं। जन-़फतवे को राजनीतिक दलों एवं नेताओं की ओर से विनम्रता सहित स्वीकार करने से ही जनमत को सम्मान दिया जा सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द