चुनाव समाप्त हुए, अब काम शुरू करें

सात चरणों वाले लम्बे महाचुनाव समाप्त हो गए। परिणाम आ गये। नये शहसवार सत्ता की कुर्सियों पर सवार होने के लिए दम बांध रहे हैं। लेकिन देश की 130 करोड़ जनता देश के लिए एक नये युग की परिकल्पना के साथ भरकर मतदान करके आयी है। इस नई उम्मीद के साथ क्योंकि 70 दिनों के इस लम्बे प्रचार अभियान में नेताओं ने उन्हें बढ़-चढ़ कर राष्ट्रवादी बना दिया। भारतीय सेना बहुत शूरवीर और पराक्रमी है, यह खबर भी हो गई। मोदी शासन ने आतंकवादी कैम्पों का फन कुचलने के लिए दो बार सर्जिकल स्ट्राइक की। एक बार थल सेना और दूसरी बार वायुसेना द्वारा। एक बार उड़ी क्षेत्र में और दूसरी बार पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए बालाकोट में। अब तो इतालवी पत्रकार का चश्मदीद बयान भी आ गया है कि नभसेना सर्जिकल स्ट्राइक सफल थी। पाकिस्तान कोई नुक्सान न होने की गलतबयानी कर रहा है। 175 आतंकी मरे हैं, और 125 घायल हुए। लेकिन आतंकी हमले और सरहदों पर कटुता उसी तरह जारी रही। यह भारतीय कूटनीति की सफलता कही जा सकती है कि भारत के साथ स्वर सन्धान करके ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और अमरीका ने चीन को मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने पर अपना तकनीकी एतराज़ हटाने पर मजबूर कर दिया। मसूद अजहर वैश्विक आतंकी घोषित हुआ, लेकिन उससे भारत विरुद्ध पाकी आतंकियों की गतिविधियों में कोई कमी आई है, ऐसा दिखाई नहीं देता। जिस प्रति जम्मू-कश्मीर में आतंकी अतिक्रमण उसी प्रकार जारी है। नि:संदेह चुनाव में वोट बटोरने के लिए शासक मोदी दल अपने हर सुशासन की छवि बनाने में मग्न रहा। राजनीतिक और कूटनीतिक शतरंज में उसके लिए शह अति आवश्यक था, वह उसने दी। लेकिन जहां तक देश के आर्थिक संकट का संबंध है, किसान, मज़दूर और नौजवानों का आर्थिक संकट उसी प्रकार बदस्तूर जारी है। देश भ्रष्टाचार, कालेधन और महंगाई का उसी प्रकार बन्दी है। नोटबंदी और जी.एस.टी. के लागू होने से देश के आम आदमी और छोटे व्यवसायी की हालत बद से बदतर हो गई। लेकिन उसका भाग्य संवारने के लिए कोई नया वैकल्पिक समाधान सुझाया नहीं गया। राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा-पत्र और नेताओं के चुनावी भाषण उन मुद्दों से पल्ला बचा कर निकल गये। चाहे अम्बर में समावेशी विकास के नारे उसी प्रकार गूंजते रहे। लेकिन अब तो राजनीति के नहले पर दहला मारने का युग आ गया। जिनके कन्धों पर अगले पांच वर्ष के लिए शासन करने का दायित्व आ रहा है, उन्हें सबसे पहले उन समस्याओं से निपटना होगा जो उस चुनाव प्रचार अवधि में और भी विकट हो गयी हैं। सबसे पहले तो पाकिस्तान से हमने पुलवामा हमले के बाद सर्वोच्च प्रश्रम प्राप्त राष्ट्र का दर्जा छीन लिया था। इसके कारण भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला व्यापार ही शिथिल होकर नहीं रह गया, बल्कि भारत के साथ इस रास्ते इस्लामिक देशों के साथ होने वाला विदेशी व्यापार भी शिथिल होकर रह गया। इधर कश्मीर में खोले गये व्यापार  के द्वार बंद कर दिये गये हैं। इसके कारण इन स्थानीय रास्तों  से होने वाला व्यापार भी बंद होकर रह गया। इस समस्या का वैकल्पिक समाधान ढूंढना तत्काल आवश्यक है। लेकिन इससे भी बड़ी समस्या अमरीका द्वारा भारत को दिया ‘मोस्ट फेवरड नेशन’ का दर्जा छीनने के फैसले का है, जोकि अभी होने जा रहा है। इससे भारत से अमरीका को होने वाले निर्यात पर ड्यूटीज़ तो बढ़ ही जायेगी, भारत में होने वाले खाद्य पदार्थों के आयात पर भी कम ड्यूटी की कीमतों की प्रतियोगिता से भारतीय किसानों के लिए एक नया संकट पैदा होगा। इससे अगर अमरीका के साथ हमारा भुगतान शेष और प्रतिकूल हो जाता है, और सस्ते विदेशी खाद्य उत्पादन के आयात का मुकाबला करने के लिए स्थानीय किसानों के उत्पादन और फसलों की कीमत अगर कम हो जाती है, तो एक ओर तो जहां देश की कृषि के लिए आर्थिक संकट बढ़ेगा, वहां दूसरी ओर भारतीय निर्यातकों का धंधा और मन्दा हो जायेगा। बेशक समस्याएं तो और भी बहुत-सी हैं। देश में बढ़ती बेकारी, महंगाई और भ्रष्टाचार की समस्याएं समाधान चाहती हैं, लेकिन इससे पहले ईरान से अमरीका द्वारा पेट्रोलियम आयात पर बन्दिश लगा देने की समस्या समाधान मांगेगी। पिछले दिनों अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ती चली गयी हैं। भारत अपनी ज़रूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। इसमें से कम से कम दस प्रतिशत ईरान से आता था, जिसका भुगतान अब भारतीय मुद्रा में बन्द हो गया। अमरीकी बन्दिश के कारण वह दरवाज़ा बन्द हो गया। सऊदी अरब या ओपेक देशों ने इन्हीं शर्तों पर हमसे व्यापार समझौता किया नहीं, बल्कि उन्होंने तो अपना पेट्रोलियम उत्पादन बढ़ाने से भी इन्कार कर दिया। चुनावी दबाव के कारण भारत सरकार ने इन कीमतों को बढ़ने नहीं दिया। फिलहाल पेट्रोलियम कम्पनियां घाटा उठा रही हैं। चुनावी दबाव खत्म हो गया। पेट्रोलियम आपूर्ति सुधरी नहीं। तत्काल प्रभाव पेट्रोलियम कीमतों में निरन्तर वृद्धि का होगा, इससे देश को महंगाई का विकट नाग फिर डसने लगेगा। पहला समाधान को इसी समस्या का तलाशना चाहिए।