संभल जाइए वरना पानी की बोतलें पी जायेंगी भविष्य

शहर हो या गांव। स्कूल हो या सेमीनार हाल। रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा। पिकनिक हो या सगाई समारोह। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं, इन सभी जगहों में आजकल क्या चीज कॉमन होती है? जी,हां प्लास्टिक वाली पानी की बोतलें। खाने अलग-अलग हो सकते हैं, गाने भी अलग-अलग हो सकते हैं। यहां तक कि ताने भी अलग हो सकते हैं। लेकिन आजकल हर तरफ, हर जगह बिना किसी भेदभाव के प्लास्टिक की बोतलों में पानी मिलेगा। दुनिया में ये कैसा तूफान आया हुआ है कि जिधर देखो, उधर पानी की बोतलें ही दिख रही हैं। आज की तारीख में ऐसा कोई एक मिनट नहीं गुजरता, जब पूरी दुनिया में दस लाख से ज्यादा पानी की बोतलें खरीदी या बेचीं न जाती हों। पर्यावरणविद परेशान हैं क्योंकि पानी की बोतलों का 90 फीसदी हिस्सा रीसाइकिल नहीं होता है। प्लास्टिक की इन बोतलों को प्राकृतिक तौर पर समाप्त होने में चार सौ साल से भी ज्यादा का समय लग जाता है। यह जानते-बूझते हुए भी लोग पानी की बोतलों के इस्तेमाल से बाज नहीं आ रहे। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाजार में हर तरफ  ये बोतलें मौजूद हैं। अखबारों में, टीवी चैनलों में, सोशल मीडिया में और तमाम बड़े-बड़े सेमिनारों में पर्यावरणविद लोगों को कितना ही आगाह कर रहे हों। एनवायरमेंटल साईंटिस्ट कितना ही चेतावनी दे रहे हों लेकिन, उद्योगपतियों के लिए प्लास्टिक इतना लाभप्रद है कि वे किसी भी कीमत पर इसमें प्रतिबंध नहीं लगने दे रहे और हर तरफ  प्लास्टिक प्रोडक्ट मौजूद हैं तो लोग उनके इस्तेमाल से जरा भी नहीं हिचक रहे, भले हर गुजरते दिन पर्यावरण की नजर से दुनिया नरक बनती जा रही हो। उद्योगपतियों के मुनाफे का लालच और आम आदमी की तात्कालिक सहूलियत। इन दो वजहों से प्लास्टिक की पानी बोतलें अब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गई हैं। पानी को खरीदकर पीना अब अखरता नहीं यह लाइफ स्टाइल का हिस्सा बन गया है बल्कि सफर में पानी खरीदने की बजाय घर से लेकर चलना अब पिछड़ेपन की निशानी बन गया है। दुकान से पानी खरीदना अब हमारी आदत का हिस्सा है। अब कहीं कोई प्याऊ लगाए दिख जाता है तो हमारे दिमाग में पानी पीने के बजाय उसके साथ सेल्फी लेने का ख्याल आता है। जबकि एक जमाना था जब क्या उत्तर, क्या दक्षिण और क्या पूरब-पश्चिम। देश में हर तरफ  गर्मियां आते ही प्याऊ एक अनिवार्य दृश्य बन जाता था। रेलवे स्टेशन हो या बाजार-हाट हर जगह प्याऊ मौजूद होते थे। वह भी पूरे आदर के साथ और बिलकुल मुफ्त। लेकिन पानी की प्लास्टिक की बोतलों ने आज सबको समाज से खदेड़ दिया है।यह अकारण नहीं है कि आज दुनिया में बोतलबंद पानी का कारोबार अरबों रुपये का है। दुनियाभर में हर मिनट पानी की 10,54,000 बोतलें खरीदी-बेची जा रही हैं। अब चूंकि पानी की प्लास्टिक बोतलों का 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा रिसाईकिल होता नहीं इसलिए प्लास्टिक बोतलों का अधिकांश कचरा लैंडफिल साइटों पर जाता है इसीलिये हर बड़े शहर के इर्द-गिर्द प्लास्टिक की पानी बोतलों के तमाम पहाड़ खड़े हो गए हैं। जल्द ही यह समस्या दुनिया भर के शहरों और शहरीकरण के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है। इन लैंडसाइटों में जो पानी की बोतलें नहीं पहुंच रहीं वे तमाम किसी न किसी तरह समुद्र में पहुंच रही हैं। समुद्रों में कितनी पानी की बोतलें पहुंच चुकी हैं और तेजी से कितनी पहुंच रही हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। पर्यावरणविदों के मुताबिक साल 2050 तक समुद्रों में मछलियों से ज्यादा वजन के बराबर प्लास्टिक की बोतलें मौजूद होंगी। सवाल है क्या समुद्र में मछलियों से ज्यादा पानी की बोतलों को दुनिया बर्दाश्त कर सकती है ? हम जानते हैं कि प्लास्टिक अभी ही समुद्र के जीवों की जान ले रहा है। लेकिन उस दिन के बारे में सोचिये जब समुद्री जीवों से ज्यादा जानलेवा निर्जीव प्लास्टिक होगा, तब क्या होगा ? यह सिर्फ  पानी यानी समुद्री जीवों के अस्तित्व पर मंडराता संकट नहीं होगा बल्कि यह इंसान के अस्तित्व का संकट होगा। कोई यह न कहे कि पानी की बोतलें और चिप्स के पैकेट जिंदगी की उतनी बड़ी जरूरत हैं, जितनी जिंदा रहने के लिए हवा। जी,हां पानी की बोतलों और चिप्स के पैकटों के बिना भी हम जिंदा रह सकते हैं। ये जरूरत नहीं शौक के लिये खरीदे जाते हैं फिर इन्हें साजिशन शौक बना दिया जाता है। मगर सिर्फ  संस्थाओं और सरकारों को ही इस सबके लिए क्यों कोसें ? क्योंकि इस सबके लिए जितने जिम्मेदार ये हैं,उतने ही जिम्मेदार आमजन भी हैं।