बुखार ग्रस्त

सुजाता ने बात बदलने की गर्ज से पूछा- कल तुमसे कोई मिलने आया था न।
-हां, ओबराय।
-तुम्हारे रिश्ते में है कोई?
-कुछ रिश्तों को हम जीवन भर कोई नाम नहीं दे पाते। वह मेरी कलास में था परन्तु हम समांतर रेखाओं की तरह चलते रहे।
-कोई संबंध तो रहा ही।
-हां जैसे एक कार्ड, एक चिट्ठी, एक सूखा फूल तुम किसी दौलत की तरह सम्भाले रहते हो।
वार्ड ब्वॉय लक्की भागता हुआ आया और वसुधा से कहा -आपको एमरजेंसी वार्ड में बुलाया है।
-सभी कुछ ठीक रहा तो डा. जैन एक घंटे बाद पेशैंट के खास संबंधियों से कहेंगे, शुक्र है आप मरीज को समय पर यहां ले आये। थोड़ी देर हो जाती तो कह नहीं सकते कि क्या हो जाता न...।
एमरजैंसी में तीन घंटे तक सांस लेने की फुर्सत भी नहीं मिली।
जिस पैदल चलते हुए आदमी को मोटर साइकिल मार कर निकल गया था, मल्टीपल फ्रैक्चर के साथ अब पहले की अपेक्षा शांत था। वह बड़ी बेचैनी से बार-बार पूछता था कि उसे ठीक होने में कितने दिन लग जाएंगे? उसे कई काम थे, कई जगह जाना था। कैरियर के सफर पर तेज भागना था। अब समझ गया था कि दो तीन महीने से पहले वह अपना ऐवरेस्ट विजय अभियान जारी नहीं रख पाएगा। उसके घर के लोग उससे दूर थे। वह उनके लिए भी बेचैन था कि दुर्घटना की खबर सुन कर उनका क्या होगा।
दूसरा मरीज़ जिसे हार्ट अटैक था अस्पताल आते ही किसी भी उपचार से पहले दम तोड़ चुका था। उसने गाड़ी की गति देखी थी, वहां कुछ भी ऐसा नहीं था, जिसे मैडीकल साईंस रोक पाती परन्तु फिर भी मेट्रन विमला इंजैक्शन लगाती रहीं और उसे बेवजह डांटती रही।
वह पहले सिविल अस्पताल में थी। आप्रेशन के समय एक मरीज़ के पेट में तौलिया रह गया था। केस चला तो डाक्टर मंत्री के साथ संबंध होने के कारण निकल गया, विमला को फंसा गया। इसे सस्पैंड कर दिया गया। यहां यह बदले हुए नाम से जॉब करती थी और बदले हुए संबंधों से डाक्टर आहूजा से जुड़ी थी।
एमरजैंसी से निकल कर वह सीधा दफ्तर की तरफ गई। अखिलेश ने पूछा- देखना मेरी  पेशैंट होगी। -आज घर जा रही है?
-हां।
उसने कम्प्यूटर माऊस से क्लिक किया और की-बोर्ड पर उंगुलियां चला कर कहा- आपको पेमैंट करना है या लेना है?
-लेना है भाई।
-यहां तो आपको चार हज़ार रुपया देना है।
उसे तीन दिन पहले ओबराय का अस्पताल आना याद आया। वह अपनी गोरी, गोल-मटोल पत्नी को चैकअप के लिए आया था। एक हज़ार रुपया जेब में डाल कर लाया था। डाक्टर आहूजा ने कुछ टैस्ट लिख दिये थे, परन्तु टैस्टों के बाद जो बिल तैयार हुआ वह पांच हज़ार रुपए था। वह घर जाकर पैसे लाने की बात कह रहा था। जब वसुधा ने कहा... कोई बात नहीं। मैं विंडो पर जाकर बैलेंस अपने नाम करवा लेती हूं। फिर उसको सहज करने के लिए कहा - तुम्हारी पत्नी बहुत सुंदर है। कौन-सा साबुन लाकर देते हो?
-वही जो आपके पति पहले ही खरीद ले जाते हैं और बचे-खुचे टुकड़े हमारे लिए बच जाते हैं।