मंदिर में परिक्रमा क्यों करनी चाहिए ?

एक बार भगवान शंकर तथा माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय तथा  गणेश जी को सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पृथ्वी का एक चक्कर लगा आने को कहा । उन्होंने दोनों  से कहा कि जो  पहले आएगा, वही इस दौड़ का विजेता होगा । यह सुन कार्तिकेय अपनी सुंदर सवारी मोर पर पृथ्वी का चक्कर लगाने निकल पड़े । इधर, गणेश जी ने अपने दोनों हाथ जोड़े तथा भगवान शंकर एवं माता पार्वती के  गिर्दचक्कर लगाना शुरू कर दिया । कार्तिकेय लौटे तो गणेश जी आराम से बैठे थे । जब उन्होंने गणेश जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका संसार तो स्वयं उनके माता-पिता हैं । इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए पृथ्वी का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है । पुराणों के अनुसार इस घटना के बाद ही हिंदू धर्म में परिक्त्रमा करने की रीति का आरम्भ हुआ । तब से लेकर आज तक मंदिरों में परिक्त्रमा करने का रिवाज है । शास्त्रों में लिखा है कि जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदू से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है । यह निकट होने पर अधिक गहरा और चमत्कारी होता है । मंदिर में परिक्त्रमा सही दिशा तथा सही विधि से ही की जानी चाहिए । परिक्त्रमा  जब शुरू करें तो दायीं ओर भगवान या देवी-देवता की मूर्ति रहनी चाहिए । जैसे घड़ी में सुई घूमती है उसी तरह परिक्त्रमा के दौरान साधक को भी घूमना चाहिए । जिस भगवान या देवी-देवता की परिक्त्रमा कर रहे हैं, उसके मंत्र का जाप करते जाना चाहिए । पूरे विधि-विधान से की गई परिक्त्रमा से मनुष्य को ईश्वर से दूर होने का आभास नहीं होता और उसमें यह भावना बनी रहती है कि प्रभु उसके आस-पास ही हैं । ऐसी भी मान्यता है कि परिक्रमा धीरे-धीरे करनी चाहिए । ऐसा करने से हमारा ध्यान ईश्वर या देवी-देवता पर सतत केन्द्रित रहता है जिससे हमें मन की अपार शान्ति प्राप्त होती है ।  वैसे तो  सभी भगवान और देवी-देवताओं की एक ही परिक्त्रमा की जाती है किन्तु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग भगवान तथा देवी-देवताओं के लिए परिक्त्रमा की संख्या भी अलग-अलग है । देवियों की एक परिक्त्रमा ही की जाती है। शिव जी की परिक्रमा से मन में उठने वाले बुरे विचारों पर अंकुश लगता है । इसी  तरह  गणेश जी  तथा हनुमान जी की तीन परिक्त्रमा हमारी सोची हर बात को पूरा करती है । परिक्रमा करते समय गणेश जी तथा हनुमान जी का विराट स्वरूप हमें हिम्मत देता है । भगवान विष्णु तथा उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा से हमारे संकल्प ऊर्जावान बनकर हमारी सकारात्मक सोच में वृद्धि करते हैं । इसी तरह सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा से मन पवित्र होता है तथा हमें अच्छे विचार आते हैं । हिंदू मान्यताओं के अनुसार केवल भगवान की ही नहीं बल्कि कई अन्य वस्तुओं की भी परिक्रमा की जाती है । इसमें अग्नि, पेड़ तथा पौधे प्रमुख हैं । सबसे पवित्र माने जाने वाले तुलसी के पौधे की परिक्त्रमा करना हिंदू धर्म में आम बात है । पीपल के पेड़ में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है । दीपक की सात परिक्रमा न केवल शनि दोष वरन् सभी तरह के ग्रह जनित दोषों से छुटकारा दिलाती है । इसके अलावा हिंदू धर्मावलम्बी विवाह संस्कार में अग्नि की परिक्त्रमा को बहुत महत्व देते हैं । यह रिवाज है कि पति-पत्नी द्वारा विवाह संस्कार के दौरान हवन कुंड में जलती हुई अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं और सात जन्मों तक एक-दूसरे का साथ निभाने का वचन भी वे एक-दूसरे को देते हैं । जिन मंदिरों में परिक्त्रमा का मार्ग न हो, वहाँ भगवान के सामने खड़े होकर अपने पाँवों को इस प्रकार चलाना चाहिए जैसे कि हम चल कर परिक्त्रमा कर रहे हों। जिन देवताओं की परिक्त्रमा की संख्या का विधान मालूम न हो, उनकी तीन परिक्त्रमा की जा सकती है । तीन परिक्त्रमा के विधान को सभी जगह स्वीकार किया गया है । यही कारण है कि ठीक श्री गणेश जी की तरह ही मंदिर में भक्त भी भगवान की या देवी-देवता की मूर्ति की परिक्त्रमा करता है । इससे जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, वह मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है ।

 - रेणु जैन