प्राचीन बाबा वीरभद्र का मंदिर, नगरकोट (कांगड़ा)

यह मंदिर कांगड़ा (नगरकोट) से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पठानकोट से जाने वाले यात्री लगभग तीन घंटों में पहुंच जाते हैं। पठानकोट से बसों, टैक्सियों के अतिरिक्त छोटी लाईन वाली रेलगाड़ी भी जाती है। रेल द्वारा जाने वाले यात्री कांगड़ा में स्टेशन पर उतरते हैं। यहां से मंदिर नज़दीक पड़ता है। इस मंदिर के बारे में यह प्रसंग प्रसिद्ध है कि भगवान  शिव के एक गण वीरभद्र के नाम पर बना यह सुंदर मंदिर प्राचीन इतिहास का साक्षी है। जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन करके सती पार्वती के पति भगवान शिव का निरादर किया, तो सती ने यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर की आहुति दे दी। तत्पश्चात शिव जी ने क्रोधित होकर वीरभद्र नामक अपने गण को यज्ञ नष्ट करने के आदेश दिए। दक्ष का सिर काट कर हवन की भेंट कर दिया गया। फलस्वरूप महादेव जी को प्रसन्न कर दिया गया। सबके विचारानुसार यज्ञ तो पूर्ण होना ही चाहिए था। दक्ष के धड़ के साथ बकरे का सिर जोड़कर उन्हें जीवित किया गया। तत्पश्चात दक्ष ने बकरे की भाषा में बम शब्द का उच्चारण करके महादेव की स्तुति की। शिव जी प्रसन्न हुए और वर दिया कि तेरी भी पूजा मेरे ही समान होगी।  इसके पश्चात भगवान शंकर योगाग्नि-दग्ध सती के स्थूल शरीर को लेकर, विछोह के उन्माद में, सारे ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। ऐसी स्थिति को देख कर शिव जी का व्यामोह दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंग-भंग कर दिए। इस प्रकार सती के विभिन्न अंग भारत वर्ष में हिमालय के भिन्न-भिन्न स्थानों पर जा गिरे। जहां-जहां ये अंग गिरे, वे स्थान सिद्ध शक्तिपीठ कहलाते हैं।  ज्वालामुखी में जिव्हा, चिंतपूर्णी में चरण, नयना देवी में नेत्र, कलकता में केश, चंडीगढ़ के समीप मनसा देवी नामक स्थान पर मस्तक तथा वैष्णो देवी में बाजू गिरा था। इसी प्रकार कई अन्य स्थानों पर विभिन्न अंग जा गिरे थे। वीरभद्र की आज्ञापालन एवं अनुशासन और भक्तिवाद की सराहना पर उनको याद किया जाता है।

-बलविन्द्र ‘बालम’