दूसरी पारी के लिए उत्साह

राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में मोदी सरकार के शानदार शपथ ग्रहण समारोह के बाद दूसरी पारी की शुरुआत हो गई है। बड़े कैबिनेट मंत्रियों में राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसे मंत्री तो शामिल थे परन्तु अरुण जेतली और सुषमा स्वराज की कमी अवश्य महसूस हुई है। इसका कारण यह है कि इन दोनों का गत लम्बे समय से स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा। पहली पारी में इन दोनों ने प्रभावशाली कार्य किए थे। चाहे विदेश मामलों में बड़े रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही छाए दिखाई देते थे परन्तु सुषमा स्वराज ने भी विदेश मंत्रालय में अपना विशेष स्थान बनाया था। वित्त मंत्री के तौर पर अरुण जेतली ने अपनी बड़ी छाप छोड़ी थी। उनके द्वारा पेश किए केन्द्रीय बजट संतुलन से भरपूर थे। पिछली मोदी सरकार में आर्थिक क्षेत्र में दो बड़े कदम उठाए गए थे। पहला था नोटबंदी और दूसरा था वस्तु सेवाएं कर (जी.एस.टी.)। इन दोनों की बड़े स्तर पर चर्चा होती रही थी। नोटबंदी के नकारात्मक परिणाम अधिक सामने आए थे, परन्तु इसके लिए अरुण जेतली को दोष नहीं दिया जाता अपितु इसको प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया कदम ही कहा जाता रहा है। हम जी.एस.टी. को देश के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा मानते रहे हैं। अरुण जेतली ने जिस ढंग से एक साझी राय बनाकर इसको लागू किया, और इसके बाद लगातार होती प्रतिनिधि बैठकों में जिस तरह एक साझी राय बनाकर इसमें पर्याप्त बदलाव करवाए, उससे जेतली के संतुलित दृष्टिकोण की झलक स्पष्ट दिखाई देती थी। चाहे अपने विस्तृत मंत्रिमंडल में अधिक भाजपा के नेताओं को ही शामिल किया गया है, क्योंकि लोकसभा में भाजपा के 303 सदस्य आने के कारण इसका अपने तौर पर ही बहुमत बन जाता है। परन्तु इसके साथ-साथ नरेन्द्र मोदी ने अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया है। ऐसा करते हुए वह इन पार्टियों के चुने गए सदस्यों के आंकलनों में नहीं गए, अपितु इससे ऊपर उठकर अपने सभी सहयोगियों को इसमें शामिल किया है। इन सहयोगियों में शिव सेना, ए.आई.डी.एम.के., अकाली दल, लोक जन शक्ति पार्टी और अपना दल शामिल हैं। परन्तु इसमें जनता दल (यू.) के शामिल न होने ने सवाल अवश्य खड़े किए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया था। नितीश एक परिपक्व और अपने सिद्धांतों पर चलने वाले राजनीतिज्ञ हैं। मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी की कमी महसूस होने वाली कही जा सकती है। परन्तु इसके साथ अमित शाह को मंत्रिमंडल में शामिल करना भी एक बड़ा कदम कहा जा सकता है, क्योंकि इससे पूर्व शाह के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बारे में अनिश्चितता बनी रही थी। परन्तु राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, निर्मला सीता रमन और रामविलास पासवान जैसे राजनीतिज्ञों का सरकार चलाने का बढ़िया अनुभव मोदी के काम आ सकता है।  अपनी पहली पारी में नरेन्द्र मोदी द्वारा सार्क देशों के प्रमुखों को शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण दिया गया था। परन्तु इस बार बिमस्टिक देशों के सदस्यों को निमंत्रण दिया गया था, जिसमें बंगाल की खाड़ी के इन देशों में भारत के अलावा बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान आदि शामिल हैं। पाकिस्तान इसका सदस्य नहीं है, इस तरह करके सरकार ने पाकिस्तान के साथ लगातार बिगड़े रहे संबंधों के कारण उसको अलग-थलग करने का प्रयास किया है, और यह भी संदेश दिया है कि आने वाले समय में भारत-पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए तब ही बात करेगा, यदि पाकिस्तान आतंकवाद का संरक्षण करना बंद करेगा। अपनी पहली पारी में मोदी सरकार बड़े घोटालों में नहीं घिरी, दूसरी पारी में भी उससे ऐसी ही उम्मीद रखी जानी चाहिए। जिस उत्साह से दूसरी पारी शुरू की गई है, ऐसा उत्साह आगामी समय में भी कायम रखा जाना चाहिए, जो देश और समाज के लिए एक शुभ संकेत माना जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द