धर्मावतार व अप्रतिम योद्धा महाराजा दशरथ

राजा  दशरथ के बारे में विभिन्न रामायणों में पढ़ने पर पता चलता है कि वह ऐसे ही चक्र वर्ती सम्राट नहीं बने। कहते हैं कि रावण को एक बार दशरथ की बढ़ती प्रतिष्ठा से ईर्ष्या होने लगी व उसने अपने दूत के माध्यम से दशरथ को उसकी दासता स्वीकार करने के लिए ललकारा। जब दूत ने रावण का यह संदेश दशरथ को दिया, तब दशरथ ने अपने दरबार में बैठे-बैठे ही एक साथ चार बाण छोड़े व दूत से कहा कि जब वह वापस लंका जाएगा तो उसे लंका का द्वार बंद मिलेगा।दूत ने वापस जाकर ऐसा ही देखा तथा सारी घटना रावण से कह सुनाई। इससे रावण बहुत ही लज्जित हुआ व उसने ब्रह्मा की तपस्या करके दशरथ को पुत्रवान न होने देने का वर मांग लिया। कहा जाता है कि इसी वर के चलते दशरथ को लम्बे समय तक पुत्र सुख से वंचित रहना पड़ा। बाद में अश्वमेध यज्ञ करने पर ही उन्हें राम लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न जैसे वीर पुत्र मिले। रामायण में दशरथ के केवल चार पुत्र होने का ही उल्लेख मिलता है पर दशरथ के शांता नाम की एक पुत्री भी थी जो कौशल्या से उत्पन्न हुई थी व वह सबसे बड़ी थीं। दशरथ की पुत्री का विवाह श्रृंगी ऋषि से होने का उल्लेख पाया जाता है। दशरथ की वंश परंपरा अतीव गौरवशाली थी। वह इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए ये जिसे बाद में सूर्य वंश के नाम से भी जाना गया। दशरथ के पूर्वजों में राजा हरिश्चंद्र, राजा दिलीप, राजा रघु व राजा अज का होना पाया जाता है। वह परम प्रतापी राजा अज के बेटे थे। कहा जाता है कि दशरथ को ध्वनिभेदी बाण चलाने का बड़ा ही कौशल प्राप्त था पर शायद अति आत्म विश्वास के चलते वह एक बार चूक कर गए जब दूर कहीं हिरण के पानी पीने की आवाज सुनकर उन्होंने शर संधान किया व श्रवण कुमार का वध कर डाला जिसके अंधे माता पिता ने मरते हुए दशरथ को पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का शाप दे दिया जो राम के वनवास के बाद सत्य सिद्ध हुआ। दशरथ का राज्य प्रबंधन भी बड़ा अच्छा था। सामान्य प्रशासन का कार्य उनके सबसे योग्य मंत्री सुमंत संभालते थे जबकि युद्ध मंत्री के रूप  में धृष्टि उनके मंत्री थे। धर्म कर्म के कार्यों का प्रबंधन धर्मपाल नामक मंत्री के जिम्मे था। पुरोहित के रूप  में वशिष्ठ उनके पथ प्रदर्शक थे। महर्षि विश्वामित्र के आग्रह पर उन्होंने अपने अल्पवयस्क पुत्रों राम व लक्ष्मण को भी यज्ञ की रक्षार्थ भेज दिया था। दशरथ को अपने समय में धर्मावतार माना जाता था और इसी वजह से स्वयं भगवान विष्णु ने उनके घर पुत्र रूप  में जन्म लेना स्वीकार किया था।   

-घनश्याम बादल