कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य

हरे पहाड़, नीला आसमान, घने जंगल, स्वच्छ व साफ पानी के तालाब, नदी और झरने- उत्तर पूर्व भारत शांति व सुंदरता का आवास है। जहां शांति व सुंदरता मौजूद हो, वहां आध्यात्मिकता का होना स्वाभाविक है। इसलिए इस क्षेत्र में अनगिनत मंदिर, गिरजाघर, मस्जिद व मठ हैं। इन्हीं में शामिल है कामाख्या देवी मंदिर। गुवाहाटी (असम) स्थित यह मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है क्योंकि यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। कामाख्या देवी मंदिर के दर्शन करने से पहले व्यक्ति को उमानंद शिव मंदिर जाना चाहिए, जो ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित मोर द्वीप में एक पहाड़ी के ऊपर है। शिव उमा (पार्वती) से पहले यहीं मिले थे। कहा जाता है कि शिव जब पहाड़ी पर गहरे ध्यान में थे तो कामदेव ने हस्तक्षेप किया, जो शिव के क्रोध की आग में जलकर भस्म हो गये। इसलिए इस पहाड़ी को भस्मकला भी कहते हैं। मंदिर की दीवारों पर शिव व सती की पूरी कथा चित्रों के जरिये अंकित है। यह राजा दक्ष के घर में सती के जन्म से प्रारंभ होती है और फिर शिव के प्रति उनकी भक्ति व विवाह का सिलसिला है। एक चित्र में है कि राजा ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सती बिन बुलाये जाती हैं, जहां उनके पिता शिव का अपमान करते हैं। अपने पति के अपमान पर सती पवित्र यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। फिर अगले चित्र में शिव सती के बेजान शरीर को कंधे पर उठाकर तांडव करते हैं। भयभीत देवता विष्णु के पास जाते हैं, जो शिव को शांत कराते हुए अपने सुदर्शन चक्त्र से सती के शरीर को 51 भागों में काट देते हैं। जहां-जहां वे अंग गिरे, वही शक्तिपीठ के रूप में पूजा स्थल बन गये। 


-समीर चौधरी