क्या महत्त्व है अमित शाह के गृह मंत्री बनने का?

अमित शाह का मोदी सरकार में गृहमंत्री बनना हमारे देश की राजनीति के लिए खास मायने रखता है। वैसे प्रधानमंत्री किसे अपनी मंत्रिपरिषद में रखते हैं, किसे नहीं रखते हैं और किसे कौन-सा मंत्रालय देते हैं, यह उनका अपना विशेषाधिकार है, लेकिन जब बात अमित शाह के गृहमंत्री बनाने की हो, तो यह एक साधारण फैसला नहीं माना जाता। जब उनके मंत्रिपरिषद में शामिल होने की बात चल रही थी, तो माना जा रहा था कि वे वित्त मंत्री हो सकते हैं, क्योंकि स्वास्थ्य खराब होने के कारण अरुण जेटली मंत्री बनने के लिए उपलब्ध नहीं थे और भारतीय जनता पार्टी में मंत्री बनने योग्य सांसदों और नेताओं की भारी कमी है। अमित शाह खुद बैंक वगैरह से जुड़े रहे हैं और सफल व्यवसायी भी रहे हैं, इसलिए उनके वित्त मंत्री बनने की संभावना ज्यादा थी।लेकिन अनुमानों को धता बताते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें गृहमंत्री का पद दिया है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अपनी कामयाबी का झंडा फहराने के बाद मोदी सरकार का अंग बने अमित शाह अपने इस नये पद पर रहकर भी कुछ ऐसा करना चाहेंगे, जो सिर्फ  वही कर सकते। जब गुजरात में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे, तो उस समय अमित शाह सरकार के गृहमंत्री थे। इसलिए गृहमंत्री बनना उनके लिए कोई नई बात नहीं है। अंतर यह है कि उनके पास एक राज्य के गृहमंत्री रहने का अनुभव है और अब वे केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बन गए हैं। पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के गृहमंत्री के दायित्वों में आसमान-जमीन का फर्क होता है। प्रदेश का गृहमंत्री वहां की कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होता है। पूरा पुलिस महकमा उसके पास होता है। जबकि केन्द्र सरकार का गृहमंत्री कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार नहीं होता, क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकारों की परिधि में आती है। हां, केन्द्र शासित प्रदेशों में केन्द्र के गृहमंत्री की भी कुछ भुमिका पुलिस प्रशासन में होती है, लेकिन वह अपनी भूमिका सीधे नहीं निभाता, बल्कि रिमोट से निभाता हैं। केन्द्र के गृहमंत्री की भूमिका राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच एक मध्यस्थ के रूप में होती है और राज्य सरकारें राष्ट्रपति से केन्द्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा ही जुड़ती हैं। एक समय था जब केन्द्रीय मंत्रालय बहुत ही ताकतवर मंत्रालय हुआ करता था और तमाम केन्द्रीय नियुक्तियां इसी के द्वारा हुआ करती थीं। डिपार्टमेंट ऑफ  पर्सोनल इसी मंत्रालय के अंदर हुआ करता था। सीबीआई भी इसी को रिपोर्ट करती थी, लेकिन अब पहले जैसा ताकतवर यह मंत्रालय नहीं रहा। लेकिन जब मंत्री ताकतवर हो तो मंत्रालय भी अपने आप ताकतवर हो जाता है। अमित शाह मोदी सरकार में मोदी के बाद सबसे ताकतवर मंत्री हैं। कहा जाता है कि नरेन्द मोदी के साथ आंख मिलाकर बात करने की क्षमता सिर्फ  दो ही व्यक्तियों में थी- एक अरुण जेटली और दूसरे अमित शाह। पिछली सरकार के दौरान वित्त मंत्रालय में भी अरुण जेटली असहाय थे और प्रधानमंत्री मोदी का लगभग उस पर पूरा नियंत्रण था। सिर्फ नितिन गडकरी ही अपने मंत्रालय को स्वतंत्र रूप से देखा करते थे और उसमें प्रधानमंत्री कार्यालय का कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ करता था। अमित शाह सरकार में कितने हावी रहेंगे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रेस कान्फ्रैंस में पूछे गए सवालों का जवाब खुद प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि अमित शाह दे रहे थे। ऐसा करके नरेन्द्र मोदी ने यह संदेश दिया कि वे और अमित शाह एक ही तरह से सोचते हैं और दोनों दो जिस्म होने के बावजूद एक दिमाग हैं। सवाल उठता है कि अमित शाह गृहमंत्री के रूप में क्या क्या कर सकते हैं? सबसे पहले तो उन्हें जम्मू और कश्मीर की अशांति से निबटना है। पिछले कुछ महीने से वहां सेना आतंकवादियों के खिलाफ  कार्रवाई कर रही है। अमित शाह के आने के बाद वह कार्रवाई और तेज हो सकती है। गुजरात के गृहमंत्री की हैसियत से अमित शाह ने वहां के अपराधियों में खौफ  पैदा कर दिया था। जाहिर है कि जम्मू और कश्मीर के आतंकवादियो में खौफ  पैदा करने के लिए वहां और भी कड़ी कार्रवाई करने का आदेश जारी करेंगे। इस समय जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है, जिसे वहां गवर्नर रूल कहा जाता है, लेकिन इस तरह के रूल या शासन में केन्द्र की भूमिका बढ़ जाती है। सारे अधिकार केन्द्रीय गृह मंत्री के पास ही आ जाते हैं। इन अधिकारों का इस्तेमाल कर अमित शाह जल्द से जल्द वहां शांति की स्थिति लाने की कोशिश करेंगे और सिर्फ आतंकवादियों को ही नहीं, बल्कि घाटी के तमाम लोगाें को कड़ा संदेश देंगे कि शांति से रहना उनके हित में है और अशांति से रहने पर उनका ही नुकसान होगा। भारतीय जनता पार्टी के पास मुस्लिम एजेंडों की कमी नहीं है। उनमें तीन तलाक, बहु विवाह, हलाला और मुस्लिम पर्सनल लॉ महत्वपूर्ण है। तीन तलाक का विधेयक राज्य सभा से पास कराने में भाजपा विफल रही है, लेकिन अध्यादेश के द्वारा उसने कानून बना रखा है। अगले साल राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के बाद एनडीए को संसद के उच्च सदन में भी बहुमत प्राप्त हो जाएगा और वहां से विधेयक पारित कराना आसान हो जाएगा। तब तीन तलाक को अंतिम रूप में समाप्त कर दिया जाएगा। बहु विवाह पर भी अंकुश लगाने के कानून बन सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल कानून को समाप्त कर समान सिविल कानून बनाना भारतीय जनता पार्टी की पुरानी मांग रही है। अब तो वह सरकार में है। अब उसे मांग करने की जरूरत नहीं है, बल्कि वह खुद कॉमन सिविल कानून की ओर बढ़ सकती है और अमित शाह इस दिशा में आगे की कार्रवाई कर सकते हैं। इन सबके अलावा कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों से केन्द्र के टकराव भी बढ़ सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अमित शाह के निजी संबंध बेहद खराब हैं और भाजपा उस प्रदेश में अपनी सरकार बनाने की हर संभव कोशिश करेगी। और यह कोशिश तनाव पैदा करेगी। केरल सरकार के साथ भी केन्द्र से तनानती का संबंध बना रहेगा। (संवाद)