वृक्षों की कमी व पारा बढ़ना और- ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना खतरे की घंटी?


पटियाला, 4 जून (जसपाल सिंह ढिल्लों): कुदरत का सिद्धांत है कि वृक्षों के साथ ही जीवन है, कुदरत के इस नियम मुताबिक वृक्षों में धरती कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत होने चाहिए। भारत में यह सब कुछ विपरीत है क्योंकि इस देश ने जिस दर के साथ आबादी तो 1.33 अरब तक पहुंचा दी है, परन्तु वृक्षों के अस्तित्व को तेजी के साथ कुहाड़ा चलाकर, इस अपने आप बना और गैर योजनाबद्ध विकास की भेंट चढ़ा दिया है। भारत का विश्व में जंगलात के हिसाब से 10वां स्थान बनता है। भारत में कुल धरती का 24.4 प्रतिशत जंगलात है जो विश्व की धरती का सिर्फ  2.4 प्रतिशत ही है, जब कि यह जनसंख्या मुताबिक यह धूल कम 18 प्रतिशत होना बनता है। 
भारत में आंध्रा प्रदेश, करनाटक और केरल ही दक्षिण के ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने जंगलात में क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए कार्य किए हैं और क्रमवार 2141, 1101 और 1043 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगलात को बढ़ाया है। बाकी राज्यों की स्थिति बहुती अच्छी नहीं है। यही कारण है कि वृक्षों की कमी के कारण पैदा हुए प्रदूषण के कारण ने पहाड़ी क्षेत्रों पर भी प्रभाव पाया है, जिस के निष्कर्ष के तौर पर ग्लेशियर अब तेजी के साथ पिंघल रहे हैं। पूरे देश में हर राज्य के तापमान में औसतन एक से डेढ़ दर्जे सैंटीग्रेड का विस्तार हुआ है, जिस का मानवीय रहन सहन और तेजी के साथ प्रभाव पड़ रहा है। ताजा आंकड़ो अनुसार भारत की भौगोलिक स्थिति 3287469 वर्ग किलोमीटर है जिस में जंगलात नीचे क्षेत्रफल 708273 किलोमीटर भाव 21.54 प्रतिशत है।
हमारे राज्य में समय की सरकारों ने इस विकास की दीवार में जिस तरह वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाई जा रही है वह अपने आप में भविष्य के लिए बड़े संकट की निशानी है। आम कहावत है कि ‘कुदरत से दूरी बीमारियों को न्योता’ राज्य पर खरी उतरती है। 
पंजाब में विकास की दीवार ने जंगलात में क्षेत्रफल घटाया है। पंजाब की भौगोलिक स्थिति 50362 किलोमीटर है। आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में साल 2011 में जो जंगलात में क्षेत्रफल 3315 वर्ग किलोमीटर था यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 6.58 प्रतिशत था और हिंदुस्तान के क्षेत्रफल का न -मात्र सिर्फ 0.42 प्रतिशत और 2017 में क्षेत्रफल बढ़ने की जगह कम कर 3084 वर्ग किलोमीटर रह गया जो कुल राज्य की कुल धरती का 6.12 प्रतिशत है और भारत के क्षेत्रफल का 0.40 प्रतिशत है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि पंजाब का जंगलात नीचे क्षेत्रफल 1837 वर्ग किलोमीटर के साथ 3.65 प्रतिशत ही रह गया है जो बहुत ही गंभीरता वाली स्थिति है। पंजाब में वृक्षों की कमी ने ही न मुराद बीमारियों को जन्म दिया है। जंगलात में यह क्षेत्रफल सहृदय यत्नों के साथ ही बढ़ सकता है। इस संबन्धित सुझाव हैं कि यदि सरकार राज्य के 14.5 लाख किसान जो मुफ़्त बिजली की सुविधा लेते हैं को प्रति साल 5 पौधे पालने लाजिमी किए जाए और स्कूलों में छटी के विद्यार्थी को पौधा लगाकर 10.2 तक पालन की जिम्मेदारी दे कर उस के मैट्रिक और बारवीं की परीक्षा में उसे वृक्ष पालन के मुकाबले करवा के अंक दिए जाएं तो ही वृक्षों की संख्या बढ़ सकती है। राज्य में हर साल सरकारी और गैरसरकारी तौर पर वृक्ष तो बहुत लगाती हैं परन्तु पाले कितने गए यह आंकड़े कहीं नजर नहीं आते। हमें वृक्ष लगा के उनको पालना चाहिए। जिस तेज़ी से तापमान बढ़ रहा है और पहाड़ों पर ग्लेशियर कम होते जा रहे हैं। बरसात कम हो रही हैं भारत के कई राज्य सूखे जैसी स्थिति तक पहुंच गए हैं जहां पीने वाले पानी की भी समस्या है, पंजाब सरकार ने अगर धान की फसल का परिवर्तनीय प्रबंध न किया और बेरहमी के साथ धरती निचे पानी की बरबादी न रोकी तो पंजाब को भविष्य में कोई पावर रेगिस्थान बनने से नहीं रोक सकती।