विश्व कप जीतना है या पाकिस्तान को हरा कर खुश होना है ?

आईसीसी विश्व कप के इतिहास में भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध अपने सभी मुकाबलों में जीत दर्ज की है और दोनों टीमों की क्षमता को देखते हुए यह अनुमान लगाना गलत न होगा कि फि लहाल इंग्लैंड व वेल्स में चल रहे इस विश्व कप में भी इस इतिहास में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। पाकिस्तान एक बार फि र पराजित होगा। लेकिन सवाल यह है कि हम 1983 (लॉर्ड्स) व 2011 (मुंबई) को दोहराते हुए 2019 में कप लाना चाहते हैं या केवल पाकिस्तान को शिकस्त देकर संतुष्ट हो जाना चाहते हैं? गौरतलब है कि जब 2015 के विश्व कप में हमने लीग मैच के दौरान पाकिस्तान को पराजित किया था तो हरियाणा व अन्य जगहों पर रात भर ऐसे ढोल ताशे बजे थे कि जैसे हमने विश्व कप जीत लिया हो। दरअसल, आम भारतीय की यही सोच है कि भले ही विश्व कप हार जाओ, लेकिन पाकिस्तान को पराजित कर दो। इस गैर-खेल भावना से जहां खिलाड़ियों पर जबरदस्त दबाव बढ़ जाता है वहीं आयोजक व सट्टेबाज जन भावना से उमड़ी इस प्रतिद्वंद्विता को खूब भुनाते हैं। पुलवामा आतंकी घटना के बाद जब यह आवाज़ उठने लगी कि भारत को पाकिस्तान से तमाम खेल संबंध तोड़ लेने चाहिये और विश्व कप में पाकिस्तान से निर्धारित अपना लीग मैच भी नहीं खेलना चाहिए, साथ ही यह प्रयास होने चाहिये कि पाकिस्तान की आईसीसी सदस्यता ही समाप्त करा दी जाये ताकि वह किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा न ले सके, जैसे रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका पर 1992 तक प्रतिबंध रहा, तो आईसीसी ने इस मांग का कोई संज्ञान ही नहीं लिया, क्योंकि वह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी (भारत बनाम पाकिस्तान मैच) को हलाल नहीं करना चाहती थी। हालांकि तब सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर आदि खिलाड़ियों ने कहा था कि वह बिना खेले पाकिस्तान को 2 अंक नहीं देना चाहेंगे, खासकर इसलिए कि इस बार का फॉर्मेट कुछ ऐसा है कि 9 में से कम से कम 7 मैच जीतने पर ही सेमीफाइनल में पहुंचने की गारंटी होगी, लेकिन बीसीसीआई ने जन भावना को मद्देनज़र रखते हुए यह कहकर अपनी बला टाल दी कि विश्व कप में पाकिस्तान से खेलने या न खेलने का निर्णय सरकार लेगी। लेकिन जब प्रतियोगिता शुरू हो गई तो इस विषय पर कोई सवाल नहीं उठा। बिना सरकारी अनुमति के ही मान लिया गया कि भारत पाकिस्तान के विरुद्ध खेलेगा। क्यों? इस मैच से आयोजकों व संबंधित बोर्डों को जबरदस्त आमदनी होने जा रही है। सटोरियों की भी खूब कमाई होती है, उनकी तरफ  से भी मैच कराने का जबरदस्त दबाव रहता है, यह तथ्य है, आप इसे माने या न मानें। जरा इस बात पर गौर कीजिये- आईसीसी व उसके अधिकारिक टिकटिंग पार्टनर टिकट मास्टर ने भारत के विश्व कप मैच में ‘प्लैटिनम टिकट’ की कीमत ग्राहकों के लिए 235 पौंड (20,668 रुपए) रखी थी जो अब 995 पौंड (87,510 रुपए) का बिक रहा है। यह टिकट ब्लैक में नहीं बिक रहे हैं, यह आईसीसी के ‘अधिकारिक ट्रैवल एजेंट’ फनाटिक स्पोर्ट्स पर इतने में ही उपलब्ध हैं। भारत बनाम पाकिस्तान मैच के सारे टिकट बिक चुके हैं, अब अंदाजा कीजिये कि वह ब्लैक में किस दाम में उपलब्ध होंगे। जिन लोगों को फाइन लेग व शोर्ट लेग का अंतर नहीं मालूम, जो हुक व पुल में फ र्क नहीं बता सकते, वह भी भारत बनाम पाकिस्तान मैच में सुनील गावस्कर जैसे माहिर की टिप्पणी को गलत साबित करने पर आमादा रहते हैं। और टीम अगर किसी कारणवश कमजोर खेल जाये तो खिलाड़ियों पर तुरंत ही ‘बिक जाने’, ‘खेल से अधिक पत्नी/गर्लफ्रेंड में दिलचस्पी’, ‘मैच फिक्सिंग’ आदि के आरोप लगने लगते हैं। अजित वाडेकर की टीम वैस्टइंडीज से जीतकर लौटी तो उसके लिए गुलदस्ते ही गुलदस्ते थे, वही टीम जब इंग्लैंड में 42 रन पर सिमट गई तो खिलाड़ियों के घर पर पथराव हुए, उनका बाहर निकलना मुसीबत बन गया या फिर 1996 विश्व कप के सेमीफाइनल को कौन भूल सकता है कि श्रीलंका के विरुद्ध 252 के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत उस समय तक अच्छी स्थिति में था जब तक सचिन तेंदुलकर क्रीज पर थे, लेकिन जैसे ही वह 65 के अपने निजी स्कोर पर आऊट हुए तो भारत के लगातार विकेट गिरने लगे और उसका स्कोर 8 विकेट के नुकसान पर 120 हो गया। हार का आभास होते ही कोलकाता की भीड़ मैदान में बोतलें फेंकने लगी व सीटों में भी आग लगा दी। मैच रेफरी के पास कोई विकल्प न था कि मैच को बीच में ही रोककर श्रीलंका को जीता हुआ घोषित कर दे। वह मैच विनोद काम्बली के आंसुओं के कारण भी याद रहेगा जो उस समय क्रीज पर थे और हार मानने के लिए तैयार नहीं थे। इस पृष्ठभूमि में कल्पना कीजिये कि जो खिलाड़ी मैदान में हैं उन पर कितना अधिक दबाव होता होगा। अगर टीम में कोई मुस्लिम खिलाड़ी है, मैच पाकिस्तान से हो रहा है और उस बेचारे से कोई कैच छूट जाये, तो जनता उस पर ‘राजद्रोह’ का मुकद्दमा चलाने तक का फरमान जारी कर देती है। अरे भाई, यह विश्व कप है और पाकिस्तान प्रतियोगिता की दस टीमों में से केवल एक टीम है। उससे लीग स्तर पर सिर्फ  एक ही मैच होना है। इसलिए फोकस विश्व कप जीतने पर होना चाहिए। हालांकि सटोरियों ने इंग्लैंड को फेवरेट रैंक किया है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि बैस्ट टीम विश्व कप जीते, 1983 की वैस्टइंडीज टीम के खिलाड़ियों से मालूम करो या फि र 1982 की ब्राजील फुटबॉल टीम से। यह कठिन विश्व कप है। इसमें बरमूडा जैसी कमजोर टीम नहीं है। जो टीम कड़ी मेहनत करेगी और अपना संयम व संतुलन बनाये रखेगी, उसके जीतने की संभावना अधिक है।  विराट कोहली के लड़कों में यह गुण दिखाई दे रहे हैं और अगर वह विश्व कप जीत लेते हैं, जिसकी संभावना अधिक है और अपने इस सफर में पाकिस्तान को भी पराजित करते हैं, तो यह ‘आइसिंग ऑन द केक’ होगा।