कड़े संदेश की ज़रूरत

अंतत: कठूआ सामूहिक दुष्कर्म मामले के दोषियों को सज़ा सुना दी गई। 3 दोषियों को ता-उम्र  जेल एवं 3 अन्यों को पांच-पांच वर्ष कैद की सज़ा दिए जाने के संबंध में अनेक उंगलियां उठी हैं। महिलाओं के राष्ट्रीय आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने दोषियों के लिए फांसी की सज़ा की मांग करते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार को इस संबंध में उच्च अदालत में अपील करने के लिए कहा है। इसी प्रकार दिल्ली के राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने भी कहा है कि दोषियों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए थी। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व घटित हुए इस कांड ने एक बार तो पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। यह मामला जम्मू-कश्मीर में कठूआ के एक गांव रसाना में 10 जनवरी, 2018 को घटित हुआ था। 8 साल की बकरवाल बिरादरी की एक लड़की पशुओं को चराने के दौरान एकाएक गायब हो गई थी। कुछ दिन बाद उसकी लाश गांव के एक धार्मिक स्थान के निकट से मिली थी, जिसे लेकर भारी तूफान उठ खड़ा हुआ था। यहां तक कि इसे साम्प्रदायिक रंग भी दिया गया तथा पूरे प्रदेश में अत्यधिक तनावपूर्ण स्थिति बन गई थी। इसीलिए बाद में इस मामले को उच्च अदालत के आदेश पर पंजाब में स्थानांतरित कर दिया गया था तथा दोषियों को गुरदासपुर जेल में भेज दिया गया था। लगभग एक वर्ष के अन्तराल तक इसकी निरन्तर सुनवाई के बाद यह फैसला आया है। महिलाओं के साथ होते दुष्कर्म की खबरें निरन्तर आती रहती हैं। यहां तक कि अधिकतर दोषियों की ओर से अपनी पहचान को छिपाने के लिए छोटी-छोटी बालिकाओं अथवा महिलाओं को मार दिया जाता है। नित्य-प्रति घटित होती ऐसी अनेक पीड़ादायक घटनाओं में से कुछेक ही अब तक भारी चर्चा का विषय बनी हैं। ऐसा ही एक बहुचर्चित मामला दिल्ली में घटित हुआ था। निर्भया मामले में मैडिकल की पढ़ाई कर रही एक युवा लड़की के साथ चलती बस में कुछ व्यक्तियों की ओर से निर्मम तरीके से दुष्कर्म किया गया था, जिसके कुछ दिन बाद उस लड़की की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद देश की संसद ने महिलाओं के साथ होने वाली ऐसी ज्यादतियों के संबंध में कानून को और कड़ा कर दिया था। निर्भया कांड में पांच दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस दण्ड की पुष्टि भी कर दी थी। आश्चर्य एवं खेद की बात यह है कि कड़े दण्ड की व्यवस्था होने के बाद भी ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आ रही, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पाशविकतापूर्ण मानसिकता वाले व्यक्तियों को कानून का कोई डर ही नहीं रहा। ऐसे व्यक्तियों को पूर्णतया अलग-थलग किया जाना बहुत ज़रूरी है। कठुआ में घटित हुए इस कांड के संबंध में यह बात भी आश्चर्यजनक है कि न केवल इसे राजनीतिक एवं साम्प्रदायिक रंगत देने का यत्न किया गया, अपितु दोषियों को बचाने के लिए भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी के बहुत से नेता व कार्यकर्ता भी उस समय अत्यधिक सक्रिय नज़र आए थे। यहां तक कि उस समय वहां बनाए गए हिन्दू एकता मंच ने भी हिंसक प्रदर्शन किए थे। उस समय जम्मू-कश्मीर में पीपल्स डैमोक्रेटिक पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त सरकार सत्तारूढ़ थी। इस मामले को लेकर दोनों भागीदार दलों में भी भारी तनाव पैदा हुआ था। यहां तक कि दोषियों की मदद में पूरी तरह सामने आने के बाद भाजपा के दो मंत्रियों को त्यागपत्र भी देना पड़ा था। नि:संदेह ऐसी घटना अमानवीयता का प्रदर्शन है तथा इसके लिए दोषी पाए गए व्यक्ति कड़ी सज़ा के हकदार हैं, ताकि ऐसे कृत्यों में संलिप्त एवं मानवता से रहित लोगों को सबक मिल सके। कम से कम ऐसे लोगों को एक कड़ा संदेश अवश्य दिया जाना चाहिए। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द