बड़ा सबक सीखने की ज़रूरत

पिछले दिनों सुनाम के निकट गांव भगवानपुरा के मासूम बच्चे फतेहवीर सिंह के अचानक एक बोरवैल में गिर जाने की घटना ने जहां लोगों को झिंझोड़ कर रख दिया, वहीं रोष की एक बड़ी लहर भी पैदा हुई है। फतेहवीर सिंह 6 दिन तक बोरवैल में फंसा रहा। डाक्टरों के अनुसार उसकी मृत्यु चार दिन पहले हो चुकी थी। जैसे ही बच्चे के बोरवैल में गिरने की खबर फैली, स्थानीय प्रशासन हरकत में अवश्य आया, परन्तु बच्चे को बाहर निकालने हेतु उसके यत्न असफल रहे। इसके बाद राष्ट्रीय राहत प्रबंधन बल (एन.डी.आर.एफ.) के दो दर्जन के लगभग जवानों ने इन बचाव कार्यों में हिस्सा लिया, परन्तु वे भी सफल नहीं हुए। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जा रहा था, वैसे-वैसे लोगों में रोष का बढ़ते जाना प्राकृतिक बात थी। यह गुस्सा प्रशासन एवं सरकार पर फूटता रहा, परन्तु ऐसे हादसों के अवसर पर तुरंत राहत देने वाली आवश्यक मशीनरी की कमी के दृष्टिगत उचित समय पर समुचित कार्रवाई नहीं की जा सकी। 6 दिन तक जद्दोजहद करने के बाद बच्चे को निकाले जाने के जो परिणाम अनुमानित किये जा रहे थे, वही निकले। राहत कार्यों में इतनी देरी ने सरकार के ढीलेपन को ही उजागर किया है, जिस कारण बच्चे के परिवार समेत बड़े स्तर पर लोगों को गहरा दुख हुआ है तथा दूसरी तरफ प्रशासन को भी भारी नमोशी झेलनी पड़ रही है। बहुत-सी अन्य समस्याओं के साथ-साथ सूख चुके एवं खुले पड़े बोरवैल भारी समस्या बन रहे हैं तथा ये खतरे की घंटी हैं। इन्हें खुले छोड़ देना लोगों की भारी लापरवाही ही कहा जा सकता है। आज पंजाब में 14 लाख से भी अधिक ट्यूबवैल चल रहे हैं। इनमें पानी के निरन्तर नीचे चले जाने के कारण अधिकतर बोरवैल सूख चुके हैं, जिन्हें खुला छोड़ दिया जाता है। इस संबंध में जहां संबंधित किसानों एवं अन्य लोगों को सचेत होने की आवश्यकता होगी, वहीं सरकार को भी इस प्रवृत्ति के विरुद्ध कठोर होने की आवश्यकता है। आज के ढीलेपन ने बहुत-सी समस्याएं ला खड़ी की हैं। नगरों एवं शहरों में सीवरेज के मेन होल अधिकतर स्थानों पर खुले छोड़ दिये जाते हैं। वे भी भारी समस्याओं को पैदा करते हैं। सड़कों की अत्याधिक नाज़ुक हालत भी दुर्घटनाओं का कारण बनती है। नाड़ एवं पराली को खेतों में जलाये जाने के कारण उससे उपजे गहरे धुएं से भी अनेक दुर्घटनाएं घटित होती रहती हैं। यातायात के नियमों के पालन में भी लोगों की ओर से बड़े स्तर पर लापरवाही की जाती है जो अनेक छोटे-बड़े हादसों का कारण बन जाती है। फतेहवीर सिंह के दुखदायी हादसे के बाद जन-मानस में उपजी रोष की लहर से यह सन्देश समझा जाना चाहिए कि आज जहां अनेक पक्षों से सुरक्षा के प्रति सचेत होने की आवश्यकता होगी, वहीं समाज में अनुशासन लाये जाने की भी बड़ी ज़रूरत है। सरकार की ओर से प्रदर्शित की जा रही लापरवाही उसकी ढीली-ढाली कार्य-प्रणाली का ही प्रदर्शन है। इसी कारण प्रशासन को जन-रोष का सामना करना पड़ रहा है। आज इस दुखद हादसे का राजनीतिकरण करने की अपेक्षा इससे बड़े सबक सीखने की आवश्यकता महसूस होती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द