वंशवाद और भारतीय राजनीति

वंशवाद एक ऐसा जटिल विषय है जिसमें हर कोई दूसरे पर वंशवादी होने का आरोप तो लगाता है पर खुद इससे अछूता नहीं रहता। हाल ही में आये आम  चुनावों के नतीजे के बाद भाजपा और समर्थक ये साबित करने में कुछ हद तक सफल हुए कि इस बार भाजपा की इस प्रचंड जीत ने वंशवाद को खत्म कर दिया। परंतु क्या ये सत्य है? क्या भाजपा में कोई वंशवाद का उदाहरण नहीं है? ऐसे कुछ सवाल हैं जो जरूरी हैं कि पूछे जाएं।
वंशवाद है क्या?: वंशवाद शासन की एक ऐसी व्यवस्था जिसके तहत एक ही परिवार, वंश या समूह से एक के बाद एक कई शासक बनते जाते हैं। कई बार आयोग्य होने के बाद भी ये बदस्तूर जारी रहने वाला एक अलिखित नियम है। परंतु हर बार अयोग्य शासक ही हो ये भी सही नहीं है फिर भी पिछले कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में वंशवाद ने एक बहस को अवश्य जन्म दिया है।
अमेठी की हार : अमेठी से राहुल गांधी की हार क्या सचमुच वंशवाद को खत्म करने में सफल रही क्या देश में राहुल गांधी एकमात्र वंशवाद के उम्मीदवार थे? हालांकि अमेठी की परंपरागत सीट हार जाने से एक संदेश जनता तक अवश्य गया कि कैसे ये हार गए। यही लोकतंत्र की खूबी भी है कि एक उम्मीदवार अपनी परंपरागत सीट को हार सकता है इस हार से ये कहा जा सकता है कि वंशवाद के आगे मतदाता ज्यादा प्रभावी है। कुछ सिर्फ  गांधी परिवार में ही वंशवाद है। जैसा कि भाजपा ने जीत के बाद ये संदेश दिया कि भारत से वंशवाद का खात्मा हो चुका है। ये अपने आप में ही हास्यास्पद लगता है क्योंकि लगभग सभी छोटे-बड़े दलों में वंशवाद बदस्तूर जारी है। यही नहीं खुद एनडीए में कई नेता ऐसे हैं जो इसी परिवारवाद की राजनीति करते हैं। चिराग पासवान, पंकजा मुंडे, अनुराग ठाकुर, दुष्यंत कुमार, अकाली दल के सुखबीर बादल और उनकी पत्नी, जयंत सिन्हा और सबसे बड़ा और राहुल के समकक्ष मेनका गांधी और वरुण गांधी तो क्या अखिलेश यादव, तेज प्रताप यादव, आदि ही वंशवाद से पीड़ित हैं। ये उन सबको सोचना चाहिए जो राहुल गांधी को वंशवाद से पीड़ित बताते हैं।
आरक्षण की तर्ज पर वंशवाद : जैसे आरक्षण कई बार योग्य प्रतिभा को आगे आने से रोक देता है, उसी तरह वंशवाद भी कई बार योग्य उम्मीदवार की जगह अयोग्य को जनता के सामने लाया जाता है, क्योंकि मतदाता को उसके वंश का पता होता है तो परंपरागत मतदाता उसी वंश के उम्मीदवार को वोट देता है। ये सही नहीं है हालांकि यहां यह कहना पूरी तरह सही नहीं कि उसे जनता पर जबरन थोपा जाता हो। एक चुनाव की प्रणाली है जिससे चुनकर उसे भी आना ही होता है।
विदेशों में वंशवाद : ऐसा नहीं कि सिर्फ  भारत में ही वंशवाद की परिपाटी चली आ रही है। सबसे ताकतवर मुल्क अमरीका में  जॉर्ज बुश सीनियर के बाद जॉर्ज बुश जूनियर भी राष्ट्रपति बने और अब  जॉर्ज बुश सीनियर के छोटे बेटे जेब बुश जो फ्लोरिडा प्रान्त के गवर्नर हैं, अगले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार हो सकते हैं। बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी को कैसे भूला जा सकता है। कहने का मतलब यही कि ये प्राकृतिक है कि घर के पेशे का असर अगली पीढ़ी पर पड़ना स्वाभाविक है।
नुकसान : इसका नुकसान यही है कि योग्य व्यक्ति कई बार पीछे रह जाता है। परंतु यदि वंशवाद एक कमजोरी है राजनीति की तो इस पर खुलकर बहस होनी चाहिए सिर्फ  कुछ लोगों को निशाने पर नहीं लिया जा सकता। ये सही नहीं होगा। यूँ तो हर पेशे में वंशानुगत अलिखित नियम कुछ मात्रा में अवश्य हैं। जज का बेटा जज, डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, व्यापारी का बेटा व्यापारी, प्रशासनिक अधिकारी का बेटा भी इसी जॉब में जाना पसंद करता है क्योंकि उस पेशे के फायदे और नुकसान से वो परिचित होता है और उस क्षेत्र में जाना उसके लिए सुलभ हो जाता है क्योंकि उसको उचित मार्गदर्शन और प्रेरणा मिलती है। इसलिए राजनीति जैसा पेशा कोई कैसे छोड़ दे। बहरहाल अगर ये सचमुच समस्या है तो सभी को इस पर अवश्य राय रखनी चाहिए और सभी वंशवादियों को एक ही नजर से देखना चाहिए।