युवराज सिंह  क्रिकेट से संन्यास

एम.एस. धोनी की कप्तानी में भारत ने दो विश्व कप जीते हैं- 2007 में टी-20 और 2011 में 50 ओवर का एक दिवसीय- इन दोनों की जीत में केन्द्रीय व महत्वपूर्ण भूमिका रही हरफ नमौला खिलाड़ी युवराज सिंह की, जिन्होंने लगभग दो दशक की शानदार क्रिकेट के बाद बीती 10 जून 2019 को आईपीएल सहित सभी किस्म के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। जब इस वर्ष के आईपीएल में मुंबई इंडियंस की तरफ  से 37 वर्षीय युवराज सिंह गिनती के मैचों में ही मैदान में उतरे तब यह अंदाजा तो हो ही गया था कि अब वह अधिक दिन क्रिकेट नहीं खेलेंगे, खासकर इसलिए कि उन्होंने भारत के लिए अपना अंतिम एक दिवसीय मैच जून 2017 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध खेला था। बहरहाल, अगर युवराज सिंह के लम्बे, शानदार व सफल क्रिकेट कॅरियर को एक वाक्य में समेटा जाये तो वह यह है- युवराज सिंह हौसले व प्रतिभा की जीत का पर्याय रहे हैं, विशेषकर इसलिए कि उन्होंने प्रतिद्वंदी टीमों को ही पराजित नहीं किया बल्कि कैंसर पर फ तह दर्ज करके फिर क्रिकेट मैदान में लौटे। कपिल देव की टीम ने जब 1983 के विश्व कप में इतिहास रचा तब युवराज सिंह तीन साल के बच्चे थे। चूंकि दोनों का सम्बंध चंडीगढ़ से है, इसलिए युवराज सिंह की परवरिश कपिल देव की प्रेरणादायक कहानियों को सुनते हुए हुई और कपिल पाजी उनके हीरो बन गये। साथ ही युवराज सिंह ने भी विश्व कप जीतने का सपना देखना शुरू कर दिया। साल 2003 व 2007 की असफलता के बाद युवराज सिंह को 2011 में फिर अपना सपना साकार करने का अवसर मिला। उस वर्ष वह प्रतिद्वंदियों से ही नहीं, अपने आपसे भी संघर्ष कर रहे थे, अपने सपने को साकार करने के खामोश अभियान में। उनके शरीर के भीतर कुछ हो रहा था, लेकिन हौसला बरकरार था। वह बताते हैं, ‘मेरा एक सपना था। लेकिन मैं एक मेडिकल कंडीशन (लंग कैंसर) का सामना भी कर रहा था। मेरी सांस उखड़ जाती और मैं निरंतर खांसता रहता। लेकिन विश्व कप जीतने का सपना मुझे आगे बढ़ने के लिए निरंतर प्रेरित करता रहता।’ साल 2011 के विश्व कप में युवराज सिंह ने 362 रन बनाये और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि उन्होंने 15 विकेट लिए। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की जीत में युवराज सिंह की गेंदबाजी की मुख्य भूमिका थी। उनके विकेटों की संख्या टीम के कुछ स्थापित गेंदबाजों से भी अधिक थी। युवराज सिंह ने बताया, ‘गेंदबाजी करने का निर्णय महत्वपूर्ण था।’ इससे टीम को एक  अतिरिक्त गेंदबाज मिल गया, जो न सिर्फ  रन रोकने का काम कर रहा था बल्कि साझेदारियों को तोड़ते हुए निर्णायक विकेट भी ले रहा था। युवराज सिंह ने साल 2011 क्रिकेट विश्व कप के 9 मैचों में 75 ओवर फेंके, और आयरलैंड के विरुद्ध अपने दस ओवर में 31 रन देकर 5 विकेट लेना उनकी सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी रही। उन्होंने अपना पूरा कोटा ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान व श्रीलंका के विरुद्ध नाकआउट मैचों में भी फेंका। बल्लेबाज के रूप में वेस्टइंडीज के खिलाफ  उनके 113 रन प्रतियोगिता के नाजुक मकाम पर आये थे। इस प्रयास के लिए युवराज सिंह  को 2011 के विश्व कप का मैन-ऑफ -द-सीरीज चुना गया। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि युवराज सिंह की आत्मकथा ‘द टेस्ट ऑफ  माई लाइफ’ पर सचिन तेंदुलकर ने दो सटीक शब्द कहे- ‘शुद्ध प्रेरणा’। अपनी आत्मकथा में युवराज सिंह ने क्रिकेट से कैंसर और फिर क्रिकेट में वापसी की यात्रा को बयान किया है। उनका दर्शन सीधा व सच्चा है- ‘कभी हार मत मानो’। 2011 के विश्व कप में युवराज सिंह ने 265 एक दिवसीय मैचों के अनुभव के साथ प्रवेश किया था, लेकिन इस प्रतियोगिता के बाद उनका कॅरियर 30 एक दिवसीय मैचों तक और चला। वैसे कुल मिलाकर युवराज सिंह ने अपने कॅरियर में 40 टेस्ट खेले और 33.9 की औसत से 1900 रन बनाये और 9 विकेट भी लिए। लेकिन वह छोटे फॉर्मेट में अधिक सफ ल रहे। उन्होंने 304 एक दिवसीय मैच खेले, 36.5 की औसत से 8701 रन बनाये, 111 विकेट भी लिए। साथ ही 58 टी-20 मैचों में 28 की औसत से 1177 रन बनाये और 28 विकेट लिए। दरअसल, छोटे फॉर्मेट में भारत को शक्तिशाली टीम बनाने में युवराज सिंह के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस सिलसिले में उनकी दो पारियों का उल्लेख करना आवश्यक है। 2002 की नेट वेस्ट ट्राफी का इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में युवराज सिंह व मुहम्मद कैफ  की अविश्वसनीय साझेदारी, जिसकी  बदौलत भारत ने उस समय असंभव प्रतीत होने वाले 326 रन के लक्ष्य को पार करते हुए जीत हासिल की। इसी तरह 2007 के टी-20 विश्व कप में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर में युवराज सिंह ने छह छक्के लगाये। युवराज सिंह ने पिछले वर्ष ही तय कर लिया था कि इस साल का आईपीएल उनके कॅरियर का अंतिम होगा। अब वह दुनियाभर की टी-20 लीगों में हिस्सा लेना चाहते हैं और उन्हें उम्मीद है कि इसके लिए उन्हें बोर्ड से अनुमति मिल जायेगी। वह कहते हैं, ‘मैं उम्र के जिस मकाम पर हूं उसमें कुछ फन क्रिकेट खेलना चाहता हूं, जैसे ओवरसीज टी-20 लीग। मैं बाहर जाकर अपने जीवन का आनंद लेना चाहता हूं। अपने इंटरनेशनल कॅरियर के बारे में सोचना अब मेरे लिए तनावपूर्ण हो गया है। कोई नहीं चाहता कि मैं आईपीएल खेलूं और मैं भी आईपीएल के लिए उपलब्ध नहीं हूं। मैं भारत के बाहर जाकर खेलने की योजना बना रहा हूं।’अपने को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में स्थापित करने के लिए युवराज सिंह को जो अनेक संघर्ष करने पड़े, उनमें से एक यह भी था कि उनके अपने पिता योगराज सिंह से खराब रिश्ते रहे। पिता-पुत्र में एक बार इस संदर्भ में खुलकर आपसी बातचीत हुई और फि लहाल के लिए इस कड़वाहट पर विराम लग गया है। इस बारे में युवराज सिंह कहते हैं, ‘मैं तो ग्रोन-अप हो गया हूं, उनके (पिता) बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम।’ बहरहाल, कठिन संघर्षों के बावजूद युवराज सिंह अपने हौसले व प्रतिभा के बल पर सुनहरे अक्षरों में क्रिकेट इतिहास में अपना नाम लिखवाने में सफल रहे हैं।