क्या देश में फिर मंदी की आहट है ?

अमरीकी राष्ट्रपति भले अमरीकी लोगों के हितैषी हों, लेकिन जिस तरह दुनिया के दूसरे देशों के साथ उनका अकड़ और गैर-बराबरी से भरा व्यवहार होता है, उसे दूसरे देश क्यों स्वीकार करें? लेकिन व्यवहारिक सच्चाई यह भी है कि एक चीन को छोड़कर किसी ने भी अभी तक अमरीका के तुनक मिजाज रवैय्ये को तुर्की बतुर्की जवाब नहीं दिया। जिस तरह से आज डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे दौर के चुनाव को ध्यान में रखकर भारत पर दादागिरी दिखाने की कोशिश कर रहा है। लोग कहते हैं मोदी भी उसे, उसी की भाषा में जवाब दें।, प्रेसिडेंट ट्रंप ने मोदी को अपार जीत की जब बधाई दी, तो कईयों को लगा कि अमरीका ने लोहा मान लिया है और भारत जैसी ‘उभरती महाशक्ति’ पर किसी तरह का दबाव बनाने से पहले सौ बार सोचेगा। जो  इस भ्रम में जी रहे थे, कुछेक घंटों के बाद उन्हें झटका लगा, जब ट्रंप ने ‘जीएसपी’ (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ  प्रेफरेंस) के दायरे से भारत को बाहर कर देने की घोषणा की। विशेष कारोबार साझीदार प्रणाली के जरिये भारत 5.6 अरब डॉलर का जो सामान अमरीका निर्यात करता था, उसमें काफी छूट मिलती थी। इसके ठीक उलट 2018 में अमरीका ने भारत को 6.3 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इस घोषणा से भारत-अमरीका के बीच ट्रेड पैकेज की जो बात चल रही थी, वह टूट गई है। अमरीका ने जीएसपी वापिस लेने पर अफसोस व्यक्त किया है। उसका तर्क है कि व्यापार के मामले में हमारे लिए देशहित सर्वोपरि है। 29 अमरीकी सामानों पर भारत को नये सिरे से टैरिफ  निर्धारित करना था, उसकी तारीख टाल कर 16 जून 2019 कर दी गई है। ऐसा नहीं है कि अमरीका ने जीएसपी वापिस लेने की घोषणा कर चैप्टर क्लोज कर दिया। उससे पहले उसने अर्जेंटीना, म्यांमार, लाइबेरिया को जीएसपी सुविधा बंद कर दी थी। मगर, कुछ दिनों के बाद इन देशों ने जब टैरिफ  दुरूस्त किये जीएसपी को फिर से बहाल करने की घोषणा अमरीका ने कर दी। जब ट्रंप मोदी से पहली बार मिले, उन्होंने छूटते ही कहा कि भारत ‘ट्रेड बैरियर’ को और शिथिल करे ताकि अमरीका अधिक निर्यात कर सके, और अमरीकी जनता को रोजगार के अवसर प्राप्त हों। तब बात समझ में आ गई कि यह राष्ट्रपति से अधिक एक कुशल व्यापारी हैं। उस समय यह देखने वाली बात थी कि ट्रंप को ‘अमरीका फर्स्ट’ याद रहा, मगर मोदी ‘मेक इन इंडिया’ का नारा भूल गये। डेढ़ साल बाद अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव है। ट्रंप अपने पहले चुनावी वायदे के प्रति गंभीर हैं, यह स्पष्ट दिख रहा है। मोदी शासन पार्ट वन में दो अरब डॉलर की ड्रोन डील, अमरीकी कंपनी लॉकलीड मार्टिन द्वारा 70 अदद एफ-16 की सप्लाई और उसके रख-रखाव व कलपुर्जों के लिए टाटा से समझौते को लेकर अमरीकी उद्योग जगत की बांछें खिल गई थीं। उससे पूर्व नागरिक विमानों की बड़ी खेप भारत में निर्यात किये जाने को उद्धृत करते हुए ट्रंप ने संदेश दिया कि इससे अमरीकी नागरिकों को रोजगार के बड़े अवसर मिलने जा रहे हैं। मगर, यह उनकी भूख का ‘द एंड‘ नहीं था। ट्रंप के व्यापारिक लक्ष्य बदलते रहे हैं। ट्रंप, ई कॉमर्स कंपनियों पर कई तरह की पाबंदियों के आयद होने के कारण
भारत से नाखुश हैं। भारत सर्वर और डाटा स्टोर अपने यहां रखना चाहता है, जिसे लेकर अमेरिकन ई-कामर्स वाले असहज हैं। ट्रंप चाहते हैं कि हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर भारत कम से कम टैक्स लगाये ताकि इस प्रोडक्ट को भारत का विशाल बाजार हासिल हो। अमरीकी लॉबी को मालूम है कि भारतीय वायुसेना को 200 अत्याधुनिक युद्धक विमानों की आवश्यकता है, इसके एक बड़े हिस्से का निर्यात अमरीका करेगा, उसे ध्यान में रखकर मोदी पार्ट टू सरकार की नाकेबंदी में ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन लगा हुआ है। सवाल यह है कि हर चीज ट्रंप के मुताबिक क्यों हो? इस समय एक और बड़ा सवाल ईरान से तेल आयात का फंसा हुआ है। ट्रंप ने धमकाया है कि कोई भी देश ईरान से तेल खरीदता है, तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। उसके खिलाफ  हम कड़ी कार्रवाई करेंगे। अमरीकी राष्ट्रपति को अच्छे से पता है कि चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है, जो ईरान से सर्वाधिक क्रूड आयल आयात करता है और उसकी कीमत डॉलर में नहीं, रुपये में अदा करता है। भारत हर दिन 4 लाख 25 हजार बैरल तेल ईरान से लेता है। ईरान के विदेशमंत्री को आश्वासन दिया गया था कि नई सरकार के गठन के बाद हम इसका रास्ता निकालेंगे। यह भी एक परीक्षा का विषय है कि ट्रंप प्रशासन भारत को रियायत देने के लिए तैयार है, या नहीं। कूटनीति समुदाय यह तो मानकर चलता है कि चीनी राष्ट्रपति शी की तरह पीएम मोदी, डोनाल्ड ट्रंप को तुर्की ब तुर्की जवाब देने से रहे। एक मजबूत सरकार के बावजूद भारत, अमरीका से ट्रेड वार नहीं चाहेगा। वैसे ट्रंप का यह हठवाद ही कहा जाएगा कि वो भारत को ऐसे समय झटके दे रहे हैं, जब हमारे यहां बेरोजगारी पिछले 45 साल के रिकार्ड को तोड़ चुकी है। नोटबंदी के बाद से कारोबार की कमर टूटी पड़ी है। जीडीपी छह प्रतिशत से भी निचले पायदान पर है। सरकार खुलकर कुछ बोल नहीं रही, मगर सच यह है कि देश भयानक मंदी की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसा नहीं कि अमरीकन फाइनेंशियल इंटेलीजेंस के लोग भारत की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं। ऐसे में इस तरह की जबरदस्ती भी तो ठीक नहीं !

     -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर