लुप्त होता पक्षी टिटहरी

टिटहरी एक ऐसा अनोखा पक्षी है जो उड़ता कम है। यह अपना अधिकांश समय तालाब और झीलों के नजदीक गुजारता है। भारत के सभी प्रदेशों में टिटहरी पाई जाती है। इसका अंग्रेजी नाम ‘लेपविंग’ है। भारत में इसकी दो-तीन प्रजातियां ही पाई जाती हैं। टिटहरी का आकार प्रकार कुछ-कुछ बगुले से मिलता-जुलता होता है। गर्दन बगुले से छोटी होती है। सिर और गर्दन के ऊपर की तरफ और गले के नीचे का रंग काला होता है। इसके पंखों का रंग चमकीला कत्थई तथा सिर गर्दन के दोनों ओर एक सफेद चौड़ी पट्टी होती है। टिटहरी की दोनों आंखों के सामने एक गुद्देदार रचना पाई जाती है। इस रचना को देख कर यह पक्षी दूर से ही पहचान लिया जाता है। टिटहरी की दूसरी प्रजाति में आंखों के पास पाई जाने वाली यह रचना पीले रंग की गुद्देदार होती है। टिटहरी पक्षी की लंबाई 11 से 13 इंच एवं पंखों का फैलाव 26 से 34 इंच होता है। इसका शारीरिक भार लगभग 128-330 ग्राम पाया गया है। इसके पंख गोलाकार होते हैं तथा सिर पर एक उभरा भाग होता है जिसे क्रेस्ट कहते हैं। इसकी पूंछ छोटी एवं काली होती है जिसकी लंबाई लगभग 104 से 128 मिमी.पाई गई है। चोंच की लंबाई लगभग 31 से 36 मिमी.देखी गई है। कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो नहीं है पर बुजुर्गों के अनुसार उनका कई वर्षों का अनुभव कहता है कि जिस वर्ष टिटहरी जितने मात्रा में अंडे देती है, उतने माह तक भरपूर बारिश होती है। कहा जाता है कि मादा टिटहरी नदी, नालों व तालाब के किनारे पर ही अंडे रखती है। पानी के किनारों से जितना दूर वह अंडे रखेगी, बारिश उतनी अधिक होगी। यदि वह किनारों से 50 मीटर की दूरी पर अंडे रखेगी तो बारिश तो अधिक होगी ही, साथ ही बाढ़ जैसे हालात भी बनेंगे।  खेतों-जोहड़ के आसपास टिटहरी की तलाश की जाती है। फिर यह देखा जाता है कि उसने कितनी ऊंचाई पर अंडे दिए हैं। यदि वह ऊंचाई पर अंडे देती है तो समझो कि इस बार पानी की कोई कमी नहीं होगी। टिटहरी के अलावा अन्य पशु-पक्षियों को मौसम और अन्य खगोलीय घटनाओं का पूर्वानुमान होता है। टिटहरी एक मनमौजी पक्षी है जिसे खुला स्थान पसंद है जहां कीड़े-मकौड़े खाने को मिलते रहते हैं। 

—खुंजरि देवांगन