यमनोत्री में मिलती है हनुमान गंगा

उत्तराखण्ड के चार धामों के द्वार अक्षय तिथि को खुलने पर पर्यटकों को जाने का सुअवसर मिलता है।  मैंने यमनोत्री यात्रा देहरादून मार्ग से कीस,हग। रात मसूरी से पूर्व रामाकृष्णा आश्रम में काटी। स्थान उत्तम और सुंदर है। सारी सुविधायें पर्यटकों को मिल जाती हैं। दान इच्छानुसार है। अगले दिन मसूरी के दर्शनीय स्थान देखें। प्रात: कामटीफाल होते हुये स्थाना और हनुमानचट्टी मार्ग से गये। हनुमान चट्टी से आगे जीप का मार्ग है। पहली बार पैदल और इस बार जीप मिल गई। यहां हनुमानगंगा और यमनोत्री का संगम है। यहां स्नान करने की परम्परा है। आगे नारद और फूल चटटी आईं। वहां जलपान और विश्राम किया। वर्षा शुरू हो गई । हम रुके नहीं अपितु अंधेरे में जानकी चटटी पहुंचे और रात लाज में काटी। वर्षा के कारण ठण्ड बहुत रही। यमनोत्री यहां से सात किमी दूर है। अंतिम गांव खरसोली है। लोग इसे भैरों घाटी कहते हैं। गांव पौड़ी गढ़वाल में है। यमनोत्री के पण्डे उनियन जाति के ब्राह्मण हैं। दो सौ वर्ष पहले औणी गांव से आये थे। मोलू और पोलूराम के वंशज रहे।  इनको यहां भूमि राजा से मिली थी। गांव का सोमेश्वर मंदिर देखने वाला है। प्रात: आगे के लिये पैदल चले। चढ़ाई बहुत है।  कुछ की सांस फूलने लगती है। अंत में हिम चट्टान लांघ कर यमनोत्री का स्थान है। यमनोत्री के पर्वत शिखर बंदर पूंछ से जाना जाता है। सागर तट से यमनोत्री की ऊंचाई 10800 फुट है। बंदर पूंछ शिखर पर सदा हिम की धवल चादर छाई रहती है। यमनोत्री का उदगम् स्थान उत्तर पश्चिम शिखर की ओर से है। यमनोत्री को सूर्यसुता से भी जाना जाता है। यह पर्वतों के बीच से निकल कर 15 किमी दूरी पर विशाल जलधारा में परिवर्तित हो जाती है और यमनोत्री संज्ञा मिली है। आरम्भ में यहां निर्जन स्थान था । मंदिर बाद में सन 1850 में सुदर्शन शाह ने बनवाया था। प्राचीन दिव्य शिला है और मूर्ति नहीं थी। अब मंदिर में यमुना के साथ गंगा की मूर्ति  के अतिरिक्त हनुमान जी भी है। यहां खौलते जल का तप्तकुण्ड है। समीप गंधक की सुगंध है। कुछ इसे सूर्यकुण्ड कहते हैं। इस का इतना तापमान है कि हाथ डालने पर जल जाता है। बाहर स्नान हेतु दो कुण्ड पुरुष और स्त्रियों हेतु बनाये हैं। वहां स्नान किया जाता है। उसमें यमुना का शीतल जल बदरीनाथ की भांति डाला गया है। उनके नाम गौरी और सूर्यकुण्ड हैं। तप्तकुण्ड में लोग धागे से बांध कर चावल पकाते और पण्डा प्रसाद में उन को देता है। रहने हेतु काली कमली की सराय, विश्राम गृह और लाज है। सौंदर्य देखने वाला है। इसका वर्णन स्वयं प्रत्यक्षदर्शी कर सकता है।
शास्त्रों में इस की महिमा वर्णित है। कूर्मपुराण में कहा गया है कि भगवान सूर्य की पुत्री यमुना तीनों लोकाें में विख्यात है और हिमालय में पैदा हुई है। इसके नाम स्मरण और जल पीने व स्नान, कीर्तन से हजारों पाप नष्ट होत हैं और सात कुल पवित्र होते हैं। यहां पानी के कई तप्त कुण्ड हैं। कलिंद पर्वत से यमुना कई धाराओं  या झरनों में निकलती है। कलिन्द पर्वत से निकलने कारण इसे कलिंद नन्दिनी या कालिन्दी भी कहते हैं। पण्डा ने बताया  कि इसका जल कई बार जमता और पिघलता है। कुछ दूरी पर ऊपर जायें। इसके झरने दिखाई देते हैं। मौसम अच्छा होना चाहिये। स्थान तंग है। हजारों वर्ष पूर्व यह स्थान असित ऋषि के तपस्या स्थल रहा। वह प्रतिदिन यहां से पर्वतीय मार्ग से गंगा में स्नान करने जाते और वापिस यहां  निवास करते थे। वृद्ध होने पर दुर्गम हिम पर्वत पार करना कठिन हो गया। यहां गंगा का एक झरना स्वयं निकला।  उसमें वे स्नान करते रहे। यह आज भी है। मानो यहां दोनों धारायें एक हो गईं हों यदि बीच में दण्ड पर्वत नहीं होता। देहरादून के पास दोनों धारायें समीप ही हैं। इसे सूर्य पुत्री, यमराज सहोदरा, कृष्णा-प्रिया से भी जाना जाता है। इस का उदग्म स्थान बहुत सुंदर है। यहां से हम सीधे स्थाना चट्टी ठहरे। प्रात: धरासू की ओर प्रस्थान किया। वहां से उत्तरकाशी गये। वहां के मंदिर आदि देखे और दूसरे दिन गंगोत्री का मार्ग लिया। टिहरी में गंगा पर बांध बना दिया है। वह देखने वाला है। पहले सीधे टिहरी जाते थे। उस समय बांध नहीं था।  

—सुदर्शन अवस्थी इन्दु 
मो. 98165-12911