रूप, यश और विद्या मिलती है योगिनी एकादशी व्रत से

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को योगिनी अथवा शयनी एकादशी भी कहते हैं। धार्मिक आस्था के साथ जीवन जीने वालों के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि है। इस साल यह 29 जून को पड़ रही है। इस दिन भगवान श्री नारायण की पूजा-आराधना की जाती है,जो कि भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। हिंदू कैलेंडर के हिसाब से सालभर में कुल मिलाकर चौबीस एकादशियां होती हैं। मल मास की एकादशियों को मिला दें इनकी संख्या 26 हो जाती है। मान्यता है कि इन 26 में से अगर आपने 25 एकादशियों का व्रत नहीं किया और योगिनी एकादशी का व्रत कर लिया तो 26 एकादशियों का पुण्य फ ल मिलता है। योगिनी एकादशी को इसलिए भी बहुत महत्व दिया गया है, क्योंकि यह ठीक गुप्त नवरात्रि से पहले पड़ती है। इसलिए जो लोग गुप्त नवरात्रि का व्रत रखते हैं, उनके लिए शक्ति जाग्रत काल इस एकादशी से ही शुरू हो जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं, साथ ही इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति भी इसे करने से मिलती है। शास्त्रों में यहां तक कहा गया है कि पीपल के वृक्ष को काटने जैसे पाप  से भी इस व्रत के करने से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत के करने से देह की समस्त व्याधियां भी खत्म हो जाती हैं। यह व्रत तमाम शारीरिक व्याधियों को  नष्ट कर सुंदर रूप, गुण और यश देने वाला होता है।
कैसे करें व्रत 
एक दिन पहले ही यानी दशमी की रात्रि से ही यह व्रत शुरू हो जाता है। इसलिए व्रती को दशमी रात्रि को सिर्फ  जौ, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। ये चीजें उपलब्ध न हों तो अरवा चावल की खिचड़ी किसी काली या हरी दाल के साथ बनाकर खाना चाहिए। व्रत वाले दिन चूंकि नमक युक्त भोजन की मनाही है इसलिए दशमी की रात्रि के भोजन में भी नमक नहीं खाना चाहिए। इस व्रत में प्रात: स्नान आदि कार्यों के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद कलश की स्थापना की जाती है। व्रत की रात्रि व्रती को हर हाल में जागरण करना चाहिए। यह व्रत दशमी की रात्रि से शुरू होकर द्वादशी को प्रात:काल स्नान करने बाद दान कार्यों के बाद समाप्त होता है।
व्रत की कथा
प्राचीन काल में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के यहां हेम नामक एक माली रहता था। उसका कार्य रोजाना भगवान शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से फूल लाना होता। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ स्वछन्द विहार करने के लिए कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई।  वह दरबार में विलम्ब से पहुंचा। इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋ षि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋ षि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। 

—विजय त्रिपाठी