खतरनाक सिद्ध होंगे मध्य-पूर्व में युद्ध के मंडराते बादल

चीन व अन्य देशों के साथ व्यापार युद्ध छेड़ने के बाद अब अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह ईरान पर हमला करना चाहते हैं। अमरीका ने मध्य पूर्व में नए सिरे से 1000 अतिरिक्त सैनिक तैनात किये हैं जिससे इस क्षेत्र में एक बार फिर तनाव बढ़ गया है। दूसरी ओर ईरान ने घोषणा की है कि वह जल्द ही एनरिच यूरेनियम स्टॉक करने की अपनी सीमा को पार कर लेगा। ध्यान रहे कि 2015 के परमाणु समझौते के तहत ईरान सिर्फ  300 किलो लो.एनरिच यूरेनियम ही स्टॉक कर सकता है। लेकिन ईरान की एटॉमिक एनर्जी आर्गेनाइजेशन ने कहा है कि उसने एनरिचमेंट की दर को चार गुणा कर दिया है और जल्द ही स्टॉक करने की सीमा को भी पार कर जायेगी अगर अन्य पार्टियां 2015 के समझौते के अनुसार अपना वायदा पूरा नहीं करती हैं। अमरीका इस समझौते से पिछले साल ही अलग हो गया था, और अब ईरान पर परमाणु ब्लैकमेल का आरोप लगाते हुए इस बात पर बल दे रहा है कि तेहरान मध्य पूर्व में अस्थिरता ला रहा है।
 लेकिन असल कारण कुछ और ही नज़र आता है। 2020 में अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहे हैं, जिनमें डोनल्ड ट्रम्प दूसरा कार्यकाल प्राप्त करने के इच्छुक हैं। यह एक बड़ा कारण है कि वह न केवल व्यापार युद्ध पर आमादा हैं बल्कि ईरान में भी वैसी ही स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं जैसी बुश प्रशासन ने इराक में उत्पन्न की थी। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि अमरीका ने ईरान पर प्रतिबंध भी लगाये हुए हैं जिसके तहत वह तेल निर्यात नहीं कर सकता। भारत ने भी 5 मई से अमरीकी दबाव के कारण ईरान से तेल लेना बंद कर दिया है। इस दौरान खाड़ी में कई तेल जहाजों में बम विस्फोट हुए हैं, जिनके लिए सऊदी अरब ने ईरान पर सीधा आरोप लगाया है। अमरीका सऊदी अरब के हितों की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहता है।
 हालांकि अब तक ईरान ने परमाणु समझौते की सभी शर्तों को पूरा किया है, जिसे अमरीका का आंतरिक मूल्यांकन भी स्वीकार करता है, लेकिन उक्त कारणों के चलते मध्य पूर्व में युद्ध की आशंका प्रबल हो गई है, विशेषकर इसलिए कि अमरीका अपने पुराने व रद्द किये जा चुके नव-पुरातनपंथी एजेंडा के मोह में अब भी है कि जबरन लोकतंत्र निर्यात करो और शासन बदल दो। लेकिन इस समय अमरीका का सैन्य हस्तक्षेप घातक रहेगा। यह इराक विफलता का रिप्ले होगा जिसने ग्लोबल आर्डर को अस्थिर कर दिया, आईएस को जन्म दिया और रूस को मजबूर किया कि वह आक्रामक रुख अपनाये। गौरतलब है कि अमरीका ने इराक पर डब्लूएमडी (वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन) होने के गलत आरोप लगाकर सैन्य घुसपैठ की, सद्दाम हुसैन का तख्ता पलटा, लोकतंत्र के नाम पर अपनी कठपुतली सरकार बैठाई, जिसके विरोध में आईएस ने जन्म लिया और आज तक इराक शांति के लिए तरस रहा है। 
आईएस के कारण अन्य देशों में भी आतंकी हमले हुए ( व हो रहे हैं) और सीरिया में उसकी घुसपैठ के कारण रूस को भी आक्रामक होना पड़ रहा है। अमरीका के एक गलत निर्णय ने पूरे ग्लोबल आर्डर को अस्त-व्यस्त करके रखा हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि ईरान से युद्ध इराक में सैन्य अभियान की तुलना में कई गुणा अधिक खराब होगा, जैसा कि मध्य पूर्व में ईरान के कद, इतिहास व प्रभाव से स्पष्ट है। ईरान पर हमले का अर्थ है कि यमन में हौती लड़ाके, लेबनान में हिजबुल्लाह आदि भी सक्रिय हो जायेंगे और इजराइल को भी मजबूरन युद्ध में कूदना पड़ेगा। आवश्यकता इस बात की है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विशेषकर यूरोप तुरंत हस्तक्षेप करे और युद्ध की आशंकाओं पर विराम लगाये। 
ईरान ने यूरोपीय शक्तियों से कहा है कि वह उन्हें 8 जुलाई से आगे समय नहीं देगा, परमाणु समझौते व उसे अमरीकी प्रतिबंधों से बचाने के लिए। अगर यूरोप ने हस्तक्षेप नहीं किया तो वह अपने यूरेनियम एनरिच करने के प्रोग्राम को आगे बढ़ा देगा, जिसका दूसरे शब्दों में अर्थ यह है कि विश्व शक्तियों के साथ जो परमाणु समझौता हुआ है, उसका उल्लंघन होगा। लब्बोलुआब यह कि तेहरान परमाणु बम बनाने का संकेत दे रहा है और डोनल्ड ट्रम्प कह रहे हैं कि ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए व मिलिट्री एक्शन लेने के लिए तैयार हैं। ईरान चाहता है कि यूरोप अमरीकी प्रतिबंधों से उसकी अर्थ-व्यवस्था को सुरक्षित रखे। ईरान ने मई में यूरोप को 60 दिन की डेडलाइन दी थी कि वह इस बीच में परमाणु समझौते को बचाने का प्रयास करे वर्ना वह भी इस समझौते से अलग हो जायेगा और अपना यूरेनियम एनरिचमेंट कार्यक्रम पुन: आरंभ कर देगा।
लेकिन यूरोप की तरफ  से इस संदर्भ में कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है या यूं भी कहा जा सकता है कि अमरीका ने अपने दबदबे के कारण उसे कुछ करने नहीं दिया है। इस बीच ट्रम्प ने ओरलांडो में (18 जून) अपना चुनाव अभियान डेमोक्रेट्स को गलियाने से शुरू किया बिना अपने एजेंडा को आउटलाइन किये हुए, लेकिन अमरीका फर्स्ट के सिलसिले में विदेश नीति में अधिक आक्रामक होने के संकेत दिए, जिसका अर्थ यह है कि वह मध्य पूर्व में सैन्य कार्यवाही से अपने लिए राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल सुरक्षित करना चाहते हैं। वह अपने इरादों में सफल होंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि ट्रम्प अपने वायदे से मुकर रहे हैं। 2016 में वह इस वायदे के साथ सत्ता में आये थे कि विदेशों में अमरीका के सैन्य हस्तक्षेप पर विराम लगायेंगे। 
अमरीका युद्ध से थक चुका है, इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान से सैन्य टकराव अमरीका में भी पसंद नहीं किया जायेगा और ट्रम्प अपना सपोर्ट आधार भी खो बैठेंगे। इसलिए ट्रम्प को चाहिए कि वह अपने प्रशासन में नव-पुरातनपंथियों को हावी न होने दें। युद्ध ईरान के लिए भी हानिकारक होगा, इसलिए उसे भी परमाणु समझौते का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। युद्ध से पूरा ग्लोबल आर्डर बिगड़ जायेगा, भारत में भी महंगाई बढ़ जायेगी क्योंकि तेल के लिए वह मध्य पूर्व पर निर्भर है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का प्रयास युद्ध रोकने व शांति बहाल करने का होना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर