लोकसभा चुनाव की हार से अभी तक उभर नहीं पाई कांग्रेस

हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने में करीब तीन महीने शेष हैं। इनेलो दोफाड़ हो चुकी है और कांग्रेस अभी तक लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से उभर नहीं पाई है। वह अभी तक सदमे में ही है। पिछले पांच सालों से आपसी गुटबाजी में उलझी हुई कांग्रेस के एकजुट होने और आपसी मतभेद भुलाकर विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के आसार नहीं नजर आ रहे। आला कमान भी हरियाणा कांग्र्रेस में जान फूंकने और पार्टी के किसी दमदार चेहरे को सामने लाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा। अगर कुछ दिन और कांग्रेस आलाकमान का रवैया ऐसे ही चलता रहा तो न सिर्फ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए जीत बहुत दूर हो जाएगी बल्कि कांग्रेस के वापसी करने के आसार भी धीरे-धीरे धुंधले पड़ जाएंगे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तमाम दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा था और चुनाव से पहले पार्टी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने हरियाणा कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को एकजुट करने के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में पार्टी की कोर्डिनेशन कमेटी का गठन किया था, जिसमें हुड्डा के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, विधायक दल की नेता किरण चौधरी, राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा, राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, पूर्व सांसद नवीन जिंदल, कुलदीप बिश्नोई, कुलदीप शर्मा, दीपेंद्र व कैप्टन अजय सिंह सहित अनेक नेताओं को शामिल करके लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया था कि कांग्रेस पूरी तरह से एकजुट है। 
बेअसर रहे गुलाम नबी आज़ाद के प्रयास
गुलाम नबी आजाद ने अनेक बड़े नेताओं को एक बस में साथ बिठाकर पूरे प्रदेश में रोड शो भी किया था ताकि लोगों को कांग्रेस की एकजुटता का संदेश जाए। हुड्डा को कमेटी का प्रमुख बनाए जाने पर सबसे ज्यादा एतराज कुलदीप बिश्नोई ने किया था और वे राहुल गांधी के कार्यक्रम को छोड़कर अन्य कहीं भी साथ नजर नहीं आए और गुलाम नबी आजाद के प्रयास बेअसर नजर आए। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव में अपने बेटे भव्य बिश्नोई के समर्थन में कुलदीप को भूपेंद्र हुड्डा की जाटों के बड़े गांव में जनसभा करवानी पड़ी और वहां हुड्डा को यह कहना पड़ा कि भव्य बिश्नोई को भजन लाल का नहीं बल्कि मेरा पौत्र मान कर वोट जरूर देना। तथापि, इसका कोई असर नहीं हुआ और भव्य बिश्नोई न सिर्फ चुनाव हार गए बल्कि पूरे प्रदेश में कांग्रेस के इकलौते ऐसे उम्मीदवार थे जो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए और हिसार संसदीय क्षेत्र में तीसरे स्थान पर रहे। हिसार में मुख्य मुकाबाला भाजपा के बृजेंद्र सिंह व जेजेपी के दुष्यंत चौटाला के बीच रहा। लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा, उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा, डॉ. अशोक तंवर, कुमारी शैलजा, किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी, कुलदीप शर्मा, कैप्टन अजय सिंह, निर्मल सिंह, अवतार भडाना व भव्य बिश्नोई सारे ही चुनाव हार गए। कांग्रेस की इसी लड़ाई के चलते इनेलो से छिन चुका नेता प्रतिपक्ष का पद, अभी तक कांग्रेस को नहीं मिल पाया है। बीच में तंवर के स्थान पर शैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाने, भूपेंद्र हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष और कुलदीप बिश्नोई सहित तीन प्रमुख नेताओं को कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा चली थी लेकिन यह बात भी सिरे नहीं लग पाई और मामला अधर में लटक गया। कुछ तो प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की आपसी फूट और कुछ पार्टी आलाकमान का रवैया ऐसा रहा कि हरियाणा में पिछले पांच सालों से कांग्रेस उभर ही नहीं पा रही। पहले नगर निगम चुनावों में पार्टी की हार, फिर जींद उपचुनाव में रणदीप सुरजेवाला का मुख्य मुकाबले से बाहर होकर तीसरे स्थान पर जाना और आखिर में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तमाम दिग्गजों की हार ने पार्टी को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया है। इसी के चलते अभी तक कांग्रेस के तमाम नेता गहरे सदमें में हैं और विधानसभा चुनाव के लिए युद्ध स्तर पर जो तैयारियां होनी चाहिए थीं वैसी कोई तैयारी अभी तक नज़र नहीं आई। अभी तक तो सभी नेता अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग गा-बजा रहे है। 
भाजपा के हौसले बुलंद
2014 से पहले कभी भी भाजपा को हरियाणा में सत्ता का दावेदार नहीं माना जाता था। इससे पहले भाजपा चौधरी देवीलाल की पार्टी या चौधरी बंसीलाल की पार्टी के साथ मिलकर सत्ता में हिस्सेदारी पाती रही थी लेकिन अकेले दम पर कभी भी दो या चार से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई थी। 1991 व 2005 में भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा और दोनों बार दो-दो सीटें मिली थीं। 2009 में भी भाजपा अकेले चुनाव मैदान में उतरी और मात्र 4 सीटें हासिल की थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद हरियाणा में भी भाजपा ने अन्य दलों के अनेक नेताओं को भाजपा में लाकर प्रदेश में पहली बार अपने बलबूते पर सरकार बनाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 47, इनेलो ने 19, कांग्रेस ने 15, अकाली दल व बसपा ने 1-1, हजकां ने 2 व 5 सीटें निर्दलीय विधायकोें ने जीती थीं। 8 महीने पहले तक इनेलो-बसपा गठबंधन व कांग्रेस को सत्ता के लिए मजबूत दावेदार माना जा रहा था। भाजपा ने नगर निगम चुनाव में मेयर के पांचों पद जीतकर उसके बाद जींद उपचुनाव जीत कर फिर से प्रदेश में अपना माहौल बनाने का काम किया है। लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी दस सीटें जीतने के बाद भाजपा के पक्ष में माहौल बन गया है और अन्य राजनीतिक दलों के अनेक प्रमुख नेता और विधायक भी अपने-अपने दलों को छोड़कर आए दिन भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इसी मंगलवार को इनैलो के दो और वरिष्ठ विधायक परमिन्द्र ढुल्ल और ज़ाकिर हुसैन भी पार्टी का दामन छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये। जिस पार्टी को कुछ साल पहले तक प्रदेश की सत्ता के लिए कभी भी गंभीर दावेदार नहीं माना जाता था, आज वही भाजपा 90 में से 75 सीटें जीतने का दावा कर रही है। इनेलो के दोफाड़ होने और कांग्रेस की फूट का सीधा लाभ भाजपा को मिल रहा है। 
इनेलो की जिम्मेदारी अब ढालिया के कंधों पर 
पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में इनेलो ने सिरसा व हिसार की दो सीटें जीती थीं। इस बार इनेलो और जेजेपी अलग होने के बाद दुष्यंत चौटाला हिसार से अपनी जमानत बचाने और कांग्रेस से ज्यादा वोट लेने में तो सफल रहे लेकिन उनकी पार्टी जेजेपी व गठबंधन सहयोगी आम आदमी पार्टी का कोई भी अन्य उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाया। दूसरी तरफ पिछली बार सिरसा से इनेलो के सांसद बने चरणजीत सिंह रोड़ी इस बार भी इनेलो टिकट पर चुनाव मैदान में थे और कुरुक्षेत्र से अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला चुनाव लड़ रहे थे। इस बार इनेलो का कोई भी उम्मीदवार जीतना तो दूर, अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया और पार्टी पूरे प्रदेश में दो प्रतिशत वोट भी नहीं ले पाई। पार्टी की करारी हार के बाद इनेलो के प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। अरोड़ा के स्थान पर अब इनेलो प्रमुख ने पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का जिम्मा पूर्व आईएएस अधिकारी बीडी ढालिया को सौंपा है। ढालिया अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला दो हफ्ते तक प्रदेश में रहकर पार्टी को मजबूत करने के लिए निरंतर जिला स्तरीय बैठकें करते रहे और अब पार्टी संगठन को मजबूती देने का काम बीडी ढालिया व पार्टी के प्रदेश प्रधान महासचिव नियुक्त अभय चौटाला के जिम्मे है। वे पार्टी को कितना आगे बढ़ा पाएंगे और विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए पार्टी को कितनी ताकत दे पाएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन पूर्व नौकरशाह बीडी ढालिया अब सक्रिय राजनीति में जरूर नजर आने लगेंगे। 
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