मांग: शेर-ए-पंजाब से संबंधित परिवारों ने कहा- कोहेनूर का मामला अंतर्राष्ट्रीय अदालत में लेकर जाए सरकार

अमृतसर, 25 जून (सुरिंदर कोछड़): विश्व प्रसिद्ध कोहेनूर हीरे को भारत वापिस लाने के लिए शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह से संबंधित परिवारों ने केन्द्र सरकार से यह मामला अंतर्राष्ट्रीय अदालत में लेकर जाने की मांग की है। महाराजा दलीप सिंह के वारिस होने का दावा करते आ रहे संतोख सिंह संधावालिया व कथित तौर पर महाराजा शेर सिंह से संबंधित बताए जाते कंवर करविंदरपाल सिंह ने आज ‘अजीत समाचार’ से बातचीत करते हुए कहा कि भारत ने इस हीरे को लेने संबंधी अभी तक कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई है और इसे अभी तक भारत न लाया जाना, कहीं न कहीं भारतीय राजनीतिज्ञों की इच्छाशक्ति की कमी का ही नतीजा है। जबकि पाकिस्तान सहित इस हीरे को ताकत व छल (धोखा) से लूटकर ले जाने वाले अफगानिस्तान, ईरान व ब्रिटेन कई बार इस बारे अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में कोहेनूर पर दावेदारी के हक संबंधी केन्द्र सरकार तर्क पेश कर चुकी है कि एंगलो-सिख युद्धों में युद्ध के खर्च के मुआवज़े स्वरूप अपनी स्वै:च्छा से महाराजा रणजीत सिंह के वंशज़ों ने ब्रिटिश सरकार को यह हीरा दिया था, इसलिए इसे वापिस नहीं लिया जा सकता जबकि उक्त परिवारों का कहना है कि केन्द्र का यह तर्क बेहद गैर ज़िम्मेदाराना है कि यह हीरा सिख सलतनत के अंतिम शासक महाराजा दलीप सिंह द्वारा अपनी स्वै:च्छा से इंग्लैंड की महारानी को उपहारस्वरूप भेंट किया गया था, क्योंकि पंजाब पर ब्रिटिश सरकार का कब्ज़ा कायम होने के बाद लार्ड डल्हौजी ने लाहौर दरबार के शाही गहनों के साथ ही यह हीरा 6 अप्रैल 1850 को इंग्लैंड भिजवाया और जब नाबालिग महाराजा दलीप सिंह को इंग्लैंड भिजवाया गया तो उसके हाथों धोखे से यह हीरा महारानी को उपहारस्वरूप भेंट करवाया गया। उन्होंने कहा कि किसी भी नाबालिग द्वारा किसी को कोई उपहार देना या उसके द्वारा कोई समझौता करने को किसी भी देश की अदालत मान्यता नहीं देती। 
इसी आधार पर महाराजा दलीप सिंह व उनके बाद उनकी पुत्री शहज़ादी बम्बा सदरलैंड द्वारा दिल्ली स्थित भारत की तत्कालीन संघीय अदालत में कोहेनूर हीरा ब्रिटेन से मंगवाने के लिए 13 जुलाई 1946 को कानूनी लड़ाई की शुरुआत  करते हुए मुकद्दमा दर्ज करवाया गया था।
नादर शाह ने दिया था मणि को ‘कोहेनूर’ का नाम : ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार कोहेनूर हीरा, जिसका वास्तविक नाम ‘शामंतक मणि’ है। 
13वीं सदी में आंध्र प्रदेश के मौजूदा शहर गुंटूर की गोल कुंडा कोला खान की खुदवाई दौरान काकतीया राजवंश को प्राप्त हुई। राजा प्रताप रुद्र को पराजित कर यह ज्ञासुदीन तुगलक के पुत्र उल्लंघ खां ने प्राप्त की। उसके बाद यह आलाउद्दीन खिलज़ी, मुहम्मद बिन तुगलक, सुलतान इब्राहिम लोधी, बाबर, अकबर, शाह जहां, औरंगजेब व मुगलिया सलतनत के अंतिम बादशाह मुहम्मद शाह रंगीले के पास लम्बे समय तक रहने के बाद वर्ष 1739 में उससे यह मणि फारसी हमलावर नादर शाह ईरानी को प्राप्त हुई। नादर शाह ने पहली बार इस मणि को ‘कोहेनूर’ (रोशनी का पहाड़) का नाम दिया।