बिक्री का रिकॉर्ड क्यों बनाती हैं प्रेरक किताबें?

डेविड जोसेफ  श्वार्ट्ज जूनियर पिछली सदी के 30 के दशक में पैदा हुए अमरीका के प्रसिद्ध मोटीवेशनल लेखक थे। उनकी लिखी कुछ किताबें बहुत मशहूर हैं, उनमें पहला नाम है- ‘द मैजिक ऑफ  थिंकिंग बिग’। इस किताब का पहला प्रकाशन साल 1959 में हुआ था और कहा जाता है कि प्रकाशित होने के कुछ सालों के अंदर ही इस किताब की 60 लाख प्रतियां बिक चुकी थीं। इस किताब की दुनिया भर में पिछले 40 सालों में कम से कम 1 करोड़ प्रतियां बिकी हैं। यह अब तक करीब 27 भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है और आज भी हर महीने इसकी 50 हजार से ज्यादा प्रतियां बिकती हैं। जब भी सकारात्मक सोच के लेखकों की बात होती है तो सबसे पहले नाम डेविड जे. श्वार्ट्ज का ही लिया जाता है। क्योंकि उन्होंने अपनी लेखनी से पहली बार आम से आम लोगों में यह विश्वास भरने की कोशिश की कि अगर हमारी सोच सकारात्मक है, हमारी सोच में उम्मीद से भरी एक जीवंत दुनिया है तो हमें दुनिया की कोई ताकत असफल कर ही नहीं सकती।  डेविड जे. श्वार्ट्ज से सिर्फ  आम लोग ही प्रभावित नहीं हुए बल्कि बहुत से ऐसे मोटीविशनल राइटर भी प्रभावित हुए जिन्होंने बाद में उनके पदचिन्हों पर चलते हुए भी सफ लता के झंडे गाड़े। इनकी किताबें भी लाखों में बिकती हैं। भारत में भी एक व्यक्ति या लेखक ऐसे हैं जिन्हें डेविड जे. श्वार्ट्ज का दूरस्थ शिष्य कहा जा सकता है और ये हैं जीत आपकी (यू कैन विन) के लेखक शिव खेड़ा। शिव खेड़ा की ये किताब हालांकि विचार प्रस्तुतिकरण के मामले में ‘बड़ी सोच का जादू’ से थोड़े भिन्न है। लेकिन अगर दोनों किताबों के मूल कथन पर ध्यान दिया जाए तो ये दोनों एक ही बात कहती हैं कि अगर आपकी सोच सकारात्मक है तो आपको दुनिया में कोई भी नहीं हरा सकता। अगर आपकी सोच सकारात्मक है तो असफ लता आपके इर्द-गिर्द भी नहीं फटकेगी। यू कैन विन और इसका हिंदी संस्करण जीत आपकी के बारे में भी कहा जाता है कि इनकी अब तक 10 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं।सवाल है आखिर दुनिया भर में मशहूर मोटीवेशनल राइटर लोगों पर ऐसा क्या जादू फेरते हैं कि लोग उनकी किताबों के दीवाने रहते हैं। उनकी लिखी किताबें लाखों में ही नहीं, करोड़ों में बिकती हैं। क्या ये दुनिया से बिलकुल अलग लोग होते हैं? क्या ऐसे लेखक वाकई कोई जादू जानते हैं? जी, हां! ये जादू जानते हैं लेकिन ये जादू काला जादू नहीं होता, जो किसी तंत्र विद्या से सीखा जाए। यह जादू कोई भी सीख सकता है और इसके लिए न ही बहुत शारीरिक बल की जरूरत पड़ती है और न ही किसी ऐसे अद्भुत कौशल की दरकार होती है, जो दुनिया में किसी किसी के पास ही होता है। वास्तव में मोटीवेशनल लेखक लोगों की वह सबसे कमजोर नस पकड़ने में माहिर होते हैं, जिसको पकड़ते ही लोगों का ध्यान उनकी तरफ  जाये बिना रह ही नहीं सकता या कहें वे ऐसी जगह चोट करते हैं कि वे लोगों को झकझोर कर रख देते हैं। जैसा कि अपनी किताब ‘यू कैन विन’ या ‘जीत आपकी’ में शिव खेड़ा बार-बार कहते हैं, ‘महान लोग कुछ नया नहीं कहते बल्कि वे जो कुछ भी कहते हैं, वह नये ढंग से कहते हैं।’ यह उनकी सबसे बड़ी ताकत है। वास्तव में जब हम दुनिया के तमाम बड़े मोटीवेशनल लेखकों को पढ़ते हैं तो पाते हैं वह सबसे आम चीजों को, वे सबसे परिचित बातों को बिल्कुल नये अंदाज में रखने में माहिर होते हैं। जैसे- महान लेखक और दूसरे विश्व युद्ध के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहे सर विंस्टन चर्चिल कहते हैं, ‘खुद के लिए मैं बहुत आशावादी हूं। इसके अलावा कुछ और होना ज्यादा मायने नहीं रखता।’ सोचिए इस बात में खास क्या है? ये कोई खास बात नहीं है। हर काई आशावादी होता है। लेकिन चर्चिल अपने शानदार अंदाज में कह रहे हैं कि मैं सिर्फ  आशावादी हूं और कुछ होना मेरे लिए मायने ही नहीं रखता। यह बात वास्तव में इसलिए जादुई ढंग से आकर्षित करती है कि आशावादी होने का कोई और दूसरा विकल्प ही नहीं होता। आप यह नहीं कह सकते कि चूंकि आप निराशावादी नहीं हैं इसलिए आप आशावादी हैं। आप आशावादी है और सिर्फ  आशावादी हैं, इसके अलावा कुछ भी नहीं हैं। एक और महान लेखक हेनरी मैतिसे ने कहा है, ‘दुनिया में उसके लिए हमेशा फूल मौजूद होते हैं, जो फूलों को देखना चाहते हैं।’ कहने का मतलब आप यह शिकायत ही नहीं कर सकते कि दुनिया में फूल नहीं हैं। दरअसल आप यह शिकायत तभी करेंगे जब आपकी सोच में फ ूल नहीं होंगे। हेनरी मैतिसे ने बहुत साधारण तरीके से सोच में यह जादू भरने की कोशिश की है कि सकारात्मक रहने के अलावा कोई और दूसरा विकल्प ही नहीं होता इसलिए सफल होना है तो सकारात्मक होना ही पड़ेगा। असफलता सिर्फ  एक लक्ष्य भर की असफलता नहीं होती बल्कि असफलता हमारे समूचे वजूद का रूपातंरण होता है। इसलिए कोई व्यक्ति असफल हो जाता है तो महज किसी परीक्षा में असफ ल नहीं होता बल्कि वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में असफ ल हो जाता है। वह छोटी-छोटी गैर चुनौतियों वाली लड़ाईयों में भी असफ ल हो जाता है। इसलिए मोटीवेशनल राइटर कहते हैं कि जीवन में सफ लता के साथ असफलता का विकल्प ही नहीं रखना सिर्फ और सिर्फ  सफ ल ही होना है। एक और मशहूर मोटीवेशनल राइटर मैल्कम एक्स कहते हैं, ‘अगर आप आपदाओं के बारे में सोचेंगे तो वह आ ही जाएंगी। आगर आप मृत्यु के बारे बहुत गंभीरता से विचार करेंगे तो निश्चित रूप से आप उसकी तरफ  बढ़ने लगेंगे। ठीक इसी तरह जब आप पूरे मनोयोग से सकारात्मक सोचेंगे तो आप हर हाल में सफल ही होंगे।’ क्योंकि वास्तव में आपके पास आने के लिए और कोई चीज ही नहीं होगी। सफ लता ही आयेगी, उसे आना ही पड़ेगा। शायद इसीलिए स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘आपको खेल के नियमों को सीखना होगा ताकि आप किसी और से नहीं अपने आपसे भी बेहतर खेलें।’ एक और मोटीवेशनल किताब ‘द सेविन हैबिट्स ऑफ हाईली इफेक्टिव पीपल’ के लेखक स्टीफन आर. कोवी कहते हैं, ‘आप सफ लता के बारे में सोचें, उसके हिसाब से खुद को थोड़ा सा बदलें और फि र देखें कि आपसे ज्यादा सफल कोई दूसरा नहीं है।’ कुल जमा उनके कहने का मतलब यह है कि सफलता कोई किस्मत से हासिल जीत नहीं हैं बल्कि आपका नजरिया है। आपकी आदत है। आपका व्यवहार है। दुनिया के तमाम मोटीवेशनल राइटर इतनी छोटी-छोटी बातें कहकर ही लोगों में बदलाव लाते हैं। वे अपनी इन बातों के जादू से उनकी सोच को बदल देते हैं और एक बार जब सोच बदल गई तो कोई भी इन्सान कुछ भी कर सकता है। इसलिए जब भी लोग इन किताबों पर भरोसा करके अपनी सोच को बदलते हैं तो सफ लता हर हाल में मिलती है और फि र यह सफ लता इन तमाम लेखकों का किया गया जादू बन जाता है।