बहुत दुर्गम किन्तु रोमांचक है अमरनाथ यात्रा 

दुनिया का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर जितना प्राकृतिक कारणों से खूबसूरत है उतना ही धार्मिक स्थलों की वजह से भी, जहां पग-पग पर श्रद्धालुओं को पवित्र धामों के दर्शन होते हैं। तीर्थों के घर कश्मीर में आदि शक्ति जगदम्बा ने जहां स्थायी निवास बनाया था, वहीं ये स्थल ब्रह्मा, विष्णु व महेश की भी पावन भूमि है जिससे समूचा उत्तर भारत का हिस्सा तीर्थमय हो गया। कश्मीर में 45 शिवधाम, 60 विष्णुधाम, 3 ब्रह्मधाम व 22 शक्तिधाम तथा 700 नागधाम हैं। इन्हीं तीर्थ स्थलों में परम आस्था की प्रतीक है अमरनाथ की यात्रा जहां हर श्रद्धालु जीवन में एक बार अवश्य ही जाने को लालायित रहता है। अमरनाथ की यात्रा को श्रद्धालु स्वर्ग की प्राप्ति व मोक्ष तुल्य मानते हैं। अमरनाथ यात्रा शिव-प्रतीक ‘छड़ी मुबारक’ के नेतृत्व में चलती है। श्रीनगर के दशनामी अखाड़े के सैकड़ों साधुओं के साथ यह छड़ी मुबारक यात्रा पहले प्रारंभ होती थी लेकिन कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के चलते, यह यात्रा जम्मू से शुरू हुई लेकिन अब पुन: कश्मीर से ही यह यात्रा प्रारंभ होती है।विश्व के सर्वाधिक दुर्गम और ऊंचे तीर्थ स्थलों में से एक अमरनाथ यात्रा है। पहलगाम से पवित्र गुफा तक का मार्ग अत्यंत ही दुर्गम है, जिसमें हिमानी घाटियां, गिरते जल प्रपात, बर्फ की चादर से ढकी झीलें व उनमें से निकलती नदियां, श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देती हैं। 
श्रावण पूर्णिमा से तीन दिन पूर्व पहलगाम से शिव प्रतीक पवित्र छड़ी को लेकर, गाते बजाते हज़ारों भक्तगण चंदनवाड़ी की ओर बढ़ते हैं जो पहलगाम से 16 कि.मी. दूर 9500 फुट ऊंचाई पर पहाड़ी नदियों से युक्त घाटी है। अमरनाथ की प्रसिद्ध गुफा हिम आच्छादित पर्वतों के मध्य 12728 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां भगवान शिव का स्वयं प्रकृति द्वारा रचित हिम शिवलिंग है जो अमावस्या से पूर्णिमा तक बढ़कर अपने पूर्ण आकार को प्राप्त कर लेता है व पुन: घटना प्रारंभ हो जाता है। यह शिवलिंग आगामी अमावस्या तक बना रहता है। गुफा में कई जगह पानी टपकता है, लेकिन चन्द्रमा की कलाओं की तरह घटता-बढ़ता शिवलिंग एक विशेष स्थान पर ही बनता है।चंदनवाड़ी से शेषनाग जाते समय पिस्सू घाटी की तीन किलोमीटर की चढ़ाई अत्यंत ही खतरनाक है। शेषनाग समुद्रतल से 11730 फुट ऊंचा है। यहां की थकान भरी यात्रा में यात्रीगण पवित्र झील में स्नान कर थकावट दूर कर लेते हैं। यहां स्थित झील के बारे में मान्यता है कि भगवान शंकर ने अपने गले का सांप इसी झील में त्यागा था। इस झील में आज भी सर्प की पूर्णाकृति नजर आती है। यह यात्रा का तीसरा महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। शेषनाग लिद्दर नदी का उद्गम स्थल भी है। यहां यात्रीगण रात्रि विश्राम के बाद आगे की यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहां से रामहागुनस शिखर की ओर कठिन चढ़ाई है, जो 14800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। अमरनाथ यात्रा का यह शिखर सबसे ऊंचा है। शेषनाग से पंजतरणी 13 किमी दूरी पर स्थित है। यहां से पुन: दुर्गम चढ़ाई का सामना करना पड़ता है। महागुनस पर्वत उतरने के बाद भैरव पर्वत के दामन में पांच नदियां हैं, इसी कारण यह स्थल पंजतरणी कहलाता है। यहां पवित्र गंगा, पांच धाराओं के रूप में निकलती है। यह यात्रा का चौथा पड़ाव है, यहां तीर्थ यात्रियों के लिए भोजन व ठहरने की उचित व्यवस्था है।
पंजतरणी से पवित्र अमरनाथ गुफा 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गुफा दिखते ही यात्रियों में इतना जोश भर जाता है कि वे ‘जय भोलेनाथ’ के जयकारे लगाते हुए बर्फ के पुल को पार करते हैं व गंगा के तट पर पहुंचते हैं। यहां तीर्थयात्री गंगा में स्नान कर लगभग 100 फुट चौड़ी तथा 150 फुट लंबी पवित्र गुफा में शिवलिंग के दर्शन करने जाते हैं। इस तरह भाग्यशाली तीर्थयात्री भगवान अमरनाथ के पावन दर्शन कर अलौकिक आनन्द का अनुभव कर अपने को धन्य समझते हैं। लौटते समय यात्रीगण गुफा में से पवित्र सफेद भस्म अपने शरीर पर मलकर हर-हर महादेव उच्चारते हुए पुन: अपने-अपने स्थान को लौटने लगते हैं। यात्रा समाप्ति से पूर्व गुफा में रहने वाले कबूतरों को देख यात्री ‘जय’ शब्द अवश्य उच्चारित करते हैं, जो शिव स्वरूप हो जाते हैं। अमरनाथ की पवित्र यात्रा जुलाई से अगस्त के अंतिम सप्ताह तक जारी रहती है लेकिन श्रावण मास की यात्रा को ही सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। अमरनाथ की यात्रा के दौरान प्रशासन व कई सेवा मंडल यात्रियों के लिए लंगर व ऊनी कपड़ों की भी व्यवस्था करते हैं। हालांकि किसी समय कश्मीर घाटी यात्रा के दौरान ‘बाबा अमरनाथ की जय’ से गूंजती थी, लेकिन अब यह यात्रा आतंकवाद के साए में बड़ी हिम्मत से होती है व जम्मू-कश्मीर सरकार यात्रियों को पूरी सुरक्षा प्रदान करती है।

-महामंदिर गेट जोधपुर (राजस्थान)
मो. 94143-75214