अमर-कथा का ज्ञान

एक समय भगवती पार्वती ने भगवान शिवजी के मुख से अमर कथा सुनने की इच्छा जाहिर की। पहले तो भगवान ने टालने की कोशिश की लेकिन माता पार्वती के काफी अनुग्रह करने पर उन्होंने कहना प्रारंभ किया, हे प्रिये! चूंकि संसार में कोई भी प्राणी यदि अमर कथा सुन ले तो वह अमर हो जाएगा। इसलिए चलो,  हिमालय की किसी सघन गुफा में चलते हैं। उस एकान्त स्थान पर उन्होंने माता पार्वती को अमर कथा सुनानी प्रारंभ की। माता पार्वती बीच-बीच में हुुंकारा भरती रहीं। जब अमर कथा समाप्त हो गई तो भगवान शिवाजी ने देखा कि देवी पार्वती तो सो चुकी हैं। फिर हुंकारा कौन भर रहा था? इसी बीच माता पार्वती भी नींद से जाग उठीं। भगवान शिवजी ने देखा कि गुफा में एक तोते का बच्चा हुंकारा भर रहा था। यह जान कर कि तोते के बच्चे ने अमर कथा सुन ली है, शिवजी ने क्रोधित होकर अपना त्रिशूल उसकी तरफ फेंका। त्रिशूल अपनी तरफ आते देख तोते का बच्चा भागा। अपनी प्राण रक्षा हेतु वह काफी उड़ा मगर त्रिशूल ने उसका पीछा किया। संयोगवश उसी समय जमदग्नि ऋषि की पत्नी ने जम्हाई लेने के लिए जैसे ही अपना मुंह खोला, वैसे ही तोते का बच्चा उसके मुंह में प्रवेश कर पेट में चला गया। इसके साथ ही ऋषि-पत्नी का मुंह भी बंद हो गया। पीछे-पीछे आता त्रिशूल एकदम वहीं पर रुक गया। त्रिशूल वापस न लौटने पर भगवान शंकर जी भी पीछे-पीछे आए और सारा हाल जानकर तोते के बच्चे के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे लेकिन तोते के बच्चे ने अमर-कथा सुन ली थी और अमर कथा के प्रभाव से वह मर नहीं सकता था।उधर भगवान शिवाजी के इतने समय तक एक स्थान पर रहने से संसार चक्र में बाधा उत्पन्न हो गई। सभी देवता उनके पास आए और बोले, भगवान तोते के बच्चे का वध करने से अमर कथा की महिमा नहीं रहेगी। इसलिए तोते के बच्चे को क्षमा कर दें। भगवान ने ऋषि पत्नी के गर्भ में प्रविष्ट बालक से बाहर आने का निवेदन किया। बालक ने गर्भ से ही अभयदान की विनती की जो भगवान शंकर जी ने मान ली। इसके बाद तोते का बच्चा गर्भ से मानुष बालक रूप लेकर बाहर आया। अमर कथा के प्रभाव से वह दिव्य देहधारी हो चुका था। बाहर आकर उसने सभी देवताओं को प्रणाम किया। भगवान शिव जी ने उसे आशीर्वाद दिया। उसी समय नौ नाथ और चौरासी सिद्धों का प्राकट्य हुआ। सिद्ध बाबा बालक नाथ भी उसी समय जन्मे जिन्होंने बाद में अपनी साधना द्वारा भगवान को प्राप्त किया। बाबा बालकनाथ जी का मंदिर दियोटसिद्ध चकमोह नामक ग्राम में ज़िला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश में है जहां पर लाखों की संख्या मेें श्रद्धालु आते हैं। यहां बड़ा भारी मेला लगता है।

—मनोज वर्मा