जल संकट की दस्तक

देश भर में जल संकट की स्थिति बेहद गम्भीर होती देखकर अंतत: प्रधानमंत्री को इस संबंध में चिन्ता जतानी पड़ी है। जहां तक देश में पानी की किल्लत का सवाल है, इस संबंध में खतरे की घंटियां तो कई दशकों पूर्व ही बजनी शुरू हो गई थीं। परन्तु केन्द्र और राज्यों की सरकारें इसके प्रति बड़ी सीमा तक लापरवाह ही बनी रही थी। अधिकतर राज्य सरकारों ने इस संकट को देखते हुए भी बेहद लापरवाही अपनाते हुए पानी का बड़ी सीमा तक दुरुपयोग ही किया है। पानी को बचाने के संबंध में कोई गम्भीर योजनाबंदी नहीं की गई। कोई भी कानून नहीं बनाए गए, जिन पर सख्ती से अमल किया जाता। न ही इसको बचाने के लिए वैज्ञानिक तकनीकों का सहारा ही लिया गया।  आज हालत यह है कि देश का बड़ा हिस्सा पानी के गम्भीर संकट में फंस चुका है। 16 प्रतिशत हिस्सा तो इससे बुरी तरह प्रभावित है। ऊपर से गत कई वर्षों से देश के अधिकतर स्थानों पर मॉनसून की बारिश भी कम ही होती आ रही है। परन्तु देश में बारिश का पानी कितना सम्भाला जाता है? आंकड़ों के अनुसार जितनी बारिश यहां होती है, उसके पानी का 8 प्रतिशत हिस्सा ही बचाया नहीं जाता। बहुत सारी नदियां, नाले, तालाब और छप्पड़ सूख गए हैं। वहां कई तरह के निर्माण कर दिए गए हैं या इन ज़मीनों पर कब्ज़े कर लिए गए हैं। भूमि निचले जल का पूरी तरह दुरुपयोग करके इसके स्तर को पाताल तक पहुंचा दिया गया है। गत दिनों नीति आयोग ने यह बयान दिया था कि आज पानी की कमी सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है, इसने खासतौर पर पंजाब और महाराष्ट्र का उदाहरण भी दिया था, जहां धान की कृषि भूमि का जल निकाल कर की जाती है और सूखा प्रभावित होने के बावजूद महाराष्ट्र में गन्ने की कृषि बढ़ती गई है। चाहिए तो यह था कि नदियों के पानी का प्रयोग बेहतर ढंग से किया जाता। बारिश के पानी को सम्भाला जाता। भूमि निचले जल के स्तर को संभाला जाता परन्तु यह स्रोत लगातार कम होते गए हैं। एक अनुमान के अनुसार गत कुछ समय के दौरान जल स्रोत 17 प्रतिशत कम हो चुके हैं। आज महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि सूखे की मार में है। तमिलनाडु में तो जल संकट के कारण लोग आंदोलन पर उतर आए हैं। महानगरों का हाल यह है कि एक अनुमान के अनुसार एक वर्ष में 10 करोड़ के लगभग लोग इस जल की कमी से प्रभावित होंगे। केन्द्र सरकार पानी की इस स्थिति को देखकर पूरी तरह चिंतित हो गई है। इसीलिए अब उसके द्वारा नया जल शक्ति मंत्रालय बनाने का ऐलान किया गया है। जल संबंधी योजनाबंदी करना बेहद मुश्किल कार्य है, इसको बचाना सचेत रूप में युद्ध लड़ने के समान है।  दरियाओं का पानी यहां तक प्रदूषित हो चुका है कि उनको कब और किस तरह साफ किया जाना है, इस संबंध में कोई भी प्रभावशाली योजना सामने नहीं आई। गंगा के जल को स्वच्छ रखने के लिए तत्कालीन सरकारें गत कई वर्षों से अपना जोर लगा रही हैं, परन्तु समय यह आ गया है कि यदि इस संबंध में पूरे प्रयासों से कार्य न किए गए तो देश के लिए जल की कमी एक भयानक खतरा बन जायेगा। इसी कड़ी के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिनों अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम को पुन: शुरू करते हुए इस मुद्दे को केन्द्र बिन्दु बनाया है। उन्होंने पानी बचाने को जन आंदोलन बनाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि उनकी अपनी पूर्व सरकार के समय ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू किया था, इसलिए पानी के बचाव के लिए भी कड़े कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। चाहे उन्होंने कुछ राज्यों द्वारा पानी के बचाव की छोटी-छोटी पहलकदमियों का उल्लेख किया। इसमें उन्होंने पंजाब में निकासी नालों की मरम्मत के कार्य की सराहना भी की है, परन्तु जहां तक पंजाब का संबंध है, उस संबंध में केन्द्र सरकार के आंकड़े यह बताते हैं कि राज्य में भूमि निचले जल का सीमा से अधिक दुरुपयोग किया गया है, जिस कारण राज्य के अधिकतर ब्लाकों में पानी चिंताजनक सीमा तक धरती के नीचे सिमट गया है। जहां तक कृषि का संबंध है, सरकार के लिए यह कार्य बेहद विशाल और कठिन है कि किन क्षेत्रों में कौन-सी फसलें बोई जानी हैं और बाद में उनका मंडीकरण कैसे होना है? भूमि निचले जल को कैसे संभालना है और बड़ी चुनौती यह है कि उसका स्तर ऊपर कैसे उठाना है। इसलिए बारिश का पानी बचाना और कृषि के सिंचाई की बूंद या फव्वारा आदि विधियों को अपनाने की ज़रूरत है। उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए भी पानी का प्रयोग पूरी तरह नियमित किया जाना चाहिए। इसके लिए कड़े कानून बनाये जाने चाहिए।  उद्योग, व्यापारिक संस्थानों और घरों में पानी के प्रयोग के लिए बिजली की तरह मीटर लगाने के लिए कदम उठाने चाहिए और उनको हर हाल में त्रुटि रहित बनाया जाना चाहिए। घरों और शहरों में बारिश के पानी को बचाने के लिए ठोस प्रबंध किए जाने आवश्यक हैं। यदि समय रहते इन योजनाओं को व्यवहारिक रूप न दिया गया तो प्रधानमंत्री की अपीलें परिणाम-रहित साबित होंगी। जन-मानस में जल के प्रयोग के प्रति जागरूकता पैदा की जानी भी बेहद ज़रूरी है, ताकि हम इस बहुमूल्य स्रोत को कहीं गंवा न बैठें। उस स्रोत को जो धड़कते जीवन का चिन्ह है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द