डाक्टरों को भी मिलनी चाहिए सुरक्षा

डॉक्टर जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे मरीजों का न सिर्फ  इलाज करते हैं, बल्कि उन्हें एक नया जीवन भी देते हैं। इसलिए उन्हें धरती पर भगवान का दर्जा दिया जाता है, उन्हें जीवनदाता कहा जाता है। क्योंकि वही एक ऐसा शख्स है, जो किसी को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। तिल-तिल मरते किसी इंसान को जिंदगी दे सकता है और खोई हुई उम्मीदों को जीता-जागता उत्साह दे सकता है। जाहिर-सी बात है कि धरती पर एक डॉक्टर ही साक्षात ईश्वर का काम करता है और इसके लिए उनके प्रति जितना कृतज्ञ हुआ जाए, कम ही होगा।
गत दिनों पश्चिम बंगाल में एक मरीज की मौत के बाद  डॉक्टरों के साथ मारपीट की गई, जिस कारण एक डाक्टर कोमा में चला गया।  इस घटना के बाद   डॉक्टरों  द्वारा प्रदर्शन किया गया। डाक्टरों पर किए गये हमले में कुछ डाक्टरों को चोटें भी आईं। पश्चिम बंगाल और देश के कई राज्यों में इस प्रदर्शन  की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं भी कई दिनों तक प्रभावित रही।
पश्चिम बंगाल से निकली डॉक्टर्स की आवाज ने पूरे देश में अपनी आवाज को एक रुप दे दिया। अपनी जान की परवाह सबको होती है तो डॉक्टर्स को क्यों न हो। मरीज को देखना और उसका उपचार करना एक चिकित्सक का कर्तव्य है परंतु हर मरीज को सही कर पाने की उम्मीद जो मरीज के परिचित कर बैठते हैं और यही उम्मीद जब टूटती है तो उनका रोष कभी-कभी इलाज कर रहे डॉक्टर्स को झेलना पड़ता है। हालांकि कई बार हम कह जाते हैं कि चिकित्सक लापरवाही करते हैं परंतु वो भी तो इंसान हैं। डाक्टर की प्राथमिकता होती है मरीज की जान बचाना, लेकिन कई बार मरीज की हालत इतनी नाजुक होती है कि उसकी जान बचाना डाक्टर के भी बस में नहीं होता।
दिन-रात सेवा देने वाला डॉक्टर जब खुद ही सुरक्षित न हो तो दूसरों को जीवन कैसे देगा? हर वक्त डर के साये में इलाज करेगा तो बेहतर इलाज कैसे संभव होगा? जब हम दीवाली, होली, ईद मना रहे होते हैं, जब हम रातों को घरों में सोए होते हैं, ऐसे में भी डॉक्टर मरीजों की सेवा के लिए अस्पतालों में आपातकालीन सेवा में लगे होते हैं। ऐसे में अगर उन पर हमला हो तो उनको इस बाबत केंद्र सरकार और राज्य सरकार से अपनी सुरक्षा मांगने का हक है। भारत में डाक्टरों के साथ हिंसा की घटनाएं पिछले चार साल में ज्यादा बढ़ी हैं। यह हिंसा डाक्टरों के साथ मारपीट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन पर जानलेवा हमले तक किए गए। अस्पतालों को नुक्सान पहुंचाया गया और अन्य मरीजों के जीवन को हिंसक भीड़ द्वारा ़खतरे में डाला गया। इंडियन मैडीकल एसोसिएशन (आई.एम.ए.) ने 2015 में एक अध्ययन करवाया था। इसमें यह सामने आया कि कार्य के दौरान 75 प्रतिशत डाक्टरों को हिंसा का सामना करना पड़ा।
स्वास्थ्य सेवा सबसे जरूरी और आवश्यक है। इसमें एक पल की लापरवाही या देरी जान देकर भी चुकानी पड़ सकती है। चिकित्सकों को सुरक्षा अवश्य मिलनी चाहिए क्योंकि वे दिन-रात सेवा में लगे रहते हैं। दोनों पहलुओं को समझते हुए केंद्र सरकार को कड़ा कानून बनाने की जरूरत है जिससे चिकित्सक बेखौफ  होकर इलाज कर सकें । बिना डरे वो रात को भी अस्पताल में ड्यूटी दे सकें। 
(लेखक रोटरी क्लब जालन्धर नार्थ के अध्यक्ष हैं)