कश्मीर समस्या- विश्वास बहाली के लिए भी हों प्रयास


गत दिनों कश्मीर संबंधी काफी बातें उभर कर सामने आई। वादी में चाहे हिंसा की घटनाएं पहले की अपेक्षा कम हुई हैं, पत्थरबाज़ी की घटनाएं भी कम हुई हैं। परन्तु फिर भी इस मामले संबंधी अलग-अलग पहलुओं से चर्चा होती रही है। अमरनाथ की यात्रा जारी है, जिसमें लाखों ही श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। यह पहाड़ी रास्ता मुश्किलों भरा और कई पक्षों से ़खतरनाक है। लगभग डेढ़ महीना चलने वाली इस यात्रा को निर्विघ्न जारी रखने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर सुरक्षा प्रबंध करने पड़ते हैं, जो स्वयं में एक बहुत बड़ा कार्य है। 
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगे 6 महीने हो चुके हैं। नई सरकार द्वारा इसको 6 महीने के लिए और बढ़ाने का फैसला लिया गया। इस संबंध में संसद में लम्बी बहस भी हुई, जिसमें इस समस्या की हर पक्ष से विस्तृत जांच-पड़ताल की गई। नए गृह मंत्री अमित शाह ने वादी का दौरा किया और अधिक से अधिक वर्गों के साथ बातचीत करने का प्रयास किया। चाहे उन्होंने यह कहा है कि हालात सामान्य होने पर ही चुनाव करवाए जाएंगे, परन्तु इनके समय संबंधी अनिश्चितता अभी भी बनी हुई है। गत दिनों हिज़बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी की तीसरी बरसी के समय वादी के अधिकतर हिस्सों में जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ था। अलगाववादी संगठनों द्वारा हड़ताल के दौरान दुकानें, कारोबार तथा अन्य हर तरह के कार्यालय और स्कूल-कालेज बंद करवाने के लिए दबाव डाला गया। अलगाववादी संगठनों द्वारा सैय्यद अली शाह गिलानी, मीरवाइज़, मौलवी उमर फारुख और यासीन मलिक (जो इस समय दिल्ली जेल में बंद हैं) और उनके साथी लगातार कोई न कोई कारण बता कर ऐसी हड़तालों का आह्वान करते रहते हैं, जिस कारण राज्य की समूची आबादी बुरी तरह प्रभावित होती है। लोग आर्थिक तौर पर बेहद तंगी वाली स्थिति से गुज़र रहे हैं। अधिकतर लोगों के लिए वहां जीना दूभर हुआ पड़ा है। जबकि इन संगठनों के अधिकतर नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं और अपने अच्छे कारोबार भी चला रहे हैं। सैय्यद अली शाह गिलानी, बिलाल लोन और आसिया अंदराबी जो दुखतरान-ए-मिलत की नेता है आदि के बच्चे विदेशों में अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन अलगाववादियों की लम्बी सूची जारी की गई है जिनके बच्चे विदेशों में बसे हुए हैं जबकि कश्मीर वादी के लोगों और नौजवानों की हालत दयनीय बनी हुई है। कश्मीर का मामला गत 70 वर्षों से भारत के लिए चुनौती बना हुआ है। पाकिस्तान ने कश्मीर हथियाने के लिए हर हथकंडा अपनाया है जबकि इसका तीसरा हिस्सा उसने पहले ही छीन लिया था। गत अनेक दशकों से उसने अपने देश में आतंकवादियों के कई संगठनों को पूरा प्रशिक्षण और हथियारों से लैस करके वादी में भेजने का सिलसिला शुरू किया हुआ है और इस तरह राज्य को लहू-लुहान किये रखा है। बाहर से आती बड़ी धन-राशियों के बलबूते पर कश्मीरी अलगाववादियों द्वारा इस तरह के माहौल को हवा दी जाती रही है। जिसकी जद में आम लोग और सुरक्षा बल आते रहे हैं। जिसकी प्रतिक्रिया भी सामने आती रही है, जो अक्सर बड़ी संख्या में आम लोगों के लिए बेहद घातक साबित होता रहा है।
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट भी सामने आई है, जिसमें भारत-पाकिस्तान को कश्मीर में स्थिति सुधारने में नाकाम रहने पर दोषी ठहराया गया है और यह भी कहा गया है कि इस मामले के हल के लिए दोनों देशों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भारत के विदेश मंत्रालय ने इसको रद्द करते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर की खराब स्थिति का कारण सीमा पार से शुरू किया गया आतंकवाद है, जिससे लगातार मानवीय जानों का नुक्सान हुआ है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां का लोकतंत्र पूरी तरह धड़कता नज़र आ रहा है। जिस कारण यह खूनी खेल बंद नहीं हो रहा। हमें कश्मीर की हिंसा की समझ आती है। पाकिस्तान द्वारा खेला जाता रहा खूनी खेल भी स्पष्ट नज़र आता है, परन्तु इस तस्वीर का दुखद पक्ष यह है कि आज वादी का आम मनुष्य बहुत दयनीय जीवन व्यतीत कर रहा है, जिसमें से उसको निकालने के लिए भारत सरकार को आज हर ऐसा हथकंडा अपनाना चाहिए और इसके साथ ही ऐसे कदम भी उठाने चाहिए, जिनसे कश्मीरियों में पुन: विश्वास पैदा किया जा सके। इस दिशा में किए गए बड़े प्रयास ही सरकार की बड़ी सफलता माने जाएंगे। पैदा किया ऐसा विश्वास वादी के हालात को सुधारने और संवारने में सहायक हो सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द