शेयर बाज़ार को क्यों रास नहीं आ रहा बजट ?

याद करिए 23 मई 2019 का दिन। 17वीं लोकसभा चुनाव के वोटों की गिनती का दिन। इस दिन भी रोज की तरह सुबह 10 बजे बॉम्बे शेयर बाजार खुलता है, लेकिन आज के दिन के खुलने को खुलना कहने के बजाय, कहना चाहिए कि खुशी में कीक मारकर खुलता है। जी, हां ! अभी तक एक भी नतीजा नहीं आया होता, सिर्फ  संभावित नतीजों के रुझान ही आये होते हैं, जिनमें भाजपा बड़ी जीत की तरफ  बढ़ रही होती है। सिर्फ इस संभावना भर से ही शेयर बाजार में खुशी की लहर नहीं, कहना चाहिए, खुशी की सूनामी दौड़ जाती है। सुबह के 10 बजकर 45 मिनट होते-होते यह सूनामी एक इतिहास रच देती है। बीएसई का इंडेक्स इतिहास में पहली बार 40,000 अंकों के ऊपर 40,000.100 में पहुंच जाता है। अब के पहले इतिहास में इस ऊंचाई तक शेयर बाजार कभी नहीं पंहुचा था।
पाठक सोच रहे होंगे कि काले सोमवार यानी 8 जुलाई 2019 के दिन धड़ाम हुए शेयर बाजार की त्रासदी पर कोई टिप्पणी करने के लिए 23 मई 2019 की यह याद क्यों? यह इसलिए ताकि पता चले कि बाजार सिर्फ  अपने फायदे पर खुश होता है और अपने नुक्सान पर परेशान। वह अपने फायदे के अलावा न तो किसी  राजनीतिक को जानता है और न ही किसी विचारधारा को। उसका फायदा ही उसकी राजनीति और विचारधारा होती है। कहने का मतलब यह कि बाजार यानी पूंजीवाद सिर्फ  अपने लिए जीता है और अपने लिए ही मरता है, जो बाजार भाजपा की प्रचंड जीत पर गदगद होकर उसकी आरती उतार रहा था, वही शेयर बाजार आखिर भाजपा की सरकार के दूसरे कार्यकाल के पेश पहले बजट से इतना नाराज क्यों है?
आखिर केंद्र सरकार ने अपने इस बजट में क्या ऐसा कर दिया है जिससे बाजार यह दिखाने और दर्शाने पर उतारू है कि मौजूदा सरकार या इसकी आर्थिक नीतियां अर्थव्यवस्था के लिए कतई मुफीद नहीं हैं? सोमवार 8 जुलाई 2019 शेयर बाजार जिस तरह गिरा, वह किसी भूचाल से कम नहीं था। हालांकि 9 जुलाई 2019 को जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं, शेयर बाजार पिछले दिन के बंद होने की स्थिति से 38 अंक ऊपर उठकर खुला है, लेकिन अनुमान यही है कि आज भी हालात अच्छे नहीं रहने वाले। अगर आज अच्छे दिखे भी तो दो चार दिन में हालात फिर पलटी खायेंगे। महज दो दिन के कारोबार में यानी आठ जुलाई 2019  और बजट वाले दिन 5 जुलाई 2019, भर में निवेशकों के 5 लाख करोड़ रुपये डूब गए। 8 जुलाई सोमवार को  शेयर बाज़ार में जिस तरह से बिकवाली का दौर रहा, उससे तीन लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का मार्केट कैप बाजार का पूंजीकरण, ध्वस्त हो गया। ठीक इसी तरह बजट वाले दिन शुक्रवार 5 जुलाई 2019 , को बाजार में निराशा की जो आंधी बही, उससे दो लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। इस तरह महज  5 और 8 जुलाई 2019 को ही बाजार में बिकवाली के चलते 5.62 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 8 जुलाई 2019 को कारोबार के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक 907 अंक लुढ़ककर 38,605.48 पर आ गया। जबकि निफ्टी 252.55 अंक नीचे गिरकर 11,558.60 पर बंद हुआ। यह गिरावट मौजूदा साल की अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है।
आखिर इसके पीछे कारण क्या है? वास्तव में इसके पीछे कारण देश की पहली पूर्ण वित्त मंत्री सीतारमण  द्वारा पेश मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट है जिसके कुछ प्रावधान शेयर बाजार के खिलाड़ियों को रास नहीं आ रहे। शेयर बाजार के खिलाड़ियों को बजट की एक बात तो यह रास नहीं आ रही जिसमें कहा गया है कि लिस्टेड कंपनियों में पब्लिक शेयर होल्डिंग 25 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी की जायेगी। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए सेबी को निर्देश दिया है। शेयर बाजार के खिलाड़ी नहीं चाहते कि पब्लिक शेयर होल्डिंग बढ़े। इससे उन्हें कई किस्म के खतरे महसूस हो रहे हैं। सबसे पहले तो यह कि शेयर बाजार में अगर आम जनता की भागीदारी भी असर डालने वाली स्थिति में हुई तो बाजार के खिलाड़ी जो इसे जब चाहते हैं हवा में नचा देते हैं,तब वह मुश्किल होगा।
क्योंकि अगर बाजार में पब्लिक होल्डिंग बढ़ेगी तो इसका मतलब यह है कि बाजार में सरकार का हस्तक्षेप भी बढ़ेगा। इससे तब यह पूरी तरह से बेलगाम जुआ घर की तरह नहीं रहेगा। क्योंकि एक झटके में अगर करोड़ों मतदाता शेयर बाजार में कंगाल हो गए तो सरकार को हरकत में आना ही पड़ेगा। आखिर तमाम राजनेताओं को हर पांच साल में आना तो पब्लिक के पास ही है, क्योंकि वह  मतदाता भी हैं। वैसे किसी भी मामले में बहुत लोगों की भागीदारी किसी भी किस्म के गिरोह को पसंद नहीं आती। क्योंकि बहुत लोगों की भागीदारी के बाद किसी भी व्यवस्था को कुछ मुट्ठी भर लोग अपनी अँगुलियों पर नचा नहीं सकते। इसलिए शेयर बाजार के बड़े खिलाड़ी इस बात से खुश नहीं हैं। उनकी नाखुशी का दूसरा बड़ा कारण वित्त मंत्री द्वारा 2 से 5 करोड़ रुपए और 5 करोड़ रुपए से ज्यादा की सालाना आय वालों पर सरचार्ज बढ़ाने का ऐलान किया जाना है। यह बात भी इन्हें पसंद नहीं आई। वास्तव में ये ताकतवर निवेशक  नहीं चाहते कि कोई उनकी कमाई पर नजर रखे। इसलिए कारोबारियों और शेयर बाजार में निवेश की मोनोपली रखने वाले निवेशक नहीं चाहते कि उन्हें अपनी कमाई पर किसी किस्म का चार्ज देना पड़े फिर भले यह कितनी हो। इसलिए शेयर बाजार में बिकवाली की अफरा-तफरी का दूसरा बड़ा कारण 2 से 5 करोड़ रुपए और 5 करोड़ रुपए से ज्यादा सालाना आय वालों पर सरचार्ज  लगाए जाने की यही बात है। विश्लेषकों के मुताबिक सरचार्ज की बढ़ी दरें शेयर बाजार से पैसा कमाने पर लगने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर भी असर डालेंगी। इसलिए बिकवाल बाजार पर दबाव बनाये हुए हैं जिसके कारण पांच जुलाई को जब बाजार बंद हुआ तो उस समय जो मार्केट कैप 151.35 लाख करोड़ रुपये था वह 8 जुलाई को मार्केट बंद होने के समय फिसलकर 147.96 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया था। इस तरह  8 जुलाई को कुल 3ण्39 लाख करोड़ का नुकसान हुआ।
 तकनीकी नजरिये से देखें तो कुछ और भी कारण हैं मसलन अमरीका में ब्याज में कटौती की संभावनाओं पर नाउम्मीदी। अमरीका का जॉब डाटा और लाल निशाँ में कारोबार कर रहे एशियाई बाजार। लेकिन सबसे बड़ी बात यही है कि देश का निवेशक और बड़ा कारोबारी देश में राष्ट्रवादी सरकार चाहता है लेकिन यह नहीं चाहता कि राष्ट्र के लिए उस पर किसी तरह का कोई टैक्स लगाया जाए या किसी जवाबदेही के दायरे में लाया जाए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर