कांग्रेस के एजेंडे पर ही नज़र नहीं आते हरियाणा के चुनाव

कांग्रेस हाईकमान में अनिश्चितता के चलते हरियाणा कांग्रेस के नेता बेहद परेशान हैं। एक तो विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और ऊपर से यह नहीं साफ हो पा रहा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होंगे, प्रदेश कांग्रेस की कमान किसके हाथ आएगी, और प्रदेश में किस नेता के क्या समीकरण बनेंगे। दो महीने बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन शुरू होने हैं। एक तो हरियाणा में कांग्रेस ऊपर से नीचे तक गुटबाजी में बंटी हुई है, दूसरे पार्टी आलाकमान को हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर कोई चिन्ता नजर नहीं आती और न ही हरियाणा विधानसभा के चुनाव कांग्रेस के एजैंडे में कहीं नजर आते हैं। इसी के चलते अब हरियाणा कांग्रेस में आपाधापी मची हुई है।
तंवर को लगा झटका
पिछले हफ्ते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने सुदेश अग्रवाल की अध्यक्षता में इलैक्शन प्लॉनिंग व मैनेजमैंट कमेटी का गठन कर दिया और पार्टी के अन्य नेताओं को कहा गया कि या तो वे खुद इस कमेटी में शामिल हो जाएं अन्यथा अपने किसी प्रतिनिधि को इस कमेटी में बतौर सदस्य भेजें। कमेटी की बैठक भी तय कर दी गई। इस कमेटी का गठन करने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सांसद कुमारी शैलजा, कांग्रेस विधायक दल की नेता श्रीमति किरण चौधरी, पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा जैसे दिग्गज नेताओं से कोई राय नहीं ली गई थी। इतना ही नहीं, कमेटी गठित करते समय हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद को भी भरोसे में नहीं लिया गया। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस को एकजुट करने के लिए कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में एक कोआर्डिनेशन कमेटी का गठन किया था। लेकिन वह भी कांग्रेसी नेताओं को एकजुट नहीं कर पाए और नतीजा प्रदेश की सभी सीटों पर भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार के रूप में सामने आया। अब अशोक तंवर द्वारा गठित की गई कमेटी को लेकर कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद ने तंवर को झटका देते हुए साफ कर दिया कि इस तरह की कमेटी प्रदेश कांग्रेस नहीं बल्कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ही कर सकती है। उन्होंने कहा कि वह इस कमेटी को मंजूर नहीं करते क्योंकि यह कमेटी किसी से पूछ कर नहीं बल्कि घर बैठकर बनाई गई है। कांग्रेस प्रभारी के इस ब्यान पर तंवर खेमा गहरे सदमे में है। कांग्रेस में चल रही इस खींचातान से पार्टी का बंटाधार हो गया है। 
भाजपा में शामिल होने वालों में लगी होड़
पहले जींद उपचुनाव में भाजपा की जीत और उसके बाद लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 10 सीटें भाजपा की झोली में जाने से इन दिनों प्रदेश के विभिन्न राजनेताओं में भाजपा में शामिल होने की होड़ लगी हुई है। इनेलो के कई विधायकों व राज्यसभा सांसद के भाजपा में शामिल होने के अलावा कांग्रेस, इनेलो, जजपा, एलएसपी सहित अनेक दलों के नेता जिनमें पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक व अन्य नेता शामिल हैं, आए दिन एक के बाद एक करके भाजपा में शामिल हो रहे हैं। इनेलो के पांच विधायकों रणबीर गंगवा, केहर सिंह रावत, बलवान दौलतपुरिया, जाकिर हुसैन व परमिंदर ढुल के बाद पार्टी के इकलौते राज्यसभा सांसद राम कुमार कश्यप भी भाजपा में शामिल हो गए। इनेलो ने राम कुमार कश्यप को पहले 6 साल के लिए हरियाणा लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया था और फिर राज्यसभा की सीट खाली होने पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा। इनेलो नेताओं को इनेलो विधायकों के भाजपा में जाने से इतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना राज्यसभा सांसद के पाला बदलने से हुआ है क्योंकि इनेलो प्रमुख ने तमाम अन्य नेताओं की दावेदारी दरकिनार करते हुए राम कुमार कश्यप को राज्यसभा सांसद बनाकर उनपर अपना पूरा भरोसा जताया था। 
भाजपा में शामिल होने वालों बारे अटकलों के दौर जारी
अभी भी पार्टी के कई अन्य नेताओं को लेकर भाजपा में शामिल होने की आए दिन अटकलें लगती रहती हैं। इनेलो ही नहीं, अब तो कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के भाजपा में शामिल होने की भी निरंतर चर्चाएं चल रही हैं। इन नेताओं को बार-बार अपना स्पष्टीकरण भी देना पड़ा है कि वे कहीं नहीं जा रहे और उनके बारे में चल रही तमाम अटकलें निराधार हैं। आए दिन भाजपा में शामिल हो रहे दिग्गज नेताओं को लेकर भाजपा के पुराने कार्यकर्त्ताओं और नेताओं में भी बेचैनी पाई जाने लगी है। भाजपा के जो नेता पार्टी के संघर्ष के दौर में निरंतर सक्रिय रहकर पार्टी को आगे लाने में जुटे थे, रहे और अब वे टिकट की लाइन में लगे हुए थे, अब अचानक अन्य दलों से आए टिकटार्थियों के कारण उनकी धड़कनें तेज हो गई हैं। उन्हें लगता है कि कहीं इस बार भी उनकी टिकट की दावेदारी दल-बदलू नेताओं के सामने कमजोर न पड़ जाए। दूसरी तरफ अन्य दलों से भाजपा में शामिल होने वालों में भी अनिश्चितता बनी हुई है कि न जाने टिकट के बारे में क्या होगा और भाजपा टिकट देकर उन पर भरोसा जताएगी या नहीं। 
भाजपा-अकाली दल गठबंधन को लेकर असमंजस बरकरार
लोकसभा चुनाव में अकाली दल ने हरियाणा में भाजपा को समर्थन दिया था और उसी समर्थन के बलबूते पंजाब के साथ लगती हरियाणा की पंजाबी बैल्ट जहां पहले भाजपा को सबसे कमजोर आंका जाता था, उन इलाकों में भी भारी बहुमत से भाजपा प्रत्याशी विजयी हुए। अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल खुद हरियाणा में भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में आयोजित जनसभाओं में पहुंचे थे और हरियाणा से अकाली विधायक व अन्य नेताओं ने भी खुलकर भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया था। उस समय यह माना जा रहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा और अकाली दल हरियाणा में भी मिलकर लड़ेंगे। इससे पहले हरियाणा में अकाली दल इनेलो के साथ मिलकर चुनाव लड़ता रहा है। पंजाब में चाहे अकाली दल और भाजपा में गठबंधन होता था लेकिन हरियाणा में अकाली दल चौधरी देवीलाल परिवार के साथ ही रहा। 
करीब तीन साल पहले इनेलो ने अकाली दल से एसवाईएल के मुद्दे पर गठबंधन तोड़ दिया था। 2009 में कालांवाली से अकाली दल की टिकट पर चरणजीत सिंह रोड़ी विधायक बने थे। 2014 में चरणजीत सिंह रोड़ी इनेलो की टिकट पर सिरसा से सांसद चुने गए। तब बलकौर सिंह कालांवाली अकाली दल की टिकट पर कालांवाली से विधायक बने। अकाली दल ने कालांवाली के अलावा अम्बाला शहरी सीट से भी दोनों बार चुनाव लड़ा था और अच्छे-खासे वोट हासिल किए थे। अकाली दल का मानना है कि हरियाणा में करीब 30 सीटों पर सिख वोटर निर्णायक स्थिति में हैं और इन मतदाताओं पर अकाली दल का अच्छा खासा प्रभाव भी है। भाजपा हाईकमान के आग्रह पर पिछली बार राज्यसभा चुनाव में अकाली विधायक ने इनेलो की बजाय भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था। अब अकाली नेता हरियाणा में निरंतर बैठकें करके चुनावी तैयारियों में लगे हुए हैं और उन्हें उम्मीद है कि भाजपा उनके साथ सम्मानजनक समझौता करके अकाली उम्मीदवारों के लिए सिख बहुल सीटें छोड़ देगी। भाजपा की तरफ से अभी तक गठबंधन को लेकर कोई स्पष्ट ऐलान नहीं हुआ है और न ही यह बताया जा रहा है कि गठबंधन होगा तो अकाली दल के लिए हरियाणा में भाजपा कितनी सीटें छोड़ने को तैयार है। इसी के चलते अभी तक दोनों दलों के कार्यकर्त्ताओं में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। 
-मो. 98554-65946