पत्रकारिता का बदलता स्वरूप

अतीत का इतिहास साक्षी रहा है कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता एक मिशन को सम्मुख रख कर आगे अग्रसर हुई कि हमने अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद होना है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् मौलिक अधिकारों के तहत हमें लिखने, बोलने व पढ़ने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् एक समय ऐसा भी आया जिसे आपातकाल कहा जाता है तथा इस अवधि में भी प्रैस स्वतंत्र नहीं थी। आज ‘प्रैस’ आजाद है परन्तु एक कटु सत्य यह भी है कि वर्तमान में भी पत्रकारिता जहां निष्पक्ष है, वहीं इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि आज प्रैस के साथ उसके व्यवसायिक हित जुड़ गए हैं तथा मिशन गायब हो चुका है। जहां तक प्रश्न आकाशवाणी व दूरदर्शन का है, ये सरकारी नियंत्रण की इकाइयां हैं। आज भी दूर-दराज के दुर्गम इलाकों में जहां प्राइवेट चैनलों की पहुंच नहीं है, वहां आज भी सूचना, ज्ञान व मनोरंजन का एकमात्र माध्यम ‘दूरदर्शन’ व ‘आकाशवाणी’ है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी आकाशवाणी के महत्व को जानते हुए रेडियो पर ‘मन की बात’ को माध्यम के रूप में चुना। जहां तक प्रश्न प्राईवेट चैनलों का है, वहां उनका एक मात्र लक्ष्य समाज में सनसनी उत्पन्न कर अपनी रेटिंग में वृद्धि करना रहता है। प्राईवेट चैनलों के अधिकांशत: धारावाहिकों में पति-पत्नी के बीच तीसरा, प्रेमी-प्रेमिका के मध्य तीसरा, संयुक्त परिवार का टूटना, जुड़ना व बिखरना तथा एक ग्लैमरस वैम्प की करतूतें ही विषय रहता है। मनोरंजन के नाम पर फूहड़ हास्य का परोसना है। ऐसा लगता है मानों कहानियों का अकाल है।